महात्मा गांधी के जीवन दर्शन व विचारो पर आयोजित प्रभावशाली गोष्ठी सम्पन्न
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सी एम पपनैं
नई दिल्ली (नौएडा)। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 75वे शहीदी दिवस पर 30 जनवरी को इंटरनेशनल चैंबर आफ मीडिया एंड इंटरटैंनमैंट इंडस्ट्री (ICMEI) चैयरमैंन संदीप मारवाह की अध्यक्षता व सु-विख्यात साहित्यकार व पत्रकार अरुण त्रिपाठी, जानीमानी साहित्यकारा डाॅ परीन सोमानी तथा सुशील भारती निर्देशक प्रसारण मारवाह स्टूडियो के सानिध्य मे नौएडा स्थित मारवाह स्टूडियो मे महात्मा गांधी के जीवन दर्शन व विचारो पर आयोजित गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के इस अवसर पर देश के जानेमाने साहित्यकार, पत्रकार व बडी संख्या मे मे उपस्थित संस्थान विद्यार्थियो की उपस्थिति मुख्य रही।
महात्मा गांधी के जीवन दर्शन व विचारो पर आयोजित गोष्ठी मे मारवाह स्टूडियो प्रसारण निर्देशक सुशील भारती द्वारा संस्थान अध्यक्ष संदीप मारवाह, मुख्य व विशिष्ट अतिथि क्रमश सु-विख्यात साहित्यकार व पत्रकार अरुण त्रिपाठी तथा जानीमानी साहित्यकारा डाॅ परीन सोमानी का मंच पर पुष्पगुच्छ भैट कर स्वागत अभिनंदन किया गया।
सुशील भारती द्वारा संस्थान को मिली उपलब्धियों के बावत अवगत कराया गया, संस्थान ने 9 विश्व रिकार्ड अभी तक हासिल किए हैं। टीवी व लघु फिल्मो के निर्माण मे उनका संस्थान सबसे बड़ा निर्माता है। उनका संस्थान ए ए एफ टी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर विभिन्न सम्मानों से सम्मानित संस्थान है।
सुशील भारती द्वारा व्यक्त किया गया, महात्मा गांधी आज भी हमारे बीच हैं। उनका कृतित्व व व्यक्तित्व किसी से छिपा नही रहा है। गांधी से बड़ा नाम इस देश मे नहीं हुआ है। गांधी ने जितने भी आंदोलन किए इतिहास रहे।
शहीदी दिवस पर आयोजित गोष्ठी शुभारंभ से पूर्व संस्थान अध्यक्ष, निर्देशक व मुख्य व विशिष्ठ अतिथियों के कर कमलो दीप प्रज्ज्वलित किया गया। आयोजन के इस अवसर पर संदीप मारवाह द्वारा व्यक्त किया गया, आम जनमानस महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी नहीं जानता है, सिर्फ ‘महात्मा गांधी’ जानता है। क्यों कि उन्हे जनमानस द्वारा ‘महात्मा’ का दर्जा दिया गया। उन्हे ही महात्मा कहा गया, जिन्होंने पूरी जिंदगी लगा दी देश प्रेम मे। संदीप मारवाह द्वारा श्रोताओं से पूछा गया, क्या आज की पीढी ने देश के लिए कुछ किया है? कुछ कर सकते हैं? नहीं किया है तो करने की कोशिश करे। त्याग और तपस्या का जो राग देश मे पीढ़ियों से चल रहा है, समझना होगा। बात संस्कारों की है। एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के बावत सोचना जरूरी है।
गोष्ठी मुख्य अतिथि व बीज वक्ता तथा सु-विख्यात साहित्यकार, पत्रकार अरुण त्रिपाठी द्वारा महात्मा गांधी के जीवन दर्शन व उनके व्यक्त विचारो पर प्रभावशाली सारगर्भित प्रकाश डाल व्यक्त किया गया, गांधी कई विषयो मे बार-बार आते हैं। गांधी को कैसे समझा जाए, जाना जाए, याद किया जाए। गांधी विवादास्पद भी रहे। गांधी व गोड्स पर फिल्म भी आई है। आज की पीढी को गांधी पर फिल्म लेखन करना चाहिए। गांधी की शहादत को 75 वर्ष हो गए हैं। गांधी की जान को जो खतरा था, उन्हे चिंता कभी नहीं रही। 1947 तक गांधी कातिल के पीछे थे। गांधी ने हमे भय मुक्त किया। गांधी ने कहा हम गुलाम नहीं हैं। उन्होंने अंग्रेजो से लोहा लिया, दमदार आंदोलन किए।
अरुण त्रिपाठी द्वारा व्यक्त किया गया, 30 जनवरी महात्मा गांधी का साक्षात्कार बड़ा महत्वपूर्ण रहा, जो उन्होंने एक फोटो जर्नलिस्ट को दिया था। उन्हे किसी के प्रति घृणा नहीं थी। वे अहिंसा के पुजारी थे। अहिंसा ही गांधी जी के लिए हानिकारक रहा। वे अंतिम दिनों अकेले पड़ गए थे। वैश्विक युद्धो के बीच गांधी अहिंसा की पताका लेकर चले। गांधी अपने समय से पहले पैदा हो गए थे। वे विचित्र थे। जो सब जगह डरता रहा, लेकिन अंग्रेजी साम्राज्य से लोहा लिया। आज के युवा अगर ठान ले तो जरूर सफल होंगे।
व्यक्त किया गया, 1931 से पूर्व गांधी ईश्वर को मानते थे। उनके घर की नौकरानी ने उनसे कहा था, डरा मत करो, राम राम कहा करो। निर्भय रहोगे। सत्य के लिए गांधी जी जिए। सत्य के लिए मरे। बचपन में सत्यवादी हरीश चंद्र नाटक देखा था। वही नाटक गांधी ने जीवन में कई बार खेला। राष्ट्रीय रंगमंच पर वही सत्य का नाटक खेलते रहे। विश्व इतिहास के लिए यह बडी उपलब्धि रही।
अरुण त्रिपाठी द्वारा व्यक्त किया गया, गांधी सम्राज्यवाद, जातिवाद और क्रूरता के खिलाफ रहे। अराजगतावादी विचारों के नाते गांधी जाने गए। व्यक्त किया गया, गांधी का स्वराज आज कहा जा रहा है? उनका स्वराज अनुशासन से जुड़ा रहा। वे भारतियों की गरिमा चाहते थे। गांधी किसी के शत्रु नहीं थे। किसी से उनकी प्रतिद्वंदिता नहीं थी। 1931 तक वे बडे सैलीब्रेटी बन चुके थे।
व्यक्त किया गया, प्यारे लाल गांधी जी के निजी सचिव थे। उनकी किताब ‘पूर्ण आहुति’ तथा काशीनाथ सिंह का उपन्यास ‘उपसंहार’ गांधी जी के बावत बहुत कुछ व्यक्त करते नजर आते हैं। गांधी पर लिखित अधिकतर किताबे इन्ही किताबो को आधार बना कर लिखी गई हैं। व्यक्त किया गया, गांधी जी अंतिम दिनो मे लाचार हो गए थे। उन्होंने चमत्कारी शक्तियों का प्रयोग जारी रखा था। 78 वर्ष के गांधी को गोली मारना कोई बहादुरी नहीं थी, यह गांधी के विरोधी मानते थे, जो व्यक्ति कहता था, वह किसी का शत्रु नहीं। जो भारत सुभाष चन्द्र बोस बनाना चाहते थे, वही भारत गांधी बनाना चाहते थे।
व्यक्त किया गया, गांधी से बहुत शिकायते रही। गांधी को समझने के लिए तीन सौ वर्ष चाहिए। उन्होंने 72 वर्ष मे आंदोलन व 78 वर्ष की उम्र मे अनसन किया। पत्रकारो ने गांधी से पूछा था, सत्य कहा से लाए? गांधी ने जवाब दिया था, महाभारत से सत्य की सीख प्राप्त की थी। सत्य देखा नही रोशनी दिखाई दी। गांधी ने कहा था जिस दिन प्रेम सम्बंध खत्म हो जायेगा, उस दिन मानव सभ्यता समाप्त हो जायेगी। गांधी फ्रीडम की नही सभ्यता की लडाई लड़ रहे थे।
आयोजित गोष्ठी के इस अवसर पर डाॅ परीन सुमानी व अन्य और कई वक्ताओ द्वारा गांधी के जीवन दर्शन व विचारों पर राय व्यक्त की गई। प्रबुद्ध श्रोताओं द्वारा वक्ताओ से सवाल-जवाब किए गए। मारवाह इंस्टिट्युट के विद्यार्थियो द्वारा महात्मा गांधी के प्रिय भजन
वैश्नव जन को…।
रघुपति राघव…।
समूह गांन के रूप में प्रस्तुत किए गए।
गोष्ठी अध्यक्षता कर रहे संदीप मारवाह द्वारा गोष्ठी समापन से पूर्व अवगत कराया गया, सम्पूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा किताबे व स्टैच्यु महात्मा गांधी की ही हैं। विश्व के दो सौ देशो मे 30 जनवरी को महात्मा गांधी को श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं।
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