नई सरकार के भरोसे राज्य आंदोलनकारी, इन्हीं के संघर्ष से बना था अलग राज्य

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नई सरकार के भरोसे राज्य आंदोलनकारी, इन्हीं के संघर्ष से बना था अलग राज्य

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान सड़कों पर संघर्ष करने वाले आंदोलनकारी आज भी चिह्नीनीकरण की बाट जोह रहे हैं, क्योंकि 2015-16 में चिह्नीकरण पर रोक लग गई थी। लगातार संघर्ष और छह वर्ष के इंतजार के बाद सरकार ने आंदोलनकारियों को चिह्नित करने का निर्णय लिया। जिलाधिकारी के स्तर पर समितियां बनाई गईं, नए सिरे से आवेदन मंगाए गए, जिन्हें समितियों के समक्ष रखा गया। आवेदनों की जांच के बाद इन्हें अंतिम रूप दिया जाना था। जब तक समितियां इस दिशा में काम पूरा कर अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर शासन को भेजती, विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई। इससे चिह्नीकरण की प्रक्रिया एक बार फिर लंबित हो गई है। अब आंदोलनकारियों की नजरें नई सरकार पर टिकी हैं। यह नई सरकार की नीति व विवेक पर ही निर्भर रहेगा कि वह चिह्निीकरण की इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है या एक बार फिर फाइलों में बंद करती है। उत्तराखंड राज्यआंदोलन में हर वर्ग के लोगों ने संघर्ष किया था। परंतु अभी भी राज्य में ऐसे सैकड़ों आंदोलनकारी हैं जो मानकों की जद में नहीं आने से चिन्हित नहीं हो पाए हैं। कहा है कि ऐसे लोगों के लिए 31 दिसंबर तक दोबारा आवेदन करने के लिए शासनादेश जारी हुआ था जिसके बाद वंचित लोगों ने आवेदन किए हैं। लिहाजा आवेदन करने वाले सभी लोगों को राज्य सरकार आंदोलनकारी घोषित कर इस मामले का पटाक्षेप करे। ज्ञापन में कहा गया है कि पूरे उत्तराखंड में जिन लोगों ने इसके लिए आवेदन किया है उन्होंने आंदोलन में अपनी भागीदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभाई है। इनमें  मातृशक्ति, छात्र, कर्मचारी संगठन, पत्रकार और ग्रामीणों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।राज्य निर्माण की लड़ाई में जो आंदोलनकारी अपना घर-परिवार भूल कर कूद पड़े थे। आज उन्हें स्वयं को आंदोलनकारी साबित करने के लिए पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी आज आंदोलन की राह पर हैं। राज्य आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को अब तक कोई सजा नहीं मिल पाई। 10 परसेंट क्षैतिज आरक्षण से भी आंदोलनकारी वंचित हैं, जबकि चिन्हीकरण का मामला अधर में लटका हुआ है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आंदोलनकारी पेंशन व 10 परसेंट क्षैतिज आरक्षण से वंचित हैं। बदले में संसदीय कार्य मंत्री मदन कौशिक ने क्षैतिज आरक्षण पर कहा कि राज्य आंदोलनकारियों के बदौलत ही राज्य का गठन हुआ। सरकार यथासंभव उनके साथ है। वर्ष 2018 में कोर्ट ने क्षैतिज समाप्त कर दिया था। लेकिन राज्य आंदोलनकारियों को मिलने वाली सभी सुविधाएं सरकार की ओर से यथावत रखी गई हैं। उन्होंने रोडवेज की बसों में निशुल्क यात्रा का भी जिक्र किया। विधायक ने पिछले सत्र के दौरान पीठ की ओर से दिए गए निर्देशों के अनुपालन में सरकार की ओर से की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी। बदले में संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि वर्ष 2009 में सबसे पहले चिन्हीकरण की नियमावली तत्कालीन सरकार द्वारा बनाई गई थी। 10 हजार रुपए तक मेडिकल अनुदान देने, पेंशन दिए जाने व बसों में फ्री यात्रा जैसी सुविधाओं में कोई कटौती नहीं की गई है। राज्य आंदोलकारियों की मांग है कि मुजफ्फरनगर, खटीमा, मसूरी गोलीकांड के दोषियों को सजा मिले, राज्य आंदोलनकारियों का 10 फीसद शिथिलता (क्षैतिज आरक्षण एक्ट) लागू हो, चार वर्षों से चिह्नीकरण के लंबित मामलों का निस्तारण व एक समान पेंशन लागू हो,  शहीद परिवार और राज्य आंदोलनकारियों के आश्रितों की पेंशन का शासनादेश लागू किया जाए, स्थायी राजधानी गैरसैंण घोषित की जाए, समूह-ग की व उपनल भर्ती में स्थायी निवास की अनिवार्यता हो, राज्य में सशक्त लोकायुक्त लागू हो, भू-कानून वापस लिया जाए और  उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शहीद स्मारकों का संरक्षण व निर्माण व्यवस्था लागू हो। सिर्फ इसलिए कि अपना पहाड़ी राज्य होगा तो विकास की बयार आएगी, सड़कें बनेंगी स्वास्थ्य और शिक्षा सुदृढ़ होगा विकास के नए आयाम गड़े जाएंगे। “लेकिन हुआ इससे उलट” न सड़कें बनी नही शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बदलाव आए न बेरोजगार युवाओं को उम्मीद के अनुरूप रोजगार मिले। और आज भी विकास की बाट जोहता ये उत्तराखण्ड कराह रहा है यह निर्णय आज तक धरातल पर नहीं उतर पाया है।