सीएम बदले फिर भी इन चार बड़े प्रोजेक्‍ट पर आगे नहीं बढ़ सका

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सीएम बदले फिर भी इन चार बड़े प्रोजेक् पर आगे नहीं बढ़ सका

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

नैनीताल जिले के भाभर क्षेत्र में बसे हल्द्वानी का नैसर्गिक सौंदर्य भी किसी से कम नहीं है। यूं तो यह कुमाऊं का प्रवेश द्वार है और सबसे बड़ी मंडी है वर्तमान दौर में कुमाऊं की पहाड़ी इलाके से 70 से 80 प्रतिशत आबादी यहां बस चुकी है। इस लिए हल्द्वानी को मिनी कुमाऊं कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। कभी हल्दू यानि कदम्ब की बहुतायत के चलते इसके नाम का सिलसिला शुरू हुआ। हल्दीवन व हल्दूवन से फिलहाल लंबे समय से इसको हल्द्वानी कहा जा रहा है। हल्द्वानी की एक विशेषता रही है कि यह जाड़ों में नैनीताल का जिला व मंडल मुख्यालय रहा है। अंग्रेज शासन से चली आ रही यह व्यवस्था अब नहीं रही लेकिन उत्तराखंड का नैनीताल पहला जिला है जहां कमिश्नर व डीएम, डीआईजी व एसएसपी के मुख्यालय के अलावा हल्द्वानी में आवास व दफ्तर भी हैं किसी भी शहर में नागरिक सुविधाओं का खास महत्व होता है। बिजली और पानी की निरंतर आपूर्ति के साथ बेहतर सड़कें उस शहर ही आर्थिक संपन्नता को बढ़ाती हैं। यदि हम कुमाऊं के मुख्य प्रवेश द्वार हल्द्वानी ग्रीन सिटी की बात करें तो तमाम सरकारी दावों के बावजूद मायूसी ही हाथ लगती है। हल्द्वानी को कुमाऊं की व्यापारिक राजधानी माना जाता है क्योंकि हल्द्वानी से ही पर्वतीय इलाकों को राशन और सभी जरूरी सामान सप्लाई होता है। यही कारण है कि शांत वातावरण और हरियाली के चलते सैन्य, आईएएस एवं पीसीएस अधिकारियों ने सेवानिवृत्ति के बाद हल्द्वानी को ही अपना आशियाना बनाया। व्यापारिक दृष्टिकोण से आज हल्द्वानी में तमाम बड़े शोरूम और शॉपिंग मॉल विद्यमान हैं, जो आर्थिक संपन्नता का तो अहसास कराते हैं, लेकिन शहर के मुख्य और संपर्क मार्गों पर जगह-जगह गड्ढे और टूटी-फूटी सड़कें सरकारी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाती हैं। हल्द्वानी के कई मार्ग गड्ढों से भरे पड़े हैं। इनमें वे सड़कें भी शामिल हैं, जिनसे प्रमुख सरकारी कार्यालय होने के साथ ही पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के आवास सटे हैं। स्टेडियम की दोनों तरफ की सड़कों का तो जैसे कोई मानक ही नहीं हैं। स्टेडियम की एक तरफ की टूटी-फूटी सड़क पर पत्थर तो डाल दिए गए, लेकिन अफसर बनाना भूल गए। पहले लोग गड्ढों में गिरकर और अब इन पत्थरों से फिसलकर चोटिल हो रहे हैं।ट्रैफिक की भी मुख्य समस्या है।पार्किंग की कमी के चलते जहां-कहां लोग अपनी गाड़ियां खड़ी करते हैं। शहर, जनसंख्या और कारोबार विस्तार के साथ ही दोपहिया और चौपहिया पहिया वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, जबकि उस हिसाब से हल्द्वानी में सड़कों की मरम्मत, सड़कों का विस्तार एवं पार्किंग की व्यवस्थाओं का विस्तार नहीं हो पाया। इसके कारण सड़कों और बाजारों में जाम की समस्या भी चुनौती बन गई है। थोड़ी सी बरसात में सड़कों का तालाब बन जाना आम बात है।