ऐतिहासिक बागेश्वर का उत्तरायणी मेला

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ऐतिहासिक बागेश्वर का उत्तरायणी मेला

                   डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

लोक पर्व उत्तरायणी की धूम इन दिनों पूरे कुमाऊं में देखने को मिलता है। जगह-जगह पर उत्तरायणी कौतिक मेले का आयोजन किया जा रहा है। कुमाऊं में उत्तरायणी को घुघुतिया त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि उत्तर देवताओं का दिन और सकारात्मक का प्रतीक होता है। इसलिए इस दिन स्नान, दान, तर्पण और धार्मिक क्रियाओं का विशेष महत्व होता है।
सनातन धर्म और शास्त्रों के अनुसार उत्तरायणी के दिन से भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं। इस दिन भागीरथी से प्रसन्न होकर गंगा देव लोक से पृथ्वी पर आई थीं। कुमाऊं में उत्तरायणी को घुघुतिया त्योहार या घुघुतिया ब्यार के नाम से जाना जाता है। कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार दो दिनों तक मनाया जाता है।मान्यता है कि कुमाऊं के एक राजा के पुत्र को घुघते नाम के जंगली कबूतर से बेहद प्रेम था। राजकुमार का घुघते के प्रति प्रेम देखकर एक कौवा चिढ़ता था। वहीं दूसरी ओर राजा का सेनापति राजकुमार की हत्या कर संपत्ति हड़पना चाहता था। इस मकसद से सेनापति ने एक दिन राजकुमार की हत्या की योजना बनाई। जिसके बाद वह राजकुमार को एक जंगल में ले गया और उसे पेड़ से बांध दिया. ये सब कौवे ने देख लिया और उसे राजकुमार पर दया आ गई. इसके बाद कौवा तुरंत उस स्थान पर पहुंचा जहां रानी नहा रही थी, उसने रानी का हार उठाया और उस स्थान पर फेंक दिया जहां राजकुमार को बांधा गया था। रानी का हार खोजते हुए सैनिक वहां पहुंचे। जिसके कारण राजकुमार की जान बच गई। जिसके बाद राजकुमार ने वापस पहुंचकर अपने पिता से कौवे को सम्मानित करने की इच्छा जताई। कौवे से पूछा गया कि वह सम्मान में क्या चाहता है? तो कौवे ने घुघते के मांस की इच्छा जताई। इस पर राजकुमार ने कौवे से कहा कि तुम मेरे प्राण बचाकर किसी और की हत्या करना चाहते हो ये गलत है। जिसके बाद राजकुमार ने कहा कि हम मकर संक्रांति के दिन तुम्हें प्रतीक के रूप में अनाज का बना घुघता खिलाएंगे। जिस पर कौवा तैयार हो गया। इसके बाद राजा ने पूरे कुमाऊं में कौवों को दावत के लिए आमंत्रित किया। राज का फरमान कुमाऊं में पहुंचने में दो दिन लग गए। इसलिए यहां दो दिनों तक घुघुतिया पर्व मनाया जाता है। जिसके बाद से यहां इस त्योहार को मनाने की प्रथा निरंतर जारी है। उत्तरायणी मेला संस्कृति और आनंद का एक सम्मिश्रण है जो मेले के दर्शकों का मनोरंजन करता है। यह एक बड़ी आबादी तक संचार का एक महत्वपूर्ण तरीका है और इस प्रकार राजनीतिक कार्यकर्ता अक्सर इसका उपयोग लोगों तक अपने संदेश पहुंचाने के लिए करते हैं। यह उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में आयोजित सबसे बड़े मेलों में से एक है। यह हर साल 14 जनवरी को आयोजित मकर संक्रांति महोत्सव के दिन मनाया जाता है। यह उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल दोनों क्षेत्रों में मनाया जाता है।यह मेला राज्य के पकवान और शिल्प कौशल के साथ- साथ विभिन्न प्रकार की मनोरंजक गतिविधियों और सूचना प्रसारण के लिए महत्वपूर्ण है। उत्तरायणी मेला भारत के सबसे लोकप्रिय मेलों में से एक है। यह बागेश्वर में शुरू हुआ था लेकिन अब उत्तराखंड में और इसके बाहर विभिन्न शहरों में फैल गया है। यह त्योहार स्थानीय लोगों के लिए अपनी संस्कृति, विरासत, नृत्य और संगीत का प्रदर्शन करने का बेहतरीन अवसर होता है।जनपद के स्थानीय कलाकारों द्वारा ही सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जायेगे। उन्होंने कहा कि मेले में आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए लोकल व्यापारियों एवं उत्पादों को ही इस मेले में शामिल किया जायेगा, जिसके लिए उन्होंने व्यापार मंडल से अपेक्षा की है कि स्थानीय लोगो की भावनाओं के अनुसार उन्हें मेले में उपलब्ध होने वाले सामान को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था की जायेगी। उन्होंने यह भी कहा कि ओमीक्रोन संक्रमण के संबंध में शासन द्वारा जारी दिशा निर्देशों एवं गाइडलाइन के अनुसार ही कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे ऐतिहासिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक और धाíमक उत्तरायणी मेला इस बार सादगी से आयोजित होगा। जिला प्रशासन ने सिर्फ धाíमक मेले के आयोजन की अनुमति दी है। बावजूद लोग मेले को लेकर कई तरह के सवाल खड़े करने लगे हैं। लोगों ने पालिका की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं और मेलार्थी निराश हैं। कुली बेगार आंदोलन का अंत आज से 100 साल पहले हुआ था। जानकारों के अनुसार उस दिन मकर संक्रांति का पर्व था और लगभग 40 हजार लोग सरयू बगड़ में एकत्र थे और कुली बेगार के अंत के साक्षी भी बनें। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उत्तरायणी मेला अंग्रेजी हुकूमत से पहले से चला आ रहा है। सरयू वार के लोगों ने बनाए घुघुते जिले में घुघुतिया पर्व दो दिन मनाया जाता है। सरयू पार रहने वाले लोगों ने बुधवार को आटे के घुघुते तथा अन्य पकवान बनाए। जबकि सरयू वार के लोग गुरुवार को घुघुते बनाएंगे। पर्व को लेकर बच्चों में उत्साह रहता है। उत्तरायणी पर्व पर घुघुतिया त्यार का विशेष महत्व है। सरयू पार के लोग मकर संक्राति के पहले दिन गुड़ घोलकर इसे पानी से आटे में मलते हैं और इससे घुघुते की माला बनाए जाते हैं। बच्चे अपनी माला में नारंगी आदि पिरोते हैं। शाम को घरों में पकवान आदि बनाया जाता है। दूसरे दिन सुबह बच्चे नहा धोकर पहले कौवे को बुलाकर घुघुते देते हैं। उसके बाद खुद अपनी माला के घुघुतों को खाते हैं। जिले में यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। उत्तरायणी मेला कई राजनीतिक और सामाजिक क्रांतियों का गवाह रहा है। सन् 1921 में, पंडित बद्री दत्त पांडे के नेतृत्व में, कई कार्यकर्ताओं ने कुली बेगर (बंधुआ मजदूर) क़ानून के उन्मूलन के लिए विद्रोह किया था। वर्ष १९२९ में महात्मा गांधी ने उत्तराखंड के बागेश्वर जिले का दौरा किया था। प्रदेश सरकार ने 2022 के लिए सरकारी छुट्टियों का कलेंडर जारी कर दिया। इसमें कुल 26 अवकाश शामिल हैं। इसमें हरेला की छुट्टी तो शामिल इगास का अवकाश शामिल है। जबकि इस साल राजनीतिक दलों की बयानबाजी के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इगास का अवकाश घोषित किया था। उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में सरयू गोमती व सुप्त भागीरथी के पावन संगम पर सदियों से भव्य उत्तरायणी मेले का आयोजन किया जाता है। उत्तराखंडियों की ऐसी मान्यता रही है कि मकर संक्रांति के दिन संगम मेें स्नान करने से सभी पाप कट जाते हैं और मनुष्य की आत्मा निर्मल हो जाती है।
इस अवसर पर उत्तराखंड के लोग हजारों की संख्या में दूर-दूर से संगम पर आकर मुंडन, जनेऊ संस्कार, पूजा-अर्चना व स्नान करते हैं और स्कूलों के विद्यार्थी रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।
इसके अलावा बागेश्वर के उत्तरायणी मेले का आर्थिक पक्ष भी रहा है। यह उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्राचीनतम मेला माना जाता है, जहां वस्तुओं की खरीद-फरोख्त के लिए उत्तराखंड के सभी 13 जिलों के अलावा रामपुर, बरेली, मुरादाबाद, नजीबाबाद, दिल्ली व उत्तरप्रदेश के अन्य जिलों से भी व्यापारी यहां आते रहे हैं। छठ पूजा को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का फैसला किया  सरकार से उत्तरायणी पर्व पर अवकाश दिवस घोषित की मांग 100 साल करते हैं इस बार प्रशासन ने उत्तरायणी मेला तीन दिन का कराने का निर्णय लिया है। यदि आचार संहिता लग गई तो मेला प्रशासन को करना पड़ेगा, लेकिन अभी तक मेले की तैयारी के लिए पालिका दिन-रात काम कर रही है। इन दिनों पालिका सरयू तथा गोमती नदी में पैदल पुल का निर्माण का कार्य चल रहा है। इसके अलावा मोटर पुलों और अन्य स्थानों पर रंगाईं- पुताई का काम चल रहा है। इसके अलावा सूरज कुंड में उस स्थान पर विशेष सफाई अभियान कार्यक्रम चल रहा है, जहां जनेऊ संस्कार संपन्न होंगे। बागनाथ मंदिर व गुरुद्वारा को विशेष ढंग से सजाया जा रहा है। लोनिवि ने बागनाथ मंदिर के पास बन रहे पैदल पुल में जाने के लिए रैंप निर्माण का कार्य चल रहा है। वर्तमान में ओमीक्रोन का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। जिसको फैलने से रोकना नैतिक जिम्मेदारी है। मेले का आयोजन एक सप्ताह का न होकर केवल तीन दिन होगा। अनावश्यक भीड नहीं होगी। बाहरी राज्यों से आने वाले व्यापारियों पर प्रतिबंध रहेगा सामंजस्य रहा है।महामारी से बचने के लिए ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भी निर्णायक भूमिका निभाने जा रही है। वैक्सीन तक पहुंच ही बाकी सारे निर्णायक कारकों जैसे आर्थिक और प्राकृतिक पूंजी, मानव संसाधन और सामाजिक- राजनीतिक वातावरण को तय करेगी। मेले हमारी सांस्कृतिक, पौराणिक, व्यापारिक पहचान है इसे हम सभी लोगों को प्राथमिकता के साथ संरक्षित करना होगा। खास बात यह भी है कि उत्तरायणी मेला राजनीतिक जागरूकता और प्रसार का केंद्र रहा है। अंग्रेजों के शासनकाल में बदरीदत्त पांडे के नेतृत्व में इसी संगम में बेगारी के रजिस्टारों को बहा कर विरोध दर्ज किया गया था। स्वतंत्र भारत में यह स्थान और अवसर राजनीतिक दलों की बात रखने वाले स्थान के रूप में हुई। हर साल भाजपा, कांग्रेस, उक्रांद समेत तमाम दल उत्तरायणी पर अपना मजमा लगाते रहे हैं और लोगों को यहां से राजनीतिक संदेश देते रहे हैं, लेकिन इस बार बागेश्वर के बगड़ में राजनीतिक मजमा भी नहीं लगेगा