वनन्तरा से तो नहीं गुजरा इन दो दायित्वधारी कुर्सियों का रास्ता!
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अंकिता भंडारी अब वापस नहीं आएगी, लेकिन उत्तराखंडी समाज को समझना पड़ेगा उसकी हत्या क्यों हुई। लगातार भ्रष्ट होती राजनीति की इसमें क्या भूमिका है? उसका पर्दाफ़ाश कर ही हम भविष्य में अनगिनत अंकिताओं बचा सकते हैं। पूरे राज्य की सरकारी नौकरियों के घोटालों में सत्ताधारी पार्टी की भूमिका चर्चा में है। सिर्फ़ 19 साल की अंकिता भी नौकरी की तलाश में ही नेता के बेटे के रिजॉर्ट पहुंची थी। हमने अपने नौजवानों के लिए, ख़ासतौर पर लड़कियों के लिए राज्य को कितना असुरक्षित बना दिया है, उनके लिए कहीं रोजगार नहीं है और अगर कहीं है तो अपराध पर टिके उद्योग के आसपास ही है। सरकारी नौकरियां सिर्फ़ ख़ास विचारधारा और पार्टी से जुड़े लोगों के लिए रिज़र्व हो चुकी हैं। ऐसे में राज्य के विकास की लफ़्फ़ाजी करने वाले नेताओं को हमें अंकिता की लाश दिखानी होगी हमारे महान नेता अक्सर पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की बात करते हैं। उद्योग यानी मुनाफ़े का धंधा, पहाड़ों में आने वाले लोग पैसे के बल पर यहां की प्रकृति से लेकर सबकुछ का उपभोग कर लेना चाहते हैं। इस धंधे में गंभीर अध्येताओं और यूं ही भटकते हुए ज़िंदगी तलाशने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। भ्रष्ट नेताओँ के तार इस धंधे से जुड़े हैं। अगर राज्य के होटल और रिजॉर्ट व्यवसाय का सही सही आकलन किया जाये तो अवैध तौर पर चल रहा ये धंधा आपको हैरान कर देगा। इनमें से ज़्यादातर धंधे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त पुलकित आर्य जैसे लंपट लोग चला रहे हैं।ऐसा क्यों हो रहा है कि राज्य में जितने घोटाले या अपराध हो रहे हैं उसमें सत्ताधारी पार्टी के लोग ही नज़र आ रहे हैं? हाकम सिंह से लेकर पुलकित तक इनकी एक लंबी लिस्ट है। नौजवानों का आक्रोश अभी भ्रष्टाचार को चुनौती देते लग रहा है, लेकिन घाघ राजनीतिज्ञों से टकराने के लिए उनमें राजनीतिक समझदारी का अभाव लगता है। हत्या आरोपियों को लेकर फांसी की सजा की मांग करना और भर्ती घोटाले में कुछ नेताओं के प्रति मासूमियत से भरे हुए मोह दिखाना इस बात का संकेत है। देवभूमि की माला जपकर भी उत्तराखंड को इंसानों के रहने लायक नहीं बनाया जा सकताहै!पुलकित के अवैध रिजॉर्ट पर बुल्डोज़र चलाने पर एक तबका सरकार की वाहवाही कर रहा है, लेकिन क्या किसी के पास इस बात का जवाब है कि सरकार की सरपरस्ती में आख़िर ऐसा रिजॉर्ट चल कैसे रहा था? क्या तब सरकार ग़ायब थी? ‘बुल्डोजर’ न्याय की लोकतांत्रिक व्यवस्था को नकारते हुए सबकुछ तानाशाह के मन की बात के हवाले करने का प्रतीक है। हैरानी की बात है कि लोग लोकतंत्र की हत्या के तमाशे का मज़ा ले रहे हैं! जिस रिजॉर्ट में अंकिता काम कर रही थी उसे ध्वस्त कर कहीं सबूत नष्ट करने का खेल तो नहीं कर दिया गया? ध्यान यहां भी रखना पड़ेगा कि सामने से कठोर एक्शन की बात करने वाले लोग पीछे से अपराधियों को न बचाते रहें? पर्दे के पीछे अक्सर ऐसा होता है। नेताओं के सार्वजनिक बयानों से इतर अगर आप उनके कारमानों को नज़दीक से देखें तो आपको ये बात और अच्छी तरह समझ आयेगी। लोगों को गुमराह करने और झूठा जनमत गढ़ने में माहिर प्रजाति के लोग सच को झूठ और झूठ को सच करने के अपने काम में बख़ूबी जुटे हैं। क्या इस बात का अहसास समाज को है? बुल्डोजर सिर्फ़ एक लोकलुभावना हैउत्तराखंड की संस्कृति में जिस तरह धूर्तता और भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मिलती जा रही है। राज्य में चल रही वर्तमान घटनाएं उन्हीं का रिफ्लेक्शन हैं। किसी रिश्तेदार को पिछले दरवाज़े से सरकारी नौकरी मिल जाने और अवैध धंधों से जुड़े तथाकथित प्रभावशाली लोगों से अपने संबंध दर्शाने में ख़ुश होने वाले उत्तराखंडी समाज को आत्मनिरीक्षण की ज़रूरत है। साफ़ दिल के नौजवानों को चाहिए कि उनका साहस हर उस बात पर सवाल उठाये जिसमें हेरफेर की जा रही हो। सिर्फ़ साहस ही काफी नहीं, उसके लिए होश और राजनीतिक समझदारी का होना भी ज़रूरी है। वैसे ही भर्ती घोटाले और अंकिता हत्याकांड जैसी घटनाओं में भी करने की कोशिश हो रही है।अगर जनता का दबाव नहीं होता तो विधानसभा की भर्तियों को हमारे महान नेता यूं ही निरस्त कर कर देते या अंकिता हत्याकांड के आरोपियों को यूं ही गिरफ़्तार कर लेते? असली सवाल इस बात का है ये अपराध हुए क्यों? जो हमें उलझाने की कोशिश करते हैंउत्तराखंड में पांच साल के भीतर तीन मुख्यमंत्री बदले, लेकिन अंकिता भंडारी हत्याकांड के मुख्य आरोपित के परिवार पर सरकारों की कृपा बनी रही। परिवार पर मेहरबानी इस तरह बरसी कि पांच साल में बाप और बेटा दोनों दायित्वदारी मंत्री बन गए।दो-दो बार दायित्वदारी रहे विनोद आर्या के भाजपा में रहते हुए सरकारों और संगठन में मजबूत पकड़ जगजाहिर है, लेकिन अंकितको दायित्वधारी की कुर्सी आखिर किस काम के बदले इनाम में मिली? अब यह सवाल भी उठ रहा है कि कुर्सियों का रास्ता कहीं पुलकित के वनन्तरा रिसॉर्ट से होकर भी तो नहीं गुजरा।सीसीटीवी कैमरों से भी एसआइटी को कोई महत्वपूर्ण सुराग मिलने की उम्मीद नहीं है।जह यह कि जिस स्थान से अंकिता को नहर में फेंका गया, उससे छह किलोमीटर पहले तो अंकिता और तीनों हत्यारोपित सीसीटीवी कैमरे में नजर आ रहे हैं।इसके बाद जंगल का क्षेत्र है और वहां कोई सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं।वहीं, रिसॉर्ट में सिर्फ दिखावे के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, वहां कोई भी कैमरा चालू स्थिति नहीं है। उत्तराखंड की वादियां हमेशा से देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। उत्तराखंड में होम स्टे और रिसार्ट में कार्य करने वाली महिलाओं व बेटियों की सुरक्षा के लिए नियमावली भी नहीं है.