उत्तराखंड की कत्यूर घाटी मे महिला श्रम सम्मान का प्रतीक ‘किर्साण महोत्सव’ सम्पन्न
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सी एम पपनैं
कौसानी (उत्तराखंड)। महिलाओ के श्रम को सम्मान दिलाने के उद्देश्य से उत्तराखंड कुमांऊ अंचल के कत्यूर घाटी स्थित न्याय पंचायत भिलकोट स्थित अमस्यारी ग्राम पंचायत के टिटोली मैदान मे 17 व 18 दिसंबर को हिमालयी पर्यावरण, जल स्त्रोत एव पर्वतीय शिक्षा पर कार्यरत संस्था ‘हितैषी’ गरूड, बागेश्वर द्वारा सातवे किर्साण वार्षिक महोत्सव का भव्य आयोजन, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त पद्मश्री क्रमश: बसंती देवी व कल्याण सिंह ‘मैती’, सेवानिवर्त एडमिरल ओ पी एस राणा, भारत सरकार मे कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी दिनेश चंद्र कनसीली, वृक्ष मित्र किसन सिंह मलडा, गरूण ब्लाक प्रमुख हेमा बिष्ट, पंतनगर विश्व विद्यालय के आनंद जीना, पर्यावरणविद गंगोलीहाट राजेन्द्र बिष्ट, मिसाइल वैज्ञानिक ओम प्रकाश राणा, पूर्व आईजी सीआरपीएफ रमेशचंद्र, कुमांऊ विश्वविद्यालय पुरातत्व विभाग के डाॅ चंद्र प्रकाश फुलोरिया व प्रोफेसर (डाॅ) हेम पंत, डाॅ शेखर कांडपाल, जल, जंगल व पर्यावरण से जुडे भैरव नाथ टम्टा, चंदन डांगी व चंद्र मोहन पपनैं इत्यादि की उपस्थिति में संस्था अध्यक्ष रतन सिंह किरमोलिया की अध्यक्षता मे आयोजित किया गया। आयोजित महोत्सव के इस अवसर पर न्याय पंचायत के 11 गांवो छटिया, मवाई, स्याली स्टेट, अमस्यारी, भिलकोट, बुन्गा, बेटी, हरि नगरी, कुलाउ, पय्या व डाबो की 133 किर्साण महिलाओ को सम्मानित किया गया।
आयोजित किर्साण महोत्सव मे 133 मात्रशक्ति द्वारा घस्यारी घास काट प्रतियोगिता मे प्रतिभाग किया गया था। जो 33 महिलाऐ फाइनल राउंड में पहुची थी सभी को सम्मान स्वरूप शाल व थर्मस आयोजकों द्वारा प्रदान किया गया। सौ अन्य उद्यमी महिलाओ को कृषियंत्र मे कुदाल इत्यादि पुरुष्कार स्वरूप प्रदान किए गए। प्रथम स्थान प्राप्त ग्राम पय्या की गीता देवी को पन्द्रह हजार रुपया, द्वितीय स्थान प्राप्त ग्राम मवई की खष्टी देवी को बारह हजार रुपया तथा तृतीय स्थान प्राप्त ग्राम बून्गा की आनंदी देवी को दस हजार रुपया पुरुष्कार स्वरूप जिला पंचायत अध्यक्ष बसंती देवी के कर कमलो प्रदान किया गया।
आयोजित किर्साण महोत्सव मे दिल्ली, देहरादून, अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, पिथोरागढ़, हल्द्वानी, रानीखेत इत्यादि क्षेत्रों से महोत्सव मे उपस्थित प्रबुद्ध अतिथियों का स्वागत अभिनंदन ‘हितैषि’ संस्था पदाधिकारियों द्वारा बैच व पुष्प माला पहना कर तथा विभिन्न प्रकार के पेड व पौंधे भैट कर किया गया।
आयोजित किर्साण महोत्सव का श्रीगणेश अतिथियों के कर कमलो दीप प्रज्ज्वलित कर व स्कूली बच्चों द्वारा सरस्वती वंदना से किया गया। आयोजक संस्था अध्यक्ष रतन सिंह किरमोली व सचिव डाॅ किसन सिंह राणा द्वारा सभी मंचासीन अतिथियों का स्वागत अभिनंदन कर, संस्था के उद्देश्य व विगत छ: वर्षो मे संस्था को मिली उपलब्धियों के बावत अवगत कराया गया। व्यक्त किया गया, विगत 25 वर्षो से क्षेत्र की महिलाओ के उत्थान हेतु कार्य हो रहा था। किर्साण महोत्सव विगत छ: वर्षो से निरंतर सभी क्षेत्रवासियो के आर्थिक व सामाजिक सहयोग से हो रहा है। इस वर्ष सातवा किर्साण महोत्सव है।
आयोजित किर्साण महोत्सव मे सांस्कृतिक मंच देहरादून के साथ-साथ क्षेत्र के ग्रामीण स्कूलों के छात्र-छात्राओ द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमो के तहत उत्तराखंड की न्योली, छपेली, झोडा, जागर गायन व नृत्यों का प्रभावशाली मंचन किया गया। लोकगायिका कमला व राधा देवी के लोकगायन ने न सिर्फ समा बांधा, उपस्थित सेंकडो ग्रामीण महिलाओ, युवाओ, बच्चों व अतिथियों को प्रभावित किया।
दो दिनों तक आयोजित किर्साण महोत्सव के दूसरे दिन स्थानीय राजकीय उमा महाविद्यालय देवल खेत से टिटोली मैदान तक न्याय पंचायत की सैकडो महिलाओ, बच्चों, युवाओ व बुजुर्गो तथा क्षेत्र के सभी ग्राम प्रधानों द्वारा सांस्कृतिक जुलूस मे ढोल, दमाउ, नगाडा, तुरही और छोलिया नृत्य के साथ सांस्कृतिक जुलूस में भाग लिया गया। किर्साण महिलाऐ उत्तराखंड की पारंपरिक वेशभूषा व रूपसज्जा धारण कर सांस्कृतिक जुलूस में शामिल हुई, अन्य युवाओ व बच्चों के साथ जनगीत गाकर सांस्कृतिक जुलूस को शोभायमान किया। किर्साण महिलाओ द्वारा गाए गए जनगीतो के बोल थे-
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मेरी पितृभूमि, त्येरी जै-जै कारा…।
ततुक नि लगा उदेख…. ओ जैता एक दिन आलो यो दिन दुनि मे…।
प्रभावशाली विशाल सांस्कृतिक जुलूस में शिरकत कर रहे बच्चों व महिलाओ के हाथों में लहरा रही तख्तियों मे नारे लिखे थे-
1- पहाड़ बचाओ, पलायन रोको।
2- ये हैं पहाड़ के किर्साण, इनकी बनी है नई पहचान।
3- जंगल हमारा मायका है।
4- धरती मां को सजाना है, पहाड़ बचाना है।
5- काम करो तुम नाम करो, श्रम का सम्मान करो।
6- एक दो एक दो, किर्साणो को सम्मान दो।
7- पर्यावरण रक्षा, जीवन रक्षा।
8- पर्वतीय जीवन का आधार, पहाड़ की नारी।
9- काम करो तुम नाम करो, श्रम का सम्मान करो।
9- बांज, बुराश, देवदार पेड, वर्षा की धार।
10- मां बहनो की यही पुकार, शराब बंद करे सरकार।
11- बांज, बुराश, उतीश की डाल, इनसे निकले पानी की धार।
12- पर्यावरण रक्षा, जीवन रक्षा।
अंचल की ग्रामीण महिलाओ के श्रम सम्मान मे आयोजित किर्साण महोत्सव को राज्य व राष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त पर्यावरण विदो, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनो से जुडे कर्मठ प्रबुद्ध जनो द्वारा संबोधित कर व्यक्त किया गया, हम सबको छोटे पौंधों का नुकसान नहीं करना चाहिए। सघन वृक्षारोपण होना चाहिए। प्राकृतिक रूप से जो पौंधे पैदा हो रहे हैं, उसको विशेष महत्व देना चाहिए। बांज, बुरांश, काफल, आंवला, मेहल, अखरोट, नाशपाती, सेव इत्यादि को अंचल के ग्रामीणों द्वारा ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। जिस चीज की पैदावार ज्यादा होती है, उसको महत्व देना चाहिए। उन पेड, पौंधों, वनस्पति व फसलो को ज्यादा महत्व देना चाहिए जो पशुओ से सुरक्षित रह सके।
उपस्थित कृषि व पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त किया गया, सामान्य सी देखरेख मे बहुत कुछ उगाया जा सकता है। प्राकृतिक जडी बूटियां ऐसी हैं जो नुकसान नहीं करती, इलाज पूरा करती हैं। व्यक्ति स्वस्थ रहता है। यह सब कर, महंगे इलाज से बचा जा सकता है। यह सब रोजगार के लिए भी महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक नियम है, बदलाव होते रहते हैं। संयुक्त प्रयास से कार्यो को करे, देश समाज के लिए करे।
