दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंची खाद्य तेलों की कीमत; आखिर क्या है कारण?
कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन से करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। इसी बीच आसमान छूती महंगाई ने लोगों का घर खर्च चलाना दूरभर कर दिया है।पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बाद अब खाद्य तेलों की कीमतें भी दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इससे भोजन का जायका बिगड़ने के साथ जेब ढीली हो रही है।आइए जानते हैं कि खाद्य तेलों की कीमत में आए इस उछाल के पीछे कारण क्या है।
सबसे पहले जानते हैं कि भारत में किन तेलों का होता है अधिक उपयोग
भारत में मुख्य रूप से लोग खाने के लिए सरसों, मूंगफली, वनस्पति, नारियल, सोयाबीन, सूरजमुखी, पॉम, ऑलिव और अलसी के तेल का उपयोग करते हैं।इनमें ग्रामीण इलाकों में सरसों, मूंगफली और वनस्पति तेल का अधिक उपयोग होता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में रिफाइंड, सूरजमुखी, नारियल, सोयाबीन, पॉम और ऑलिव ऑयल का अधिक उपयोग किया जाता है।सकल रूप से देखा जाए तो सरसों और रिफाइंड तेल की देश में सबसे ज्यादा खपत होती है।
उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1993-94 से 2004-05 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रति महीना खाद्य तेल की खपत 0.37 किलो से बढ़कर 0.48 किलो पर पहुंच गई थी।इसी तरह 2011-12 में यह मांग 0.67 किलो पर पहुंच गई थी। शहरी क्षेत्र में 1993-94 से 2004-05 के बीच प्रति व्यक्ति खपत 0.56 से बढ़कर 0.66 किलो और 2011-12 में 0.85 किलो पर पहुंच गई है। उसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं है।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति के हिसाब से वनस्पति तेलों की मांग भी लगातार बढ़ रही है। पिछले पांच सालों के दौरान देश में वनस्पति तेलों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 19.10 किलोग्राम से 19.80 किलोग्राम पर पहुंच गई है।