परीक्षा में नकल पर जेल भेजने का कानून, कल्याण सिंह के जमाने में बना था.

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परीक्षा में नकल पर जेल भेजने का कानून, कल्याण सिंह के जमाने में बना था.

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

कल्याण  सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तेजपाल लोधी राजपूत और माता का नाम श्रीमती सीता देवी था। कल्याण सिंह के 2 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कई बार अतरौली के विधानसभा सदश्य के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं, और साथ ही रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। पहली बार कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वर्ष 1991 में बने और दूसरी बार यह वर्ष 1997 में मुख्यमंत्री बने थे। 1991 में यूपी की सत्ता में काबिज होने वाले कल्याण सिंह एक ऐसे वक्त में प्रदेश के सीएम बने थे, जब बीजेपी का उत्तर प्रदेश में उत्थान शुरू हुआ था। फर्श से अर्श कर भारतीय जनता पार्टी के सफरनामे के साक्षी रहे कल्याण सिंह को अपने उस कार्यकाल के फैसलों के कारण ख्याति भी मिली और अपयश भी। कल्याण के उस कार्यकाल में नकल अध्यादेश का एक ऐसा नियम लागू किया गया, जिसने प्रदेश की परीक्षा प्रणाली की तस्वीर ही बदल कर रख डाली। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए कल्याण सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया था. यह 1992 का दौर था जब राज्य की बागडोर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के हाथों में थी और प्रदेश के शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हुआ करते थे. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह शिक्षा व्यवस्था को सुधारना चाहते थे लेकिन राज्य में नकल गिरोह का बोलबाला था. ऐसे में उन्होंने ये जिम्मेदारी तत्कालीन शिक्षा मंत्री और फिजिक्स के लेक्चरर राजनाथ सिंह को सौंपी, जिसके बाद राज्य में ‘नकल अध्यादेश’ लागू हुआ. कल्याण सिंह के नेतृत्व की सरकार के दौर में बोर्ड परीक्षा में सर्वाधिक कड़ाई की गई थी. तब नकल करना और कराना दोनो अपराध घोषित किया गया था और यह बात परीक्षा कक्ष में बोर्ड पर अनिवार्य रूप से लिखी रहती थी. जिससे परीक्षा के दरमियान नकल करने और कराने वाला इसका अर्थ समझ सके और नकल ना करें. कल्याण सिंह की सरकार में उत्तर प्रदेश में बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने का कानून बनाया गया था. जिसके बाद किताब रख के चीटिंग करने वालों के लिए ये काल बन गया और नकल के भरोसे बैठे बहुत से स्टूडेंट फेल भी हुए. इसी कानून ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बोल्ड एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया था. ताकि नकल करने और कराने वाला इसका अर्थ समझ सके। तब नकल करने और कराने वालों को जेल भेज दिया जाता था। तब जिले में हाईस्कूल का 12.5 फीसद और इंटर का 25 फीसद फीसद परिणाम रहा था। योगी सरकार आने के बाद भी इसी तरह की आशंका जताई जा रही थी, लेकिन धरातल पर सब दावे धराशायी साबित हुये। हाईस्कूल में लगभग 34 फीसद और इंटर में 43.23 फीसद छात्र फेल हुए हैं। जानकारों का कहना है कि 27 फीसद छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी थी। अगर परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों की संख्या के हिसाब से मूल्यांकन किया जाय तो हाईस्कूल में सिर्फ सात फीसद और इंटर में 