देहरादून। दशकों तक भारतीय राजनीति की धुरी बने रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एनडी तिवारी की जयंती और पुण्यतिथि दोनों है। तिवारी का राजनीतिक जीवन जितना सफल रहा, निजी जीवन उतना ही विवादों से भरा हुआ। उज्ज्वला शर्मा ने जब उन्हें अपने बेटे रोहित शेखर का बायोलॉजिकल पिता कहा तो शुरुआती दिनों में उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। उसी दौरान रोहित शेखर ने एक बार कहा था, मैं उनका अवैध बेटा नहीं वह मेरे अवैध पिता हैं। चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी अहम बातें।एनडी तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर, 1925 को नैनीताल के बलूती गांव में हुआ था और निधन 18 अक्टूबर 2018 को। पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अफसर थे, जिन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान नौकरी छोड़ दी थी। तिवारी हलद्वानी, बरेली और नैनीताल के अलग-अलग स्कूल-कॉलेजों में पढ़े।तिवारी राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए आए. ब्रिटिश-विरोधी चिट्ठियां लिखने की वजह से 14 दिसंबर 1942 को अरेस्ट हुए और नैनीताल की उसी जेल में भेजे गए, जहां उनके पिता पहले से बंद थे. 15 महीने बाद रिहा हुए, तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचे, जहां से आगे की पढ़ाई जारी रखी. 1947 में स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने. 1945-49 के बीच ऑल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस के सेक्रेटरी रहे।एनडी तिवारी आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में 1952 में पहली बार हुए चुनाव में प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर नैनीताल से चुनाव लड़ा और विधायक चुने गए। 1957 में फिर नैनीताल से चुनाव जीते और असेंबली में नेता प्रतिपक्ष बने। 1963 में कांग्रेस में शामिल हुए । फिर काशीपुर से विधायक बने और यूपी सरकार में मंत्री बने। 1968 में नेहरू युवा केंद्र की स्थापना की, जो एक वॉलंटरी ऑर्गनाइजेशन है। 1969 से 1971 के बीच इंडियन यूथ कांग्रेस के पहले अध्यक्ष रहे।एनडी तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (1976-77, 1985-85, 1988-89) रहे और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री (2002-2007) रहे। 1979 से 1980 के बीच चौधरी चरण सिंह की सरकार में वित्त और संसदीय कार्य मंत्री रहे। 1980 के बाद योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन रहे। 1985-88 में राज्यसभा सांसद रहे। 1985 में उद्योग मंत्री भी रहे। 1986 से 1987 के बीच तिवारी प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैबिनेट में विदेश-मंत्री रहे। 87 से 88 फाइनेंस और कॉमर्स मंत्री भी रहे।एनडी तिवारी 90 के दशक की शुरुआत में पीएम पद के दावेदार भी रहे, हालांकि तब अपना संसदीय चुनाव 11,429 वोटों से बलराज पासी से हार गए थे। तब जगह पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। 1994 में कांग्रेस छोड़कर 95 में खुद की ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) बनाई अर्जुन सिंह के साथ, लेकिन बाद में फिर से सोनिया की कांग्रेस जॉइन कर ली। उम्र का हवाला देते हुए उत्तराखंड का सीएम बनने के दौरान उन्होंने इस्तीफे की पेशकश भी की थी, लेकिन पद बाद में कार्यकाल खत्म होने पर ही छोड़ा था।