जीत के बाद की भूल का दर्द झेलते हैं वीर सैनिक

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जीत के बाद की भूल का दर्द झेलते हैं वीर सैनिक

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

16 दिसंबर 1971 को भारतीय सैनिकों ने अपने आदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाकर विजय प्राप्त की। भारत के वीर सैनिकों की बहादुरी के बदौलत इस युद्ध को 14 दिनों में समाप्त कर दिया गया था। सेना ने इस युद्ध को जीत कर 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया और शिमला समझौते के तहत ही उन्हें रिहा किया गया। तब से इस दिन को प्रतिवर्ष पूरे देश में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में युद्ध की शुरुआत 25 मार्च की आधी रात को अचानक हुई थी, जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला किया। 16 दिसंबर को यह युद्ध समाप्त हुआ, जब पाकिस्तान ने हार मान लिया और ढाका में बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों एवं भारतीय सेना के समक्ष बिना शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया। इंडियन आर्मी के इस जांबाज मेजर ने बांग्लादेश के सिलहट की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। मेजर जनरल इयान कोर्डोजो (Major General Ian Cardozo) को 1971 की भारतपाक लड़ाई में अदम्य साहस के लिए जाना जाता है। 5 गोरखा राइफल्स में मेजर इयान कोरडोजो 1971 की लड़ाई में बारुदी सुरंग फटने से घायल हो गए थे। इस पर उन्होंने डॉक्टरी मदद ना मिलने पर खुद ही अपनी टांग को खुकरी से काट दिया था, ताकि पूरे शरीर में इनफेक्शन ना फैल सके।एक इंटरव्यू मेजर इयान कोर्डोजो जिन्हें लोग मेरजर कारतूस के नाम से भी जानते हैं ने बताया था किसरेंडर करने के बाद भी बीएसएफ के एक प्लाटून कमांडर को शक था कि खतरा अभी बरकरार है। इसी दौरान बारूदी सुरंग में ब्लास्ट हुआ और मेरा एक पैर उड़ गया। मेरे साथी मुझे उठाकर पलटन में ले गए। मॉरफिन और कोई दर्द निवारक दवा नहीं मिली। मैंने अपने गुरखा साथी से बोला कि खुखरी लाकर पैर काट दो, लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं हुआ। फिर मैंने खुखरी मांगकर खुद अपना पैर काट लिया और उसके बाद मेरे एक साथ ने उस कटे हुए पैर को वहीं जमीन में गाड़ दिया।मेजर कार्डोजो ने आगे बताया कि, ‘जब हमारी गोरखा रेजीमेंट हेलिकॉप्टर से बांग्लादेश पहुंची तो वहां भारी गोलाबारी चल रही थी। मोर्टार से गोले दागे जा रहे थे, भारत और पाकिस्तानी सेना में भीषण लड़ाई छिड़ी हुई थी। युद्ध में काफी जवान घायल हो रहे थे और मारे भी जा रहे थे। एमआई रूम पर गोलीबारी हुई और हमारे 8 जवान शहीद गए। हमें बताया गया कि 48 घंटे में बड़ी पलटन जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं नहीं हुआ और हमने 10 दिन तक लड़ाई लड़ी। हमारे पास खानेपीने का सामान खत्म हो रहा था और गोला-बारूद भी कम हो रहा था। इस बीच पाकिस्तान को ये मैसेज दिया गया कि उनके सैनिक घिरे हुए हैं, आप लोग हथियार डाल दें। इसके बाद करीब एक हज़ार पाकिस्तानी सैनिक 4-5 सफेद झंडों के साथ हथियार डालने हमारे फॉरवर्ड कंपनी कमांडर के पास पहुंचे थे।’ मेजर कार्डोजो ने आगे बताया कि पाकिस्तान के एक युद्धबंदी सर्जन मेजर मोहम्मद बशीर को उनका ऑपरेशन करने का आदेश मिला था। पहले तो उन्होंने ऑपरेशन कराने से मना कर दिया, लेकिन बाद में पता चला कि भारतीय सेना के पास कोई हेलिकॉप्टर उपलब्ध नहीं है तो वह पाकिस्तानी मेजर बशीर से ऑपरेशन कराने के लिए तैयार हो गए। कार्डोजो के मुताबिक उस वक्त उन्होंने उस डॉक्टर को उन्हें धन्यवाद तक नहीं कहा जिसका उन्हें आज भी मलाल है। गोरखा रेजीमेंट के मेजर कार्डोजो ने लड़ाई में अपना पैर गंवाने के बाद भी जीवन में कभी हार नहीं मानी। मेजर कार्डोजो इंडियन आर्मी के पहले डिसएबल अफसर बने, जिन्होंने एक बटालियन को कमांड किया। सरकार ने पाक युद्ध में बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल से नवाजा था। चार लोगों को 1971 की लड़ाई में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गयाः मेजर होशियार सिंह, फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल और लांस नायक अल्बर्ट एक्का। अल्बर्ट एक्का को छोड़कर सभी पदक पश्चिमी क्षेत्र में ही हासिल हुए। पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी कमान के कमांड-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जे. एस. अरोड़ा के सामने समर्पण किया था। उस समय लेफ्टिनेंट जनरल के.पी. कैंडेथ पश्चिम कमान में कमांड-इन चीफ थे। जिस तरह इस वक्त उत्तरी कमान है, यह उस समय इस तरह का नहीं था। कैंडेथ के जिम्मे का इलाका बहुत बड़ा था- जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब और उत्तरी राजस्थान तक। उससे दक्षिण- जैसलमेर और बाड़मेर से सटे राजस्थान सीमा से गुजरात में कच्छ के रन तक दक्षिणी कमान के कमांड-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जी. जी. बेवूर के पास था। पाकिस्तान सेना की तरफ से पंजाब में आक्रमण और राजस्थान में धावों का मुंहतोड़ जवाब दिया गया। लेकिन चूंकि पूर्वी सीमा पर अधिक ध्यान देना जरूरी था, इसलिए भारत सरकार ने निर्णय लिया कि इस ओर आक्रमणकारी रक्षात्मक रणनीति रखना सबसे अच्छा व्यावहारिक तरीका होगा। विजय दिवस 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है। इस युद्ध के अंत के बाद 93 हजार पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था। 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी।इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र हो गया, जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। पूर्वी पाकिस्तान (आज बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। 16 दिसंबर की शाम जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर किए। भारत युद्ध जीता। हर साल इस दिन को हम विजय दिवस के रूप में मनाते हैं।