विशेषज्ञ पर्यावरण विदो द्वारा व्यक्त किया गया, वैज्ञानिक कहते हैं पानी का रंग रूप नहीं होता है, कन्दराओ मे रह कर हम पर्वतीय अंचल वासी पानी के रंग रूप को देख सकते हैं। व्यक्त किया गया, आज श्रमिक महिलाओ का राजनैतिक व प्रशासनिक स्तर पर कोई सम्मान नहीं है, जिनकी बदोलत पीढी दर पीढी चली आ रही परंपराऐ व लोकसंस्कृति जिंदा है। निरंतर हो रहे पलायन से बोली-भाषा व संस्कृति लुप्त हो रही है। अंचल की महिलाओ व उनके द्वारा किए जा रहे श्रम को सम्मान दिया जाना चाहिए।
वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, आयोजित किर्साण महोत्सव का महत्व है। महिलाऐ उत्तराखंड की शक्ति हैं, जिनकी बदोलत उत्तराखंड चल रहा है। जो पलायन कर बाहर निकल गए हैं अंचल के उत्थान की जरूर सोचे। धीरे-धीरे उत्तराखंड के प्रवासी जन अंचल की ओर रुख कर रहे हैं, महिलाओ के दुख दर्द को समझ रहे हैं, जो अच्छी पहल है। आज जलवायु बदल रही है। जीने के लिए तीन चीजे चाहिए, खाना, पानी और आक्सीजन, हम जिंदा रहैंगे।
व्यक्त किया गया, देश को मिली आजादी के समय हमारी जनसंख्या 35 करोड़ थी, आज 140 करोड़ है। तब यही खेती थी, आज भी यही है, बल्कि खेती घटी है। जिन खेतो मे खेती थी वहा आज मकान बन गए हैं। अनाज कहा से आयेगा। जो अनाज पैदा हो रहा है, रसायनिक तौर-तरीको से। रसायन खाद्दयों मे घुलमिल कर हमारे पेट मे जा रहे हैं। आज अब अनाज नहीं, जहर है। जैविक खाद्य ही अन्न है। दुनिया जैविकता की ओर बढ रही है। खेतो को जैविक बनाऐ। उत्तराखंड के हजारो गांव प्यासे हैं, महिलाऐ परेशान हैं। टैंकर से पानी पहुच रहा है।
व्यक्त किया गया, उत्तराखंड की महिलाओ के श्रम को पहचान, उन्हे पद्मश्री प्रदान की गई है। उत्तराखंड की मेहनतकश महिलाओ की बदोलत ही उत्तराखंड चलायमान है। उत्तराखंड के हरे-भरे पहाडो को जिंदा रखना है तो, जंगल को बचाऐ। जंगल मे आग लगने पर बुझाऐ।
आयोजित ‘किर्साण महोत्सव’ वर्ष 2016 से डाॅ किसन सिंह राना के सानिध्य मे क्षेत्र के जागरूक ग्रामीणों द्वारा निरंतर स्वयं के प्रयासो व सहयोग से प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है। अधिक कर्मठ, लगनशील, समर्पित, जुझारू व संघर्षशील होकर खेत-खलिहानों के कामो को तीब्र गति से निपटाने वाली किर्साण महिलाओ को आयोजित महोत्सव मे विगत छ: वर्षो से निरंतर सम्मानित करने का सिलसिला चलायमान है। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से निरंतर हो रहे पलायन पर अंकुश लगाने की सोच आयोजकों की रही है, जो सराहनीय, दूरदर्शी व स्वागत योग्य है।
यह सोच न सिर्फ ग्रामीण महिलाओ बल्कि आज की युवा पीढ़ी को भी खेती किसानी से जोड़ने, खेती के वैज्ञानिक तौर-तरीको को समझने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। महिलाओ व युवा लोगों मे सीखने की क्षमता भी विकसित होती दिख रही है। जन सहयोग से आयोजित यह ‘किर्साण महोत्सव’ वर्तमान मे उत्तराखंड के दो जिलों अल्मोड़ा व बागेश्वर के ग्रामीण क्षेत्रों तक अपना प्रभाव बढ़ा चुका है। लोगों मे खेती किसानी की व पशु पालन की दिलचस्पी, पुस्तेनी बन्जर भूमि को आबाद करने, पलायन रोकने मे मददगार व कृषि का सामान्य ज्ञान देने मे मील का पत्थर साबित हो रहा है। मातृशक्ति पहाड की रीढ़ की हड्डी बनी हुई है।
दो दिनों तक आयोजित इस महत्वपूर्ण किर्साण महोत्सव का प्रभावशाली मंच संचालन आशा बुटोला व त्रिलोक सिंह बुटोला द्वारा बखूबी किया गया।
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