सेब की खेती ने बदल दिया किसानों का जीवन
सेब की खेती से रुकेगा पालयन, बढ़ेगा रोजगार – सुधीर चड्ढा
कैलाश जोशी
कोकाकोला व इंडोडच उन्नति फार्मर के द्वारा किये जा रहे प्रयाश प्रसंसनीय
पुरोला, उत्तरकाशी – उत्तराखंड के पहाड़ों में छुपा है पलायन से लड़ने का बेहतरीन राज, यहां की उपजाऊ माटी ने युवाओं के हाथ से सोना उगाकर उन्हें एक नए कल का सपना दिया है। उत्तराखंड में फल पट्टी(फ्रूट बैल्ट)के नाम से प्रख्यात पुरोला, सांकरी,मोरी,चकराता , रामगढ़, चाफी, धानाचुली, भीमताल, नाथुवाखान और मुक्तेश्वर अपने फलों के लिए एक अलग पहचान रखते हैं । सदियों से यहां सेब, खुमानी, पुलम, नाशपाती आदि की पारंपरिक खेती की जाती है । लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यहां अनियंत्रित निर्माण होने के कारण फल उद्योग का स्तर गिर गया, क्षेत्रवासियों ने जमीनें बेचकर खेती बन्द कर दी। अब ऐसे में इस उपजाऊ जमीन से मीठे रसीले सेब गायब हो गए थे , लेकिन उत्तराखंड के एक प्रगतिशील किसान सुधीर चड्डा ने ऐसा कमाल कर दिखाया कि केवल सेब की खेती की कम हाई डेंसिटी में अच्छी पैदावार हो रही है बल्कि उत्तराखंड से पलायन को रोकने का एक नया रास्ता भी तैयार हुआ है। जिससे युवाओं में रोजगार की अच्छी संभावनाएं देखने को मिल रही है
अगर सरकार सेव क्रांति देखना चाहती है उत्तरखंड में तो चड्ढा के ज्ञान का मिल सकता है लाभ
सुधीर चड्ढा से किसानों को भी है सिखने की जरुरत मेहनत व लगन से चड्ढा कर रहे उत्तराखंड का नाम रोशन
चड्ढा का कहना है कि
राज्य का युवा पहाड़ से अपनी खेती बाड़ी छोड़ बड़ी नौकरी की फिराक में राज्य से पलायन करने करने को मजबूर हुआ है। सेब की खेती से ज्यादा कमाई का सपना देख रहे युवाओं के लिए ऐसा रास्ता खुला है कि अब वह अपने घर पर ही सेव की खेती कर लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं । ऐसे युवाओं के लिए मिसाल बने हैं प्रगतिशील किसान सुधीर चड्ढा जिन्होंने न सिर्फ हाई डेनसिटी एप्पल ऑर्चर्ड लगाया है । इंडो डच तकनीक से 8 वैरायटियों का सफल परीक्षण करते हुए, इंडो डच टू पौधे को उत्तराखंड के पलायन रोकने के लिए कारगर साबित कर दिया है। इस सेब के पौधे में महज प्लांटेशन के 13 महीने बाद ही सुधीर चड्डा ने वैज्ञानिकों अधिकारियों और पंतनगर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के सामने सेब के पौधों की हारवेस्टिंग कर हर किसी को चकित कर दिया है।सुधीर चड्डा ने बताया कि आम तौर पर फलदार वृक्ष का पौधा लगाने के बाद वो 8 वर्ष में फल देता था लेकिन इस खेती से डेढ़ से दो वर्ष में फल उत्पादन होने लगता है ।
उन्होंने उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में किसानों को इस तकनीक से सेब उत्पादन के लिए प्रेरित किया। इंडो डच तकनीक से विकसित किए गए सेब के गाला, डेलिशियस(सुपर चीफ)समेत कुल 8 वैरायटी के पौंधे तैयार किए गए हैं जिसमे सौ प्रतिशत सर्टिफाइड ऑर्गेनिक एप्पल फार्मिंग है जबकि हिमांचल में ऑर्गेनिक फार्मिंग अब शुरू हुई है । इन सेबों की मंडी में बहुत मांग है और उनका पूरा माल पहले से ही बुक हो जाता है । इसका साइज, रंग और स्वाद भी मीठा है । प्रगतिशील किसान सुधीर चड्ढा का दावा है कि अगर पहाड़ के काश्तकार इन सेब के पौधे की खेती करते हैं तो बड़ी संख्या में पलायन रुक सकता है।
जरा इधर भी झांको सरकार ये होती है क्रांति
वाक़ई ये किसी चमत्कार से कम नहीं है उत्तराखंड सेब उत्पादन में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है
सेब की उन्नत खेती देख प्रभावित किसानों ने कहा की सुधीर चड्डा द्वारा अपनाए गए उन्नत खेती का पूरा प्रोसीजर से वह शासन प्रशासन को अवगत करा रहे है और जिले में किसानों को स्वावलंबी बनाने के लिए इस तरह की खेती की तकनीक को बढ़ावा देने का भरसक प्रयास कर रहे है । इसके अलावा सुधीर चड्डा की सेब की फार्मिंग पर वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उत्तराखंड के युवाओं के लिए वरदान साबित हो सकता है । पहाड़ में छोटी जोत के किसान इस तरह कम हाइट होने के सेब के विभिन्न प्रजातियों के खेती कर सकते हैं जिसमें काफी मात्रा में उत्पादन हो रहा है। यह उत्तराखंड से युवाओं का पलायन रोकने का एक कारगर उपाय बन सकता है।महज 13 महीने में एक सेब के पेड़ से 5 किलो फल निकलना बेहद उत्साहजनक परिणाम है।