प्रेस क्लब आफ इंडिया मे जोशीमठ त्रासदी पर आयोजित संगोष्ठी मे तर्क संगत मुद्दे उठे

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प्रेस क्लब आफ इंडिया मे जोशीमठ त्रासदी पर आयोजित संगोष्ठी मे तर्क संगत मुद्दे उठे
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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। प्रेस क्लब आफ इंडिया के खुले आंगन मे गायत्री देवी चैरिटेबल ट्रस्ट व श्रीकृष्ण विश्व कल्याण भारती द्वारा 11 जनवरी को उत्तराखंड आंदोलनकारी नेता धीरेन्द्र प्रताप की अध्यक्षता मे उत्तराखंड के वर्तमान ज्वलंत मुद्दे, जोशीमठ त्रासदी, चुनोती व समाधान पर एक तथ्य परक संगोष्ठी का आयोजन, केन्द्रीय सड़क अनुसंधान से जुडे भू-विज्ञानी किशोर रम्मानी, एनएचपीसी से जुडे भू-विज्ञानी डाॅ दिनेश त्रिपाठी, पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा, चिंतक जगदीश ममगई, सेवानिर्वत भारतीय पुलिस अधिकारी के एस जंगपानी, आंदोलनकारी नेता हरिपाल रावत, दिल्ली विश्व विद्यालय के प्रो.हरेन्द्र सिंह असवाल, वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री मंचासीनो के सानिध्य में आयोजित की गई।

जोशीमठ त्रासदी के ज्वलंत मुद्दे पर आयोजित संगोष्ठी मे उत्तराखंड सहित देश के नामचीन टीवी, प्रिंट व सोशल मीडिया से जुडे पत्रकारों के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओ से जुडे प्रबुद्ध जनो की बडी संख्या में उपस्थित मुख्य रही।

जानेमाने वरिष्ठ पत्रकारों व समाज के विभिन्न प्रबुद्ध जनो मे भारत भूषण, हबीब अख्तर, हरीश लखेडा, सुरेश नोटियाल, खुशाल जीना, सुनील नेगी, योगेश भट्ट, राजेन्द्र रतूडी, अनिल पंत, योगम्बर सिंह बिष्ट, अमरचंद तथा गोपाल उप्रेती, विनोद रावत, जे आर नोटियाल, टी एस भंडारी, प्रेमा धोनी, रोशनी चमोली व प्रताप शाही इत्यादि इत्यादि मुख्य थे।

संगोष्ठी मे जोशीमठ त्रासदी पर मुखर रूप से विचार व्यक्त करने वालों मे बलवीर सिंह धर्मवाण, सुषमा जुगराण ध्यानी, किशोर रम्मानी, डाॅ दिनेश त्रिपाठी, जगदीश ममगई, हरिपाल रावत, प्रदीप टम्टा व धीरेन्द्र प्रताप मुख्य रहे।

आयोजित संगोष्ठी मे वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, देवभूमि उत्तराखंड आज सबसे ज्यादा संकट से जूझ रही है। हिमालयी क्षेत्र मे जिस प्रकार अनियंत्रित तौर-तरीको से प्रकृति का दोहन किया जा रहा है, उसके परिणाम सामने आ रहे हैं। विश्व के जनमानस को चिपको आंदोलन के माध्यम से पर्यावरण का संदेश देने वाली गौरादेवी का रैणी गांव तक अनियंत्रित अंधी विकास की जद मे आकर भू-स्खलन की भैट चढ़ चुका है। पृथक राज्य के बावत जो सोचा गया था, सब चकनाचूर हो गया है। व्यक्त किया गया क्या दोबारा आंदोलन करना पडेगा?

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, विकास के नाम पर जो निर्माण कार्य किया जा रहा है वह कन्सलटैंटो के द्वारा नहीं, सीधा प्रशासनिक तंत्र की मौजूदगी मे होना चाहिए, भू-वैज्ञानिको की मौजूदगी मे होना चाहिए।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, सबको पता था जोशीमठ जिस पहाडी पर बसा है, विघ्नकारी रहा है, यहां आपदा आती रही है। समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया। आबादी, बडे होटल व मकानों का घनत्व बढ़ने से जोशीमठ की समस्या बढती गई है। आज जोशीमठ की सम्रद्ध संस्कृति विनाश की कगार पर खडी है।

व्यक्त किया गया, जोशीमठ हमारी आंखे खोल रहा है। अभी तक जान का नुकसान नहीं हुआ है। प्रकृति जगा रही है। सावधान कर रही है। जोशीमठ मे सुरक्षा के लिहाज से जो तीन जोन बनाऐ गए हैं, उनमे से सबसे सुरक्षित क्षेत्र के वाशिंदों को भी विस्थापित करना जरूरी है। हर लिहाज से जोशीमठ की प्रकृति का अवलोकन करना होगा। सुरक्षित राह तलाशनी होगी। युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा। उत्तराखंड मे जो विकास कार्य किए जा रहे हैं, सोच समझ कर किए जाने चाहिए। नीति नियोजन हिमालयी प्रकृति का गहन अध्ययन-मनन व अवलोकन कर किया जाना चाहिए। उत्तराखंड सरकार को विकास से जुडे कार्यो पर नियम कानून बनाने चाहिए।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, चारधाम विकास कार्य अच्छी योजना है, प्रोफेसनलो की ड्यूटी है, बिना नुकसान विकास कार्य हों। किए जा रहे विकास कार्यो के बावत उत्तराखंड के स्थानीय अनुभवी लोगों व भू-विज्ञानियों की जरूर राय ली जानी चाहिए।

भू-विज्ञानियो द्वारा व्यक्त किया गया, विषय गम्भीर है। विकास के नाम पर परियोजनाऐ चल रही हैं। सड़क, रेल, डैम इत्यादि परियोजनाओ पर ही आर्थिक विकास निर्भर है। परियोजनाओ के विकास पर साथ देना चाहिए। परियोजनाऐ आती हैं तो अन्वेषण किया जाता है। भूगर्भीय परिस्थितियों का आंकलन करना जरूरी होता है। अंत में गहन मंथन करने के बाद ही स्वीकृति प्रदान होती है।

भू-विज्ञानियो द्वारा व्यक्त किया गया, प्रकृति के साथ स्थिरता लाना जरूरी है। कारण जानना जरूरी है, जो जोशीमठ मे हुआ है ऐसा क्यों हुआ है? और भी अन्य जगह जो त्रासदी हो रही है, क्यों हो रही है? व्यक्त किया गया, निर्माण कार्य बढ़ने से जोशीमठ आज इस स्थिति में आया है। जो बार-बार ब्लास्ट किया जा रहा है उसका कितना फर्क पड़ रहा है, जानना जरूरी है। अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक सक्षम हो। विकास का मॉडल पहाड़ के हित में हो। अध्ययन मनन जरूरी है।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, उत्तराखंड केदारनाथ त्रासदी 2013 के बाद सम्पूर्ण देश के जनमानस का ध्यान इस भयावह त्रासदी पर गया था। एक बडी कमेटी का गठन हुआ था। हिमालयी अंचल पर रपट जमा हुई थी। बहुत कुछ कहा गया था। उस पर अमल कितना हुआ?
समय बीतते घटी त्रासदी से ध्यान हटा, बडी परियोजनाओ पर सोचा जाने लगा है।

व्यक्त किया गया, हाइड्रो पावर परियोजनाओ के निर्माण से उत्तराखंड के लोगों को कुछ नही मिलना। परियोजनाओ का लाभ प्राईवेट सैक्टर को जा रहा है। निर्माण कार्यो मे जो ब्लास्ट किया जा रहा है घातक है। नीचे खोदा जा रहा है, उपर टनल बनाऐ जा रहे हैं। खनन माफिया उत्तराखंड को बर्बाद कर रहे हैं। सवाल है पहाड के लोगों के लिए कोंन सी योजना बन रही है। पहाड के कितने भू-वैज्ञानिको से परियोजना कार्यो मे राय ली गई है? उक्त परियोजनाओ मे पहाड़ के कितने लोग काम कर रहे हैं? जमीनी हकीकत के मुताबिक पहाड के लोगों के लिए कुछ नहीं हो रहा है। सरकार प्रकृति का बिनाश कर, राजस्व प्राप्ति के लिए परियोजनाऐ बना रही हैं। वे कोंन लोग व भू-वैज्ञानिक हैं जिन्होंने इन परियोजनाओ को हरी झंडी दी है?

व्यक्त किया गया, आज दुनिया के अनुभवो से सीखने की जरूरत है। दुनिया के अन्य देशों में भी डैम व टनल बन रहे हैं। जल, जंगल, जमीन मुख्य है। दुनिया का संघर्ष इसी पर चल रहा है। हिमालय पर संकट होगा तो देश के करोडो लोग संकट से अछूते नहीं रहैगे। हाइड्रो पावर परियोजनाओ पर विचार हुआ था, ये परियोजनाऐ क्या चलनी चाहिए थी? व्यक्त किया गया, दुनिया में बडी परियोजनाओ का निर्माण कार्य बंद हो गया है। हाइड्रो पावर परियोजनाऐ नहीं बन रही हैं। उत्तराखंड मे पंचेश्वर बांध बनने से पांच लाख लोग विस्थापित होंगे। पहाड मे आदमी रहेगा नहीं तो विकास किसके लिए? विस्थापितो को बसाने की नीति बननी चाहिए। राज्य व केन्द्र सरकार को मिलकर नीति नियोजन करना चाहिए। उत्तराखंड की खूबसूरती उसकी प्राकृतिक संपदा है। जोशीमठ एक चेतावनी है।

व्यक्त किया गया, अगर सब वैज्ञानिक तरीके से हुआ है तो त्रासदियां कैसे आ रही हैं? विरोध सरकार का नहीं, विरोध है, इंसान की बात नहीं हो रही है। आ रही त्रासदियां मानव जनित हैं। 2013 केदारनाथ त्रासदी प्रकृति जनित व 2023 जोशीमठ त्रासदी मानव जनित है।

संगोष्ठी अध्यक्षता कर रहे धीरेन्द्र प्रताप के संबोधन के साथ ही आयोजित संगोष्ठी समापन की घोषणा की गई। आयोजित संगोष्ठी का मंच संचालन वरिष्ठ पत्रकार देव सिंह रावत द्वारा बखूबी संचालित किया गया।
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