ऋषिकेश में लेकिन नौकरियां राजस्थान के लोगों को मिली

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ऋषिकेश में लेकिन नौकरियां राजस्थान के लोगों को मिली

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

राज्य उत्तराखंड में लोग बेहाल स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहे हैं पर्वतीय जिलों में कई पीएचसी सीएचसी विशेषज्ञ चिकित्सकों विहीन हैं जहां डॉक्टर हैं भी वहां चिकित्सक सुविधाओं से वंचित कई दिक्कतों के वावजूद सेवाएं दे रहे हैं वर्ष 2012 में  एम्स ऋषिकेश  की स्थापना के बाद एक आस जगी थी कि राज्य की गरीब जनता को राहत मिल सकेगी लेकिन जिस तरह की घटनाएं संस्थान में होने की खबरें काफी समय से सुर्खियों में हैं यह समझने के लिए काफी है कि राज्य की दशा और दिशा किस ओर जा रहा है 10 साल बाद संस्थान में सीबीआई की रेड पड़ी है मामला भ्र्ष्टाचार और अनियमिताओं से जुड़ा है दरसअल कई सामाजिक तथा राजनीतिक संगठनों ने पूर्व निदेशक द्वारा भर्तियों तथा सामग्री खरीद में कथित रूप से धांधली के आरोप लगाए थे जिसके बाद यहां यह कार्यवाही की गई है ।विगत  5 फरवरी 2022 को फर्जी स्थायी नियुक्तियों और खरीदारी के संदर्भ में कई गई शिकायत में प्रथम दृष्टि में गड़बड़ी मिलते ही सीबीआई की टीम ने छापा मारा राज्य में चुनाव के चलते यह खबर बड़ी सुर्खियों में नही आई लेकिन अब धीरे धीरे परतें खुल रही है ।एम्स सूत्रों और संचार माध्यमों से अवगत हुआ है कि जांच एजेंसी सीबीआई  ने सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों का अपने कब्जे में ले लिए और जांच जारी है  सूत्रों के अनुसार हार्ड डिस्क में मौजूद डाटा को एकत्र करने के लिए विभिन्न अनुभागों में कंप्यूटर सिस्टम को खंगाला जा रहा है। जिसमे आरोपों के अनुसार साक्ष्य तलाशे जा रहे हैं । पूर्व निदेशक किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लख़नऊ के वीसी रहे हैं 2014 में उनकी नियुक्ति बतौर वीसी हुई । पूर्व निदेशक को मेडिकल के क्षेत्र में सेवा हेतु भारत सरकार ने पद्म श्री से नवाजा है अच्छा एकेडमिक करियर होने के वावजूद वह केजीएमयू में विवादों में घिरे रहे रविकांत के खिलाफ केजीएमयू की टीचर्स यूनियन ने मनमानी से नियुक्ति करने उपकरण और अन्य सामग्री खरीद में घोटालों के आरोप जड़ दिए यही नही यूनियन ने साक्ष्यों सहित बताया कि वीसी ने अपने चहेतों को संस्थान में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया जो कि सभी नियम विरुद्ध हैं ।इधर 2017 में उन्हें एम्स की कमान सौप दी यहाँ भी उनका कार्यकाल 4 साल रहा और केजीएमयू की तर्ज पर घोटालों का आरोप।  निदेशक पर फिर लखनऊ की तर्ज अपने चहेतों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने, उपकरण खरीद में गड़बड़ी,नियुक्ति में मानकों की अनदेखी जिसमे नर्सेज नियुक्ति सहित स्टेनोग्राफर भर्ती घोटाले और अपने 6 रिश्तेदारों की नियुक्ति भी शामिल हैं आरोप हैं. फर्क केवल स्थान का है पहले लखनऊ अब ऋषिकेश।
मामला और बड़ा हो गया है जब पता चला कि संस्थान के लिए आवेदित 800 नर्सिंग स्टाफ के पदों के लिए 600 भर्तियां राजस्थान के निवासी अभ्यर्थियों की हुई है ज्ञात रहे कि विगत वर्ष राज्य ने नर्सिंग परीक्षा के मानकों को तीन बार बदलना पड़ा बडी मसक्कत के बाद परीक्षा सम्पन्न हुई. हालांकि पूर्व निदेशक पहले केजीएमयू और अब एम्स से सभी तरह के मानदेय सहित सेवानिवृत्त हो गए हैं अब उनके कार्यकाल की जांच चल रही है खबर के अनुसार जांच एजेंसी जल्द ही बड़ा खुलासा कर सकती है लेकिन दो दो जगह आरोपों से घिरे पद्म श्री के खिलाफ कोई कारवाही होगी यह भविष्य के गर्त में है हालांकि नर्सिंग स्टाफ भर्ती में एम्स मौजूद प्रसाशन किसी घोटाले से इंकार करता है ।राज्य निर्माण के 21 साल में जहां आम लोगों को नौकरी के लिए सड़कों पर आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ा है वहीं सरकार के खास अपनी अपनी सुविधानुसार नौकरी पाने में सफल हुए हैं हर साल लाखों बेरोजगार इसी इंतजार में बैठे रहे कि वह सुबह कभी तो आएगी लेकिन नौकरी या नेता मंत्री अधिकारी का खास पा गया या ले देकर पिछले दरवाजे से फिट कर दिया गया कहते हैं जब सरकार ही चिलम लेके बैठी हो तो फिर संस्थाओं की कौन पूछे ?राज्य में निरंतर नियुक्तियों में गड़बड़झाला नियति बन गया ।पहले राज्य के भीतर कुलपतियों की नियुक्ति पर सवाल उठे राज्य में सत्तारूढ दलों द्वारा चहेतों को नियम विरुद्ध कुलपति की कुर्सी पर आसीन करना आम बात हो चली है लेकिन किसी अन्य संस्थान में घोटाले के आरोपी के लिए भी उत्तराखंड मुफीद बनते जा रहा है विगत 21 साल में कई बड़े घोटालों के आरोपी बच निकलने में कामयाब रहे हैं । कभी एकदूसरे पर 56 और 45 घोटालों के आरोप जड़ने वाली सतारुढ़ भाजपा और कांग्रेस ने शायद ही सत्ता में पहुच इन घोटालों की तरफ मुड़कर भी देखा हो । यही कारण है राज्य में 500 करोड़ रुपये से अधिक का छत्रवृति घोटाला सामने आया । पांच साल सत्ता में रहकर न सरकार और न ही  विपक्ष ने एक शब्द इस घोटाले पर बोला।
घोटालों पर चुप्पी में सरकार की कोई मजबूरी रही या जानबूझकर यह होने दिया गया है यह भी एक जांच का विषय है उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। प्रदेश के सीमांत जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना और चिकित्सकों को पहुंचाने में प्रदेश में आई सभी सरकारों के माथे पर बल पड़े रहे। हालांकि, बीते पांच सालों में स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार देखने को मिला है। इसका एक बड़ा कारण कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर इंतजाम किया जाना है। इसका एक बड़ा असर यह हुआ है कि आज प्रदेश के हर जिला अस्पताल में आक्सीजन जेनरेशन प्लांट लगे हुए हैं। अब काफी हद तक चिकित्सकों की कमी भी दूर हो चुकी है। इस समय प्रदेश में 2260 चिकित्सक तैनात हैं। पहले यह संख्या 1100 थी। हालांकि, प्रदेश में अभी भी विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी बनी हुई है और हेली एंबुलेंस सेवा का इंतजार किया जा रहा है। राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं दुरुस्त करने के प्रयास किए गए। इसमें काम तो हुआ लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पटरी पर नहीं आ पाईं। प्रदेश में आई सरकारों के सामने चिकित्सकों को पहाड़ पर चढ़ाना चुनौती बना रहा। स्थिति यह है कि राज्य गठन के 20 साल बाद भी इलाज के लिए मरीज मैदानी जिलों के अस्पतालों में आते हैं। उत्तराखंड में सच में रोजगार नहीं है या फिर नौकरियों के नाम पर सेटिंग का खेल चल रहा है ।ये खबर तो इसी तरफ इशारा कर रही है। जहां  ऋषिकेश एम्स में भर्ती प्रकॅिया को लेकर एक नया खुलासा हुआ है। यहां नर्सिंग संवर्ग के पदों पर  एक ही राज्य के 600 अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर दी गई। एक रिपोर्ट तो ये भी कहती है कि इस भर्ती में एक ही परिवार के 6 लोगों को भी नियुक्ति दी गयी  है। जबसे ऋषिकेश एम्स में सीबीआई का छापा पड़ा है , तब से एम्स ऋषिकेश सुखियों में बना हुआ है। अब यहां स्थायी कर्मचारियों की भर्ती को लेकर बड़ी बात सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक एम्स में 2018 से 2020 के बीच नर्सिंग संवर्ग में 800 पदों के लिए भर्ती निकाली गई। इस भर्ती में देश के अलग अलग राज्यों के अभ्यर्थियों ने आवेदन किया। सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि 800 में से 600 पदों पर राजस्थान के अभ्यर्थियों का चयन किया गया। एक ही राज्य से इतनी बड़ी संख्या में नियुक्तियां भर्ती प्रक्रिया को संदेह के घेरे में खड़ा कर रही हैं। इस पूरे मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को शिकायत दी गई है। उधर सीबीआई टीम स्थायी नियुक्तियों के साथ साथ उपकरणों की खरीद की भी जांच कर रही है।