कार्बेट टाइगर रिजर्व के घने जंगल में जीने के लिए अभिशप्‍त हैं वन गुर्जर,

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कार्बेट टाइगर रिजर्व के घने जंगल में जीने के लिए अभिशप् हैं वन गुर्जर,


डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

कार्बेट टाइगर रिजर्व के ढेला और झिरना रेंज में घने जंगलों के बीच रह रहे वन गुर्जर बाघों की दहाड़ और हाथियों की चिंघाड़ के बीच जीवन यापन करने के लिए अभिशप् हैं। वर्ष 2002 में उनके विस्थापन की सूची बनी थी, तब इन दोनों रेंजों में 57 परिवार थे, जो अब बढ़कर 122 हो गए हैं। उच्च न्यायालय ने भी हाल ही में कार्बेट के सोना नदी रेंज में विस्थापन से छूटे वन गुर्जरों को दस लाख और एक प्लाट देने का फैसला सुनाकर बड़ी राहत दी थी। मगर ढेला और झिरना रेंज के वन गुर्जरों के विस्थापन की स्थिति जस की तस बनी हुई है। जिस पर सरकार से भी सिर्फ आश्वासन ही मिला है। बावजूद इन रेंजों में बसे गुर्जरों को आज भी विस्थापन का इंतजार है कुछ साल पूर्व केंद्र सरकार ने आदेश दिया था कि वन गुर्जरों को पांच लाख रुपये और पांच बीघा जमीन देकर अन्यत्र बसा दिया जाए। मगर उस समय वन गुर्जर इस फरमान से सहमत नहीं हुए। वन गुर्जर नबाबुदीन बताते हैं कि 2018 में उन्हें अनाधिकृत रूप से हटाए जाने की कोशिश हुई थी, जिस कारण उन्हें बचाव के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। तब कोर्ट से स्टे मिला था, जिसमें कहा गया कि जब तक विस्थापन नहीं किया जाता, तब तक इन्हें परेशान न किया जाए। वर्ष 2002 में जब विस्थापन के लिए सूची बनाई गई थी तो उस समय ढेला और झिरना रेंज के साथ सोना नदी क्षेत्र के वन गुर्जर भी साथ थे। लेकिन बाद में सोना नदी के गुर्जरों को बसा दिया गया और झिरना एवं ढेला रेंज के गुर्जरों को बफर जोन में होने के कारण सूची से अलग कर दिया गया। नबाबुद्दीन बताते हैं कि उनके पास मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। उनके बच्चे स्कूल में पढऩा चाहते हैं, पर कोई सुविधा ही नहीं है। जंगली जानवरों के बीच जीवन कब तक ऐसे ही जीवन चलेगा, इसका भी कुछ पता नहीं है। कार्बेट टाइगर रिजर्व पार्क के निदेशक राहुल का कहना है कि ढेला और झिरना रेंज में जहां पर वन गुर्जर रह रहे हैं, वह कार्बेट पार्क के बफर जोन में आता है। इसलिए एनटीसीए की गाइडलाइन के अनुसार उन्हें कोई धनराशि देय नहीं है। इस संबंध में उच्च स्तर से विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए धनराशि दिए जाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। जिसे एनटीसीए की ओर से अनुमोदित किए जाने के बाद ही आगे की कार्यवाही की जाएगी। कॉर्बेट पार्क के सोना नदी में क्षेत्र में छूटे हुए 24 वन गुर्जरों के परिवारों को 10 लाख रुपये तीन माह के भीतर देने को कहा है. सोना नदी क्षेत्र के 24 छूटे हुए वन गुर्जरों के परिवारों को 6 माह के भीतर प्लाट देने के निर्देश दिए हैं. वन गुर्जरों के सभी परिवारों को जमीन के मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण-पत्र छह माह के भीतर देने को कहा है. राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जरों के उजड़े हुए परिवारों को जीवनयापन के लिए सभी जरूरी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा है. जैसे खाना, आवास, मेडिकल सुविधा, स्कूल, रोड और उनके पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था और उनके इलाज हेतु वेटनरी डॉक्टर उपलब्ध कराने को कहा है. राजाजी नेशनल पार्क के वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु सरकार से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा कहा है.इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश न्यायमूर्ति की खंडपीठ में हुई. कोर्ट ने एनजीओ थिंक एक्ट राइजिंग फाउंडेशन और हिमालयन युवा ग्रामीण समेत अन्य की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की. सरकार ने वन गुर्जरों के विस्थापन हेतु जो नियमावली बनाई है, वह भ्रमित करने वाली है. क्योंकि उसमें मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था नहीं की गई है. पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने अधिकतर परिवारों को मुआवजा दे दिया है और उनके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है. शीघ्र ही इन लोगों को मालिकाना हक सम्बन्धी प्रमाण-पत्र जारी किया जा रहा है.मामले के अनुसार याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर याचिकाओें में कहा गया है कि सरकार वन गुर्जरों को उनके परंपरागत हक हुकूकों से वंचित कर रही है. वन गुर्जर पिछले 150 सालों से वनों में रह रहे हैं और उन्हें हटाया जा रहा है. उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं. भूमि के कानूनी अधिकारों के बावजूद उत्पीड़न एक कड़वा सत्य है। अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 या वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत, वन गुर्जर को अधिकार है कि वन क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्र में अपने मवेशियों को चरा सकें। उपरोक्त कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि उन समुदायों को जो पारंपरिक तौर पर घूम-घूमकर चरवाही करते रहे हैं, उन्हें चरवाही के मौसम में यह अधिकार मिलता रहेगा। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन्हें इसकी इजाजत नहीं दी जाती। वनाधिकार कानून इस उद्देश्य से लाया गया था कि देश में करीब दस करोड़ वनवासियों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म किया जा सके।लिहाजा, उनको सभी अधिकार देकर विस्थापित किया जाय. जंगली जानवरों के बीच जीवन कब तक ऐसे ही जीवन चलेगा, इसका भी कुछ पता नहीं है।