सर्दियों में पहाड़ों में बहुतायाद से होने वाला “माल्टा”

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सर्दियों में पहाड़ों में बहुतायाद से होने वालामाल्टा

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

पहाड़ी इलाकों में होने वाले माल्टा के स्वाद के सभी लोग मुरीद होते हैं। देश और दुनिया के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना वाले माल्टा की उत्तराखंड में बेकद्री होती आई है। विपणन व प्रसंस्करण की उचित व्यवस्था न होने से यहां के मायूस फल उत्पादकों को मजबूरन औने पौने दामों में फल बेचने को विवश होना पड़ रहा है।पहाड़ के ऊंचाई वाले इलाकों में सीट्रस प्रजाति के फलों की पैदावार काफी होती है। विकासखंड धौलादेवी के अन्तर्गत सुकना, चपडोला, आटी, मुनौली, खेती, धूरा, जाजर, अंडोली, पनुवानौला, जागेश्वर सहित ऊंचाई वाले अनेक गांवों में नींबू प्रजाति के फलों का काफी उत्पादन होता है। माल्टा, संतरा और नींबू सरीखे फलों की पैदावार काफी होने के बावजूद मेहनत का वाजिब फल काश्तकारों को नहीं मिल पाता है। प्रगतिशील काश्तकारों का कहना है कि उद्यान विभाग की ओर से विपणन व प्रसंस्करण की व्यवस्था न होने के कारण गांव के लोग अपनी उपज को अपने संसाधनों और संपर्को के जरिए औने-पौने भाव पर बेचने को विवश हो जाते हैं। काश्तकारों का कहना है कि जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों से आए किन्नू पूरे देश में उचित दाम पर बिकता है, मगर उत्तराखंड का माल्टा राज्य बनने के 21 साल बाद भी बाजार के लिए तरस रहा है। धौलादेवी ब्लाक में सैकड़ों हेक्टेयर क्षेत्र में सीट्रस प्रजाति के फलों का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों के अभाव व विपणन की व्यवस्था राम भरोसे होने से गरीब तबके का उत्पादक हमेशा ही मायूस रहता है। जंगली जानवरों का आतंक भी पहाड़ के जैविक उत्पादों और फलों की बेकद्री बढ़ाने का एक अहम कारक है।उत्तराखंड सरकार ने गन्ना किसानों के बाद अब पर्वतीय क्षेत्र के किसानों को राहत देते हुए माल्टा व पहाड़ी नींबू गलगल के समर्थन मूल्य में वृद्धि की है। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए सी-ग्रेड के माल्टा का आठ रुपये प्रति किलो और गलगल का पांच रुपये प्रति किलो समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। बीते वर्ष के मुकाबले समर्थन मूल्य में एक रुपये की वृद्धि की गई है।कृषि मंत्री ने बताया कि विभाग की ओर से माल्टा व गलगल का समर्थन मूल्य घोषित करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया था। उन्होंने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। राज्य में इस वर्ष 1000 टन माल्टा की खरीद पर 80 लाख रुपये व गलगल की खरीद पर 25 लाख रुपये एवं अन्य खर्चों समेत 1.31 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि माल्टा व गलगल के लिए प्रमुख उत्पादक जिलों में उद्यान विभाग ने उपार्जन संग्रह केंद्र भी तय किए हैं। जिला उद्यान अधिकारियों को ऐसे केंद्रों के माध्यम से खरीद के लिए विभागीय कार्मिकों को क्रियाशील करने के निर्देश दिए गए हैं।इस योजना से राज्य में स्थापित प्रसंस्करण इकाइयों को उचित दर पर कच्चे माल की आपूर्ति हो सकेगी। उन्होंने बताया कि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की ओर से राज्य भर में इस योजना के क्रियान्वयन का जिम्मा उत्तराखंड औद्यानिक परिषद को दिया गया है। परिषद औद्यानिक उत्पादों के विपणन के लिए अधिकृत है।माल्टा में इतने गुण हैं कि इसे धरती का सबसे सेहतमंद फल कहा जाता है. स्थानीय निवासी ने बताया कि सर्दियों के मौसम में होने वाले माल्टे का सेवन शरीर लिए काफी लाभदायक है. प्रतिदिन जूस पीने से व्यक्ति के शरीर में तरावट रहती है साथ ही कोरोना के इस दौर में मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी यह काफी मददगार साबित हो रहा है. माल्टा से पहाड़ों में खटाई बनाई जाती है. इसमें घर के बने हुए मसालों को मिलाकर इसका सेवन किया जाता है. ये मनुष्य के शरीर के लिए काफी लाभदायक है.सर्दियों में उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में बहुतायत से होने वाला माल्टा फल पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए आर्थिकी का आधार बन सकता है,हालांकि इसे उत्तराखण्ड सरकार की नाकामी ही कहा जाएगा कि सभी पहाड़ी जनपदों में ही माल्टा को संरक्षित करने हेतु कोल्ड स्टोरेज भी उपलब्ध नहीं हैं.