सपना ही बनकर रह गया स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट?

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सपना ही बनकर रह गया स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट?

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

मेडिकल कॉलेज के अधीन स्वामी राम कैंसर इंस्टीट्यूट संचालित है। करीब सात साल पहले इसे अपग्रेड करते हुए स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने की योजना बनी थी।कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जो सिर्फ मरीज को ही नहीं पूरे परिवार को तोड़कर रख देती है। जिन लोगों के पास संसाधन हैं, वो बड़े शहरों में जाकर इलाज करा सकते हैं, पर जो संसाधनों के अभाव से जूझ रहे हैं, उनके लिए गांव-पहाड़ से बाहर जाकर कैंसर का इलाज कराना संभव नहीं हो पाता कैंसर का अत्याधुनिक इलाज संभव हो सके। इसके लिए कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी में स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने को परियोजना बनी। आठ वर्ष बाद भी राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव और अधिकारियों की हीलाहवाली के चलते कैंसर इंस्टीट्यूट का सपना साकार नहीं हो सका है। जबकि स्वामी राम कैंसर संस्थान में ही प्रतिवर्ष आठ हजार रोगी पहुंचते हैं।राजकीय मेडिकल कालेज के अधीन स्वामी राम कैंसर इंस्टीटयूट की स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी। यह पूर्व सीएम एनडी तिवारी का ड्रीम प्रोजेक्ट था। इसके बाद करीब आठ साल पहले भारत सरकार ने इस संस्थान का उच्चीकरण कर इसमें स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने की परियोजना तैयार की।103 करोड़ की महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए पत्राचार होता रहा। टीमें आतीजाती रही। कुमाऊं के लोगों को कैंसर के अत्याधुनिक इलाज का सपना दिखाया जाता रहा, बीचबीच में बजट भी जारी होता रहा। राज्य सरकार को 69 करोड़ रुपये जारी भी हो गए। 87 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार हो चुकी है। ब्रिडकुल कंपनी को कार्यदायी संस्था भी तय कर दिया गया है, लेकिन दुर्भाग्य है कि काम शुरू नहीं हो सका। जिस भूमि में संस्थान बनना है। वह भूमि अभी वन भूमि से चिकित्सा शिक्षा विभाग को हस्तांतरित नहीं हो सकी। इस मामले को सुलझाने में वर्षों लग गए हैं। स्वामी राम कैंसर संस्थान में वर्ष 2010 के बाद प्रतिवर्ष करीब आठ हजार रोगी उपचार को पहुंचते हैं। इसमें 30 प्रतिशत से अधिक गले गर्दन के कैंसर के मामले रहते हैं। महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर रहता है।स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के निदेशक ने बताया कि स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट बनाने की कवायद चल रही है। वन भूमि का मामला भी अंतिम चरण में है। कई प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं। जल्द ही कार्य शुरू हो जाएगा। मांगने पर जहां पूरी हर मन्नत होती है, मां के पैरों में ही तो जन्नत होती हैकिसी शायर की यह नज्म मानों नैनीताल जिले के रामनगर निवासी बबली सागर के लिए ही लिखी गई हो। बेटी वंशिका में कैंसर का पता चला तो पूरा परिवार के पैरों तले से जगीन खिसक गई। इलाज कराने में आर्थिक संकट सामने आया तो परिवार टूट गया। मां मोहल्ले में भीग मांगने तक के लिए बेबश हो गई। कैंसर के अत्याधुनिक इलाज का सपना दिखाया जाता रहा, बीच-बीच में बजट भी जारी होता रहा सरकार की चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्राथमिकता से राज्य में मजबूती मिलने की उम्मीद है।