उत्‍तराखंड में एयर ट्रैफिक कंट्रोल की स्थायी व्यवस्था नहीं है। 

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उत्तराखंड में एयर ट्रैफिक कंट्रोल की स्थायी व्यवस्था नहीं है। 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

 

जिस केदारनाथ क्षेत्र में उड़ानों की संख्या 260 से अधिक तक हो जाती है वहां एटीसी तक नहीं है। यहां वर्ष 2003 में हेली सेवा शुरू की गई थी। डीजीसीए अब स्थानीय कार्यालय खोलने जा रही है।  विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में हेलीकाप्टर सेवाओं की उपयोगिता किसी से छिपी नहीं है, लेकिन यह भी सही है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में उड़ान के नियमों की अनदेखी से वन्यजीवन में खलल पड़ रहा है। केदारनाथ अभयारण्य भी इससे अछूता नहीं है। यात्राकाल में केदारनाथ धाम के लिए हेलीकाप्टरों के ऊंचाई के तय मानकों से नीचे उड़ान भरने और इनकी गड़गड़ाहट से बेजबान बिदक रहे हैं। केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ ने हाल में ही ऐसी तीन उड़ानों के मामले में नोटिस जारी किए थे। इससे पहले भी हेली सेवा प्रदाता कंपनियों को नोटिस जारी हुए थे। बाद में ये सुझाव इस क्षेत्र में हेली सेवाओं की उड़ान की गाइडलाइन में शामिल कर दिए गए। बावजूद इसके हेेलीकाप्टर तय मानकों की अनदेखी करते आए हैं। वन विभाग की ओर से जारी किए जाने वाले नोटिस इस बात का उदाहरण हैं। इन मानकों का हो रहा उल्लंघनगाइडलाइन के अनुसार इस क्षेत्र में मंदाकिनी नदी के तट से 600 मीटर ऊपर उडऩे की अनुमति है। यह मार्ग बेहद संकरा होने के कारण वहां एक बार में केवल दो हेलीकाप्टर ही आ-जा सकते हैं। शाम के समय ये उड़ान नहीं भरेंगे। इन मानकों के अक्सर उल्लंघन की शिकायतें आ रही हैं।नीची उड़ानों और कानफोडू शोर के कारण इस क्षेत्र में कस्तूरा मृग, हिम तेंदुआ, भरल, थार, भालू, राज्यपक्षी मोनाल, फीजेंट समेत अनेक वन्यजीवों व पक्षियों पर असर पड़ रहा है। हाल में अलग-अलग तिथियों पर तीन हेलीकाप्टरों ने इस क्षेत्र में काफी नीचे उड़ान भरी थी। इस पर केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ ने नोटिस जारी किए थे। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक उत्तराखंड) का कहना है कि केदारनाथ दुर्गम क्षेत्र है और समय-समय पर यहां संचालित हेली कंपनियों को चेतावनी जारी की जाती है। हेलीकाप्टर की उड़ानों में ये आवश्यक है कि ये निर्धारित मानकों का पालन करें। साथ ही पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन भी न हो। सेवानिवृत्त डीएफओ नंदादेवी नेशनल पार्क का कहना है कि जितनी नीची उड़ान होगी, उससे उतना ही अधिक वन्यजीवन में खलल पड़ेगा। ऐसे में यह आवश्यक है कि हेलीकाप्टर कंपनियां तय नियमों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करें। इसके लिए तंत्र को सक्रियता से कदम उठाने होंगे।लगभग 97 हजार हेक्टेयर में फैले केदारनाथ अभयारण्य में हेलीकाप्टरों की बेहद नीची उड़ान का मामला वर्ष 2014-15 में तूल पकड़ा था। इसके बाद भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अध्ययन कर इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में उड़ानों के संबंध में निश्चित ऊंचाई तय करने समेत अन्य कई सुझाव दिए थे।