16 फीसद छात्र ही फेल हुए हैं। इससे लगता है कि योगी सरकार की बिना वाइस रिकॉर्डर के सीसीटीवी स्थापित करने की योजना उम्मीदों के मुताबिक सफल नहीं हुई है। इसलिए योगी सरकार का नकल विरोधी अध्यादेश कल्याण सिंह के शासनकाल 28 साल पहले लाया गया अध्यादेश जैसा प्रभावी साबित नहीं हुआ। इस बात को परिणाम घोषित होने के बाद से शिक्षा विभाग से जुड़े लोग भी मान रहे हैं। इस अध्यादेश के सख्ती का ही नतीजा था कि तीन दशक पहले 1992 में 10वीं-12वीं परीक्षा के लिए पंजीकृत 17 प्रतिशत छात्रों ने परीक्षा बीच में ही छोड़ दी थी. उस परीक्षा में इतनी कड़ाई हुई थी कि 10वीं में महज 14.70 प्रतिशत जबकि इंटर में 30.30 फीसदी परीक्षार्थी ही पास हो सकें थे. नकल अध्यादेश प्रदेश के लिए भले ही अच्छा साबित हुआ मगर, 1993 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने इस नकल विरोधी अधिनियम का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की थी और कहा जा हैं कि उस समय सपा को फायदा भी मिला था। उस चुनाव में भाजपा को बहुमत नहीं मिला था और उस समय के शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी चुनाव हार गए थे। दरअसल, 1991 में सीएम बने कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में गोरखपुर के फिजिक्स लेक्चरर राजनाथ सिंह को शिक्षा मंत्री बनाया। राजनाथ सिंह के मुताबिक, ऐंटी कॉपिंग ऐक्ट यानि नकल अध्यादेश उनकी ही सोच का हिस्सा था। राजनाथ कहते हैं कि उस वक्त उन्होंने कल्याण सिंह से कहा कि प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि बच्चे साल भर पढ़कर परीक्षा दें और नकल पर रोक लग सके। शुरुआत में कल्याण सिंह की सरकार के तमाम मंत्री ही इसके खिलाफ हो गए, क्योंकि सभी को पता था कि इसके प्रभाव आने वाले चुनावों पर होंगे। हालांकि राजनाथ और कल्याण दोनों इसके पक्ष में थे। राजनाथ ने इसका ड्राफ्ट बनवाया और प्रस्ताव कैबिनेट में रखा गया। राजनाथ सिंह ने इस अध्यादेश के संबंध में बात करते हुए खुद बताया कि उनकी सरकार की कैबिनेट में ये प्रस्ताव कई बार ठुकराया गया। कई बार इसपर जमकर सरकार के लोगों ने ही विरोध किए। हालांकि बाद में कल्याण सिंह से राजनाथ ने खुद मुलाकात की और कहा कि इससे शिक्षा में व्यापक पैमाने पर सुधार होगा। कैबिनेट की सहमति हो गई और कल्याण सरकार ने ऐंटी कॉपिंग ऐक्ट को मंजूरी दे दी। कल्याण सिंह का पहला कार्यकाल सिर्फ बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए ही नहीं, बल्कि एक सख्त ईमानदार और कुशल प्रशासक के तौर पर भी याद किया जाता है. करीब डेढ़ साल का उनका कार्यकाल एक सख्त प्रशासक की याद दिलाता है. नकल विरोधी कानून एक बड़ा फैसला था, जिसकी वजह से सरकार के प्रति लोगों  की नाराज़गी भी भी बढ़ी, लेकिन पहली बार नकल विहीन परीक्षाएं हुईं. साथ ही सूबे में समूह ‘ग’ की भर्तियों में बेहद पारदर्शिता बरती गई. कल्याण सिंह का यह कार्यकाल उनकी ईमानदारी के लिए भी याद रखा जाता है. इतिहास में कल्याण सिंह के नकल अध्यादेश के फैसले को आज भी शिक्षा सुधार के बड़े कदम के रूप में जाना जाता है। लोकप्रिय जननेता, राम मंदिर आंदोलन में अतुल्य योगदान देने वाले कर्तव्यनिष्ठ सदस्य, उ.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्रद्धेय कल्याण सिंह जी को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन। आदरणीय कल्याण सिंह को उनके दृढ़ निर्णयों तथा शुचितापूर्ण जीवन के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा”