उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगायक व जनकवि स्व.हीरासिंह राणा की 79वी जयंती सम्पन्न
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सी एम पपनैं
नई दिल्ली। उत्तराखंड के सु-विख्यात लोकगायक, जनकवि व कुमांऊनी, गढ़वाली व जौनसारी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार के पहले उपाध्यक्ष, स्व.हीरासिंह राणा की 79वी जयन्ती, ‘मानिला विकास समिति’ के सौजन्य से, डीपीएमआई सभागार, अशोकनगर दिल्ली मे सम्पन हुई। उक्त अवसर पर स्व.राणा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर संगोष्ठी, उनके द्वारा रचे व गाए गीतों का गायन व स्व.राणा के कुमांऊनी मे रचित गीतों का कुंदन सिंह उजराडी द्वारा, हिंदी मे किए गए अनुवाद पर प्रकाशित पुस्तक, ‘हे जन्माभूमि!’ का विमोचन, मंचासीन अतिथियों के द्वारा किया गया।
हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंकज बिष्ट की अध्यक्षता व अन्य मुख्य विशिष्ट अतिथि कुमांऊनी, गढ़वाली व जौनसारी भाषा अकादमी, दिल्ली सरकार के सचिव डा.जीतराम भट्ट, हिंदी अकादमी दिल्ली सरकार के पूर्व सचिव डा.हरिसुमन बिष्ट, डीपीएमआई चेयरमैंन डा.विनोद बछती, स्व.हीरासिंह राणा की पत्नी विमला राणा, लोकगायक शिवदत्त पन्त व योगगुरु रमेश कांडपाल के सानिध्य में कार्यक्रम आयोजित किए गए।
आयोजित कार्यक्रम का श्रीगणेश
स्व.हीरासिंह राणा के चित्र पर माल्यार्पण, दीप प्रज्वलन व हेमा व विदुषी बंगारी के द्वारा स्व.राणा द्वारा रचित मंगलाचरण गीत-
गंगा जमुना बगनी दादी हमर देश मा…।
के गायन से किया गया।
आयोजक ‘मानिला विकास समिति’ अध्यक्ष विरेन्द्र सिंह बंगारी, महासचिव महेशचन्द्र उपाध्याय तथा समिति के अन्य पदाधिकारियो द्वारा, खचाखच भरे सभागार में, मंचासीन अतिथियो को पुष्पगुच्छ व शाल ओढा कर सम्मानित किया गया। सभागार मे उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनो का अभिनंदन किया गया। समिति के क्रियाकलापो से अवगत कराया गया। मुख्य विशिष्ट अतिथियो द्वारा, संगोष्ठी मे, सु-विख्यात मौलिक रचनाधर्मी व सुर-सम्राट रहे, स्व.हीरासिंह राणा के कृतित्व व व्यक्तित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। सुप्रसिद्ध लोकगायक शिवदत्त पंत, आशा जोशी, हेमा व विदुषी बंगारी, महेश उपाध्याय तथा नीरज बवाडी द्वारा स्व.राणा द्वारा रचे-गाए, सुप्रसिद्ध जनगीतो का गायन कर, समा बांधा गया।
संगोष्ठी मे मुख्य वक्ताओं, डा.जीतराम भट्ट, डा.हरिसुमन बिष्ट, डीपीएमआई चेयरमैंन डा.विनोद बछती, लोकगायक शिवदत्त पन्त व योगगुरु रमेश कांडपाल द्वारा, स्व.हीरा सिंह राणा के कृतित्व व व्यक्तित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर व्यक्त किया गया, स्व.राणा जी ने अपने सरोकारों को अपने गीतों मे रच कर उत्तराखंड के लोक साहित्य व लोक गायन पर अपनी सृजनशीलता जीवन के अंतिम समय तक, निरंतर बनाए रखी। अपने मधुर कंठ के गायन व हुड़का वादन से लोगो को बहुत रिझाया, मंत्रमुग्ध किया। उन्हे सुनने के लिए लोग सदा ललाइत रहते थे। श्रोताओं ने जब भी जिस किसी गीत को गाने की फरमाइश की, स्व.राणा जी ने उसे सहर्ष गाया। यही धारणा स्व.हीरासिंह राणा को एक जनगायक की प्रसिद्धि की ओर ले गई।
वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, चेतना जगा कर फलक का व्यापक रहना, समाज की संवेदनाओ को कविताओं व गीतों मे उतार कर, निराले प्रभावशाली अंदाज मे प्रस्तुत कर, समाज के प्रत्येक वर्ग को झकझोरना, जिनमे दुःख, दर्द, संघर्ष व पलायन की पीड़ा के साथ-साथ प्रकृति का सौन्दर्य भी समाया रहा, स्व.राणा जी की रचनाशीलता की ताकत के रूप मे चरितार्थ हुआ था। उनके गीतों व कविताओ मे पिरोये गए शब्दों का गहराई से अवलोकन कर उनमे, समुद्र की गहराई देखी जा सकती है।
वक्ताओं द्वारा व्यक्त किया गया, जन आंदोलनों के दौरान स्व.राणा जी के स्व-रचित क्रांतिकारी गीतों व उनकी गायकी ने न सिर्फ उत्तराखंड के जनमानस, बल्कि राष्ट्रीय फलक पर चेतना जगाने का कार्य भी किया, जिस बल उनको राष्ट्रीय कवि के तौर पर पहचान मिली।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पंकज बिष्ट द्वारा व्यक्त किया गया, स्व.राणा जी की रचनाओं ने लोगो को जीवन के उतार चढ़ाव के रास्तों से अवगत कराया। लोगों को संघर्ष करने की सीख प्रदान की। निष्ठा व सच्चाई की राह भी सुझाई। यह रचनाधर्मिता एक मिशाल के रूप मे ही नही देखी गई, बल्कि स्व.राणा जी की प्रसिद्धि व खासियत के रूप मे चर्चा का विषय कई पीढ़ियों तक बनी रहेगी। पंकज बिष्ट द्वारा व्यक्त किया गया, स्व.हीरासिंह राणा की अपार व अदभुत कला को नही आंका जा सकता। उनके द्वारा रचे व श्रीमुख से गाए गीतों को सुन, प्रवास मे गांव की याद आती है, अपनी जडों से मिलने का अवसर मिलता है। वे निरंतर उत्तराखंड की गायन कला का संवर्धन करते रहे, प्रेरणा श्रोत बने रहे, आगे भी आने वाली पीढी के बीच प्रेरणा श्रोत बने रहैंगे। उनके द्वारा उत्तराखंड की लोक संस्कृति, साहित्य व लोकगायन के क्षेत्र मे दिए गए अतुलनीय योगदान को पीढ़ियों तक याद किया जाता रहेगा।
इस अवसर पर लेखक आनंद ध्यानी की पुस्तक, ‘स्वामी रामानंद चरितावली’ तथा सुरेन्द्र सिंह रावत द्वारा अंग्रेजी में रचित पुस्तक ‘ FIVE NITIES’ का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। आयोजित जयंती समारोह का मंच संचालन, नीरज बवाड़ी द्वारा बखूबी किया गया।
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