2013 आपदा के बाद केदारनाथ तक पहुंच के लिए प्रदेश सरकारों ने हेलीकॉप्टर सेवा को बढ़ावा तो दिया लेकिन सुरक्षित हवाई सेवा को लेकर कोई इंतजाम नहीं हो पाए हैं। आज तक एयर ट्रैफिक कंट्रोल रूम तक स्थापित नहीं हो किया गया है, जिससे यहां हवा की दशा और दबाव की कोई जानकारी नहीं मिल पाती है। ऐसे में कभी भी हवाई दुर्घटना का कारण बन सकता है। बावजूद यूकाडा व शासन गंभीर नहीं हैं। बावजूद, हेलीकॉप्टर की उड़ान बेधड़क होती आ रही है। आपदा के बाद से बीते सात वर्षों में प्रधानमंत्री कई केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और बड़े नौकरशाह भी हेलीकॉप्टर से केदारनाथ आते रहे हैं। बावजूद सुरक्षित हवाई सेवा को लेकर इस विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्र में कोई इंतजाम नहीं हैं।केदारनाथ धाम की दुर्गम भौगोलिक व पर्यावरणीय परिस्थितियों को इसी बात से समझा जा सकता है कि धाम की ऊंचाई समुद्र तल से 11657 फीट है। यह संकरी घाटी है और मौसम यहां पल-पल में रंग बदलकर परीक्षा लेता है।ऐसी विषम परिस्थितियों में यहां हेलीकाप्टर उड़ानों की संख्या रोजाना 260 से अधिक तक भी पहुंच जाती है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अधिकतम उड़ान वाले दिन आसमान में सिर्फ हेलीकाप्टर ही मंडराते दिखते होंगे। ऐसी जटिल परिस्थितियों के बीच ताबड़तोड़ उड़ानों में यात्रियों की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए यहां अभी तक एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) की स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है। उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने सुरक्षा के लिए जो मानक बनाए भी हैं, उनके पालन का जिम्मा भी हेली कंपनियों पर ही छोड़ा है। अब मुनाफे की होड़ में सुरक्षा मानकों का कंपनियां कितना पालन करती होंगी, समझा जा सकता है। ऐसी जटिल परिस्थितियों के बीच ताबड़तोड़ उड़ानों में यात्रियों की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए यहां अभी तक एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) की स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है। उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने सुरक्षा के लिए जो मानक बनाए भी हैं, उनके पालन का जिम्मा भी हेली कंपनियों पर ही छोड़ा है। अब मुनाफे की होड़ में सुरक्षा मानकों का कंपनियां कितना पालन करती होंगी, समझा जा सकता है। ऐसी जटिल परिस्थितियों के बीच ताबड़तोड़ उड़ानों में यात्रियों की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए यहां अभी तक एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) की स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है। उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने सुरक्षा के लिए जो मानक बनाए भी हैं, उनके पालन का जिम्मा भी हेली कंपनियों पर ही छोड़ा है। अब मुनाफे की होड़ में सुरक्षा मानकों का कंपनियां कितना पालन करती होंगी, समझा जा सकता है। उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने हेली सेवाओं का संचालन रोस्टर के अनुरूप तय करने की व्यवस्था बनाई थी। इसके तहत तय किया गया था कि घाटी में एक समय में केवल छह हेलीकाप्टर ही हवा में रह सकेंगे। हालांकि, इस नियम का पालन क्या हो पाता होगा, जब एक दिन में अधिकतम उड़ानों की संख्या 260 से अधिक तक पहुंच जाती है। फिर कंपनियों का ध्यान केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए अधिक से अधिक उड़ान पर केंद्रित रहता है। केदारनाथ क्षेत्र में एटीसी न होने के चलते मौसम के मिजाज, हवा के रुख आदि के हिसाब से उड़ानों को नियंत्रित करने का निर्णय हेली कंपनियों के अधिकारियों पर ही निर्भर रहता है। कंपनियों के कार्मिक वायरलेस के माध्यम से एक-दूसरे के साथ समन्वय बनाते हैं, हालांकि यह कितना सटीक और सुरक्षित है, यह सवाल अपनी जगह बरकरार है। नियमों की बात करें तो हेली कंपनियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वह हेलीकाप्टर में 400 किलो से अधिक वजन लेकर उड़ान नहीं भरी जाएगी। दुर्घटनाग्रस्त हेलीकाप्टर में कुल वजन 404 किलो पाया गया। इसे भी सामान्य उपयुक्त ही माना गया है, लेकिन हर बार वजन के नियमों का पालन किया जाता है, इसका दावा करने से अधिकारी भी बच रहे हैं। केदारनाथ क्षेत्र में यात्रियों की सुरक्षा के लिए उड़ानों को नियंत्रित करने के लिए नागरिक उड्डयन विभाग ने एक साफ्टवेयर भी तैयार कराया था। क्योंकि, किसी भी हेलीपैड से देखनेभर से उड़ानों को नियंत्रित करना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए विभाग ने साफ्टवेयर तैयार किया था। साफ्टवेयर ने अब तक अनियंत्रित उड़ानों के कितने मामले पकड़े या सब कुछ ठीक पाया गया, इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। केदारनाथ यात्रा में निजी कंपनियों द्वारा 80 व 90 के दशक में निर्मित सिंगल इंजन वाले हेलीकॉप्टर संचालित किए जाते रहे हैं। इस संबंध में बीते वर्षों में कई यात्री प्रशासन से शिकायतें भी कर चुके हैं। केदारनाथ पुनर्निर्माण के दौरान भी यहां पर एयर ट्रेफिक कंट्रोल रूम की स्थापना तो दूर आज तक किसी ने इस विषय पर चर्चा तक नहीं की है और हैरानी की बात तो यह है कि नागरिक उड्डयन विभाग, उत्तराखंड सिविल एविएशन डेवलपमेंट अथॉरिटी और उत्तराखंड शासन भी कभी इस दिशा में गंभीर नजर नहीं आया है। केदारनाथ क्षेत्र में हेलीकॉप्टर क्रैश हो चुके हैं जिनमें सेना के दो हेलीकॉप्टर शामिल है और इस हादसे में 20 जवानों सहित 23 लोगों की मौत हो चुकी है वहीं 7 लोग घायल भी हो चुके हैं। केवल यही नहीं लैंडिंग और टेक ऑफ के दौरान भी केदारनाथ में बीते 6 वर्षों में चार हेलीकॉप्टरों का हवा के दबाव के चलते अनियंत्रित होने से संतुलन बिगड़ गया है। इतने हादसे होने के बावजूद भी ना तो उत्तराखंड सरकार नींद से जाग रही है केदारनाथ क्षेत्र में यात्रियों की सुरक्षा के लिए उड़ानों को नियंत्रित करने के लिए नागरिक उड्डयन विभाग ने एक साफ्टवेयर भी तैयार कराया था। क्योंकि, किसी भी हेलीपैड से देखनेभर से उड़ानों को नियंत्रित करना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए विभाग ने साफ्टवेयर तैयार किया था। साफ्टवेयर ने अब तक अनियंत्रित उड़ानों के कितने मामले पकड़े या सब कुछ ठीक पाया गया, इसकी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। ऐसी जटिल परिस्थितियों के बीच ताबड़तोड़ उड़ानों में यात्रियों की सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए यहां अभी तक एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) की स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है। उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने सुरक्षा के लिए जो मानक बनाए भी हैं, उनके पालन का जिम्मा भी हेली कंपनियों पर ही छोड़ा है। अब मुनाफे की होड़ में सुरक्षा मानकों का कंपनियां कितना पालन करती होंगी, समझा जा सकता है। केदारनाथ धाम के लिए सोनप्रयाग से केदारनाथ तक के लिए केंद्र सरकार रोपवे की स्वीकृति दे दे चुकी है। प्रधानमंत्री 21 अक्टूबर को केदारनाथ आगमन पर इसकी आधारशिला रखेंगे। केदारनाथ रोपवे बनने पर इस क्षेत्र में हेली सेवाओं पर निर्भरता कम होगी। साथ ही साढ़े ग्यारह किलोमीटर लंबे इस रोपवे से यात्री इस क्षेत्र में प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों का आनंद भी लेंगे।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।