साल बीतने को तैयार हैं। सरकार से लेकर जनता भी हिसाब जोडऩे में लगी है कि 2021 में क्या खोया क्या पाया। बात अगर हल्द्वानी से जुड़े विकास कार्यों की करें तो 46 साल पुराने प्रोजेक्ट जमरानी बांध को लेकर ही कुछ उम्मीद जगी है। धारा 11 लागू होने की वजह से बांध निर्माण एरिया की जमीन अब किसी को बेची या खरीदी नहीं जा सकती। लेकिन आइएसबीटी, रिंग रोड और इंटरनेशनल चिडिय़ाघर को लेकर मामला आगे नहीं बढ़ सका। अब देखना यह है 2022 में नई सरकार का इन प्रोजेक्ट को लेकर क्या रुख रहेगा।1975 में बांध की पहली डीपीआर 61.25 करोड़ की थी। 1989 में इसमें संशोधन के बाद 144 करोड़ की जरूरत पड़ी। लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब 400 हेक्टेयर में बनने वाले बांध को 2700 करोड़ की जरूरत है। बजट एडीबी से मिलेगा। इसलिए सर्वे व प्रस्ताव में उसके हर सुझाव को शामिल किया जा रहा। बांध की जद में आ रहे छह गांव के लोगों के विस्थापन को किच्छा के पराग फार्म में जगह ढूंढी गई है। बस अंतिम फैसला शासन से होना है। हालांकि, दिसंबर लास्ट में धारा 11 का आदेश आने से एक बड़ी बाधा जरूर दूर हुई है। भूमि अधिग्रहण की इस धारा के मुताबिक अब निजी नाप भूमि पर खरीद – फरोख्त बंद हो चुकी है।तत्कालीन वित्तमंत्री के प्रयासों से गौलापार में स्टेडियम के बगल में आइएसबीटी का काम शुरू हुआ था। तब इसका बजट 75 करोड़ था। लेकिन भाजपा सरकार आते ही प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया। जिसके बाद दावा किया गया कि तीनपानी में ओपन यूनिवर्सिटी के बगल में नई जमीन ढूंढ ली गई है। अब यहां निर्माण होगा। लेकिन पांच साल में एक पिलर तक खड़ा नहीं हो सका। फिलहाल गौलापार से प्रोजेक्ट शिफ्ट करने का मामला हाई कोर्ट में भी चल रहा है।2017 में भाजपा की सरकार बनने पर तब सीएम ने 22 अप्रैल को पहली बार नैनीताल पहुँचने पर हल्द्वानी में रिंग रोड बनाने की घोषणा की थी। तब इस बड़े प्रोजेक्ट की लागत 400 करोड़ आंकी गई थी। 51 किमी लम्बी रिंग रोड कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी को जाम के संकट से निजात दिलाने को बेहद अहम मानी गई। लेकिन तमाम सर्वे व डिजाइन में सर्वे के बावजूद मामला आगे नहीं बढ़ सका। राज्य सरकार ने इसका प्रस्ताव केंद्र के पास भेजा है। केंद्र से पैसे मिलने पर अब कुछ होगा। इस प्रोजेक्ट को अब करीब 1800 करोड़ का बजट चाहिए।गौलापार के चिडिय़ाघर का प्रस्ताव कांग्रेस शासन में साल 2015 में बना था। तराई पूर्वी वन प्रभाग की 412 हेक्टेयर जमीन में यह जू बनना था। 2019 में इसका काम पूरा करने में 300 करोड़ से अधिक की लागत बताई गई। प्रस्ताव को मंजूरी मिलने पर ही पिछली सरकार में जू निदेशक, अपर निदेशक और रेंजर समेत अन्य पद भी बना दिए गए। मगर बजट के अभाव में शहर का एक और अहम प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में नजर आया। 13 किमी बाउंड्री वाल के अलावा अंदर एक कृत्रिम झील ही यहां बन सकी है। हकीकत यह है कि बैठकों और वीसी में इस प्रोजेक्ट को लेकर कई बार चर्चा तो हुई लेकिन धरातल पर कुछ देखने को नहीं मिला। उत्तराखंड आज एक और नए साल में प्रवेश कर लेगा। हल्द्वानी को कुमाऊं का प्रवेश द्वार के साथ आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है। ऐसा नहीं कि बीते 20 सालों में शहर में कोई काम नहीं हुआ। हल्द्वानी को काफी कुछ मिला, मगर अब भी कुछ बड़े प्रोजेक्टों का धरातल पर उतरना बाकी है। बदलते समय और बढ़ती आबादी के हिसाब से यह जरूरत भी है। अब उम्मीद करते हैं कि अगले साल में इन प्रोजेक्टों की स्थिति जरूर बदलेगी।