धामी के मुख्यमंत्री बनने से सीमांत जिले को भी बड़ी उम्मीद

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धामी के मुख्यमंत्री बनने से सीमांत जिले को भी बड़ी उम्मीद

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

महाराष्ट्र के राज्यपाल और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यिारी के करीबी हैं और माना जाता है कि कोश्यिारी उन्हें उंगली पकड़कर राजनीति में लाए थे। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कभी भी राज्य मंत्रिमंडल में भी मंत्री पद नहीं संभाला है। कहा जाता है कि धामी ने भाजपा की राज्य युवा शाखा के प्रमुख के रूप में अपने काम से पार्टी के प्रति अपने समर्पण को साबित किया है। पुष्कर धामी के पिता एक पूर्व सैनिक थे जिनका एक साल पहले निधन हो गया था। 16 सितंबर 1975 को पिथौरागढ़ में जन्मे पुष्कर धामी पेशे से वकील हैं और उन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंधों में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है। धामी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम किया है और 10 वर्षों तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य रहे। वह 2002-2008 तक भारतीय युवा मोर्चा (भाजयुमो) के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने 2001-2002 तक उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के ऑफिसर ऑन ड्यूटी (ओएसडी) के रूप में भी काम किया। धामी पहली बार 2012 में खटीमा से विधायक चुने गए और फिर 2017 में भी जीते। कांग्रेस के सीएम हरीश सिंह रावत के शासन के दौरान धामी को खटीमा में अपने काम के लिए सर्वश्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार मिला मुख्यमंत्री की कमान पुष्कर सिंह धामी को मिलने से सीमांत के लोगों को भी बड़ी उम्मीद जगी है। मूलरूप से पिथौरागढ़ जिले के हड़खोला गांव के रहने वाले पुष्कर सिंह धामी का यहां से विशेष लगाव भी रहा है। सीमांत जिले के लोगों को उम्मीद है कि जिले को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार बड़ी योजनाएं मिलेंगी। मानसून काल में बड़ी आपदाएं झेलने वाले जिले में आपदा राहत, पुनर्वास के लंबित मामलों का निस्तारण होगा। धामी के सीएम बनने पर जिले भर में जहां एक तरफ खुशी का माहौल बना है वहीं दूसरी तरफ जनता को उनसे सीमांत की समस्याओं के समाधान का भी भरोसा है। उनके मूलरूप से पिथौरागढ़ जिले का होने तथा पूर्व में मानसून काल में आपदाग्रस्त क्षेत्र में पार्टी की तरफ से तैनात रहने से लोगों की उम्मीदें भी बढ़ चुकी हैं। सीमांत में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की आस जगी है। सीएम धामी सीमांत की स्वास्थ्य सुविधाओं से वाकिफ हैं। वहीं सीमांत में दशकों से लंबित आपदा पीड़ितों के पुनर्वास और विस्थापन के मामलों का निवारण की भी उम्मीद जगी है। सीमांत में शिक्षा, चिकित्सा व्यवस्था काफी लचर है। शिक्षा के क्षेत्र में माध्यमिक विद्यालयों में स्थिति बेहद दयनीय है। मात्र 30 प्रतिशत माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाचार्य और प्रधानाध्यापक ही तैनात हैं। 65 प्रतिशत प्रवक्ताओं और 30 प्रतिशत सहायक अध्यापकों के पद रिक्त हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ तो दूर रहे चिकित्सक तक तैनात नहीं है। वही सड़कों के हाल बदहाल हैं। नदियों के कटाव से कई गांव व बस्तियां खतरे में हैं। पुष्कर सिंह धामी के सीएम बनने से जिले की जनता इन ज्वलंत समस्याओं के समाधान की उम्मीद जगी है। वह सीमांत का दर्द भली भांति जानते हैं। पुष्कर सिंह धामी खटीमा से विधायक बनने से पहले वर्ष 2007 में कनालीछीना विधानसभा सीट से विधायक के दावेदार थे। उनके बदले उस वक्त भाजपा ने तत्कालीन ब्लाक प्रमुख को टिकट दिया था। इसके बाद पुष्कर सