पाइप बिछाने से पहले जलस्रोतों का संरक्षण तो सवाल

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
जल स्रोत की तलाश किए बिना पहाड़ों के अधिकांश गांवों जल जीवन मिशन के तहत पेयजल लाइन बिछा दी गई हैं। लेकिनए अधिकांश योजनाओं को अभी जल स्रोतों से नहीं जोड़ा गया है। इसको लेकर ग्रामीण तो सवाल उठा ही रहे हैंए साथ ही पहाड़ों के चितक एवं सामाजिक कार्यकत्र्ता भी सवाल उठा रहे हैं कि पेयजल योजनाओं पर पानी कहां से आएगा।लंबे समय से हिमालय नीति का मुद्दा उठा रहे ने कहा कि जल जीवन मिशन योजना जब शुरू हुई थीए तो तब भी उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था। लेकिनए ठेकेदारी को बढ़ावा देने वाली जल जीवन मिशन योजना का उद्देश्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। होना ये चाहिए था कि पहले जल संस्थान और वन विभाग का आपस में समन्वय होता। गांव के निकट जंगलों में जो जलस्रोत सूख रहे हैंए उनको रिचार्ज करने के लिए योजना बनतीए जिससे जल जीवन मिशन योजना के तहत गांव तक पानी की आपूर्ति हो पाती। लेकिनए ये हुआ नहीं है। केवल पानी का शोषण करने और ठेकेदारी के नाम पर बजट को ठिकाने लगाने के लिए गांव.गांव में बिना आवश्यकता तथा बिना स्त्रोत के पाइप लाइन डाली गई हैं। आने वाले दिनों में इसका बड़ा असर बचे.खुचे पेयजल स्रोतों पर पड़ेगा। ने कहा कि अच्छा होताए इसकी तैयारी के साथ जंगलों में चाल.खाल बनाए जातेए जिससे धरती के अंदर पानी का भंडार भरता। जलस्रोत भी पहले की तरह रिचार्ज हो उठते। प्राकृतिक जल स्त्रोतों का संरक्षण व संर्वधनए पारंपरिक जल संरक्षण उपायों को सहेजनाए जल की बर्बादी को रोकनाए वर्षा के पानी का भंडारणए जल स्रोतों को जनचेतना से दूषित होने से बचानाए कम से कम पानी से सिंचाई व फसल उत्पाद तकनीक को प्रयोग में लानाए दूषित पानी को रिसाइकिल कर प्रयोग में लाना इत्यादि ऐसे उपाय हैंए जिनसे पानी की कमी को काफी हद तक कम किया जा सकता है। वर्तमान में पानी की कमी से पूरा विश्व जूझ रहा है। बढ़ती जनसंख्याए जलवायु परिवर्तनए मौसम का बदलावए आधुनिक जीवन शैली ही जल की कमी के मुख्य कारण है। वर्तमान में यदि जल की बर्बादी को रोका नहीं गया तो अगली पीढी के लिए पानी गंभीर समस्या बनेगी। देखरेख और पर्यावरण से छेड़छाड़ इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरतों में से एकए पानीए पर असर डाल रही हैण् जल संरक्षणके लिए ज़िम्मेदार ग्राम पंचायतेंए जल संस्थान और कई एनजीओ पारंपरिक तरीकों को भूलकर सिर्फ कागजों पर काम कर रहे हैंण् इसका नतीजा मई और जून के महीने में पहाड़ों पर पानी के लिए आम आदमी की जद्दोजहद के रूप में सामने आने लगा हैण्पर्यावरणविद कहते हैं कि उत्तराखंड में लगातार भूजल स्तर नीचे जाता जा रहा है जो भविष्य के लिए खतरा बढ़ा रहा हैण् अनियोजित विकास और प्रकृति का दोहन इस आग में घी डालने का काम कर रहा हैण् साथ ही हिमालयी क्षेत्र में लगातार चीड़ वनों का प्रसार यहां के जस्तर को सबसे ज्यादा नुक़सान पहुंचा रहा हैण् पहाड़ों पर चीड़ वनों के प्रसार पर रोक लगा कर पारम्परिक बांज और बुरांस वनों को बढ़ावा देना होगा तभी पानी का चक्र सही ढंग से चल पाएगाण् पारम्परिक जल स्रोतों को बचाने के लिए चाल.खाल निर्माणए बांज.बुरांस जैसे पौधों का प्लांटेशन और वर्षा जल सरंक्षण की योजनाएं बनाकर उन पर अमल करना होगा लेकिन शासन और प्रशासन की योजनाओं तथा भाषणों की सच्चाई धरातल पर बिल्कुल अलग है। जिस कारण गहराता जल संकट लोगों को एक गंभीर समस्या की तरफ धकेल रहा है। इसके लिए जल संरक्षण के कार्यों को प्राथमिकता देते हुएए इन्हें युद्ध स्तर पर करने की जरूरत है। हर घर तक पानी की आपूर्ति पाइप के जरिये पहुँचने से भले ही जीवन आसन हो जाये। लेकिन अधिकारियों और ग्रामीणों को यह याद रखना होगा की प्राकृतिक झरनों और धाराओं को संरक्षित करना जरूरी है क्योंकि यह पाइप से पानी की आपूर्ति का मुख्य स्रोत है।ष्ष्पहले के समय मे सभ्यताओं को पानी के स्रोतों के आस पास स्थापित किया जाता था। लेकिन अब पानी को मानव की बस्तियों तक लाया जाता है। सरकार को भी पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता हैए वही जबसे लोगों के घरो में पाइप कनेक्टिविटी पहुँची है तब से वह अपने गांव के वास्तिविक पानी के स्त्रोतो को भूलने लगे है ।ष्उन्होंने कहा कि ष्लोगों को यह मसहूस होना चाहिए कि जब तक स्थानीय स्त्रोत संरक्षित नही किए जाते तब तक वह पाइप से पानी का इस्तेमाल नही करेंगे। जैसा की आज भी अधिकांश पहाड़ी इलाकों मे पानी के कनेक्शन में भूमिगत पानी का उपयोग किया जाता है। जो विभिन्न पुनर्जीवित प्रक्रिया जैसे ट्रेंचर्सएकुएंए तालाब और दूसरे अन्य प्रकार के संसाधन से रिचार्ज हो जाता हैण्दूरदराज क्षेत्रों से एक बार पहाड़ी इलाकों में पाइपलाइन से पानी पहुंचाया जा सकता है लेकिन वास्तविकता यह है की उसके बावजूद लोगों को पानी नहीं मिल सकेगा। क्योंकि इसके पीछे कई कारण है। जैसे कई बार स्थानीय लोग पानी के आसान पहुँच के लिये पाइपो को तोड़ देते है वही जंगली जानवरों द्वारा भी पाइपों को क्षतिग्रस्त किया जाता है। इसीलिए जरूरी है कि जो पानी के स्त्रोत है उन्हें हम पुनर्जीवित करें।ष्

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।