क्या किसी बड़ी चेतावनी की ओर इशारा कर रहे हैं छोटे भूकंप!

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क्या किसी बड़ी चेतावनी की ओर इशारा कर रहे हैं छोटे भूकंप!

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भूकंप की दृष्टि से उत्तराखंड बेहद संवेदनशील है। राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच की बात करें इसमें रुद्रप्रयाग (अधिकांश भाग), बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जिले आते हैं। ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी व अल्मोड़ा जोन चार में हैं और देहरादून व टिहरी दोनों जोन में आते हैं। उत्तरकाशी में 20 अक्टूबर 1991 को 6.6 तीव्रता का भूकंप आया था। उस समय हजारों लोग मारे गए थे। साथ ही संपत्ति को भी अत्यधिक क्षति हुई थी। इसके बाद 29 मार्च 1999 में चमोली जिले में उत्तराखंड का दूसरा बड़ा भूकंप आया। भारत के उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) राज्य में आया यह भूकंप हिमालय की तलहटियों में 90 वर्षों का सबसे शक्तिशाली भूकंप था। इस भूकंप में 103 लोग मारे गए थे। हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के लिए भी छोटे भूकंप खतरा बन सकते हैं। ढाई से तीन रिक्टर स्केल तक भूकंप आना आम बात है। इतनी कम तीव्रता के भूकंप महसूस नहीं होते हैं, लेकिन ये ग्लेशियरों में कंपन पैदा कर उनको कमजोर बनाते हैं, जिससे ग्लेशियर धीरेधीरे कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसे में बड़ा भूकंप आने की दशा में ग्लेशियरों के टूटने की आशंका ज्यादा रहती है। वैसे भी हिमालयी क्षेत्र में इंडोयूरेशियन प्लेट की टकराहट के चलते जमीन के भीतर से ऊर्जा बाहर निकलती रहती है। जिस कारण भूकंप आना स्वाभाविक है। पिछले रेकार्ड देखें तो करीब नौ झटके सालभर में महसूस किए जा सकते हैं। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक का कहना है कि यह भूकंप राज्य के अति संवेदनशील जोन पांच में आया है और इससे स्पष्ट भी होता है कि भूगर्भ में तनाव की स्थिति लगातार बनी है। पिछले रिकॉर्ड भी देखें तो अति संवेदनशील जिलों में ही सबसे अधिक भूकंप रिकॉर्ड किए गए हैं।  उत्तराखंड में भूकंप के झटके आम बात हो गई है। समय-समय पर भूकंप के झटके आते रहते हैं। भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड अति संवेदनशील माना जाता है। भूकंप के झटके महसूस किए गए। जिला मुख्यालय सहित मुनस्यारी और धारचूला में भी भूकंप महसूस किया गया।आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार भूकंप से क्षति की सूचना कहीं से प्राप्त नहीं हुई है। जानकारी के अनुसार भूकंप का केंद्र पिथौरागढ़ में था। इसकी गहरी 10 किमी थी और रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.1 मापी गई। भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड राज्य बेहद संवेदनशील है। राज्य का अधिकतर क्षेत्र जोन चार और पांच में आता है। वहीं उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर में अक्सर हल्के भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं। उत्तराखंड के साथ ही हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत आसपास के क्षेत्रों में भूकंप के पूर्वानुमान की अब और अधिक सटीक जानकारी मिलेगी। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई और यूसर्क की ओर से देहरादून के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मालदेवता में राज्य का पहला रेडान सेंटर स्थापित किया गया है। हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के लिए भी छोटे भूकंप खतरा बन सकते हैं। ढाई से तीन रिक्टर स्केल तक भूकंप आना आम बात है। इतनी कम तीव्रता के भूकंप महसूस नहीं होते हैं, लेकिन ये ग्लेशियरों में कंपन पैदा कर उनको कमजोर बनाते हैं, जिससे ग्लेशियर धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसे में बड़ा भूकंप आने की दशा में ग्लेशियरों के टूटने की आशंका ज्यादा रहती है। उत्तराखंड और हिमाचल में इन छोटे झटकों को पकड़ने वाले उपकरण सिस्मोग्राफ और एक्सलरोग्राफ लगाये है। इन उपकरणों से रीडिंग मिलने लगी है। जिसके बाद हिमालय क्षेत्र के लाखों लोगों को बचाने के लिए गहन शोध भी शुरू हो गया है। हिमालय में लगातार आ रहे भूकंप पर हो रहे शोध में ये भी सामने आया कि प्लेटस के आपस में टकराने से जो घर्षण हो रहा है, उसका असर व्यापक तौर पर दिखने लगा है। वैज्ञानिकों की भाषा में इसे मैन बाउंड्री थ्रस्ट कहते हैं। हिमालय के नीचे उत्पन्न हुये मैन बाउंड्री थ्रस्ट के कारण 200 किमी दूर तक ट्रांसफर फॉल्ट विकसित हो रहा है।इसके उलट इस टकराहट से जहां हिमालय की ऊंचाई हर साल 20 से 30 एमएम तक बढ़ती है और यही लगातार भूकंप की वजह भी बन रहा है। वरिष्ठ भूकंप वैज्ञानिक डॉ. सुशील बताते हैं कि पूरी दुनिया में हिमालयन रेंज से लगते देश भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं। इसकी वजह है इंडियन प्लेट और यूरेशिया प्लेट का लगातार टकराव। ये प्लेट्स एक-दूसरे के नीचे खिसक रही हैं। लिहाजा, हर दिन कहीं न कहीं छोटे भूकंप आते रहते हैं, लेकिन जब इन दोनों प्लेटों को टकराने के लिए ज्यादा गेप मिल जाता है तो टकराहट जोरदार होती है, जो बेहद तेज कंपन पैदा करती है। इसे आप नेपाल में आए भूकंप से समझ सकते हैं, जब बिल्डिंग्स ताश के पत्तों की तरह ढहकर जमीन पर गिर पड़ी थी। इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भविष्य में हिमालयी इलाकों के बाशिंदों को कितने बड़े संकट के लिए अभी से तैयार हो जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार पिछली शताब्दी के दौरान नेपाल, पाकिस्तान, भूटान और चीन में कम से कम 35 ग्लेशियल झीलों ने तबाही मचाई है, लेकिन ग्लेशियल झीलों के भूकंप के कारण टूटने से बढ़े हुए जोखिम पर शायद ही कभी चर्चा की गई। सुशील कुमार कहते हैं, इस तरह की आपदा बहुत संभव है। वो अपने दावे को मजबूत करने के लिए उन आंकडों का हवाला दे रहे हैं, जिन्हें लगातार वैज्ञानिक शोध कर दर्ज कर रहे हैं।शोध में ये बात स्पष्ट रूप से सामने आ चुकी है कि इस क्षेत्र में बड़े भूकंप का खतरा लगातार बना हुआ है। भूकंप के केंद्र में एनर्जी इतनी ज्यादा होगी, कि सब कुछ हवा में होगा। इस झटके से चीजें स्थिर नहीं रह सकेंगी। ऐसे में स्वाभाविक है कि ग्लेशियल झीलों में भी पानी सुनामी की तरह रिएक्ट करेगा। विश्व बैंक और ग्लोबल फैसिलिटी फॉर डिजास्टर रिडक्शन एंड रिकवरी के साथ मिलकर आईसीआईएमओडी ने इस खतरे की पुष्टि की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि हिमालयी राज्य भविष्य के इस न दिखने वाले दुश्मन से लड़ने के लिए खुद को कैसे तैयार करते हैं। जब तक हिमालय क्षेत्र में इस बात का पता नहीं चल जाता कि यहां स्लो अर्थक्वेक के जरिए ऊर्जा बाहर निकल रही है. तब तक बड़े भूकंप को लेकर वैज्ञानिकों की चिंता बनी रहेगी. भूकंप को लेकर सबसे बड़ी परेशानी यह है कि अभी तक वैज्ञानिक इसका पूर्वानुमान लगाने में सफलता हासिल नहीं कर पाए हैं. हालांकि भूकंप आने से पहले जानवरों पर किए गए अध्ययन थोड़ाथोड़ा संकेत देते हैं. लेकिन ऐसे पूर्वानुमान की बड़ी आवश्यकता है जो भूकम्प का सटीक पता लगाए ताकि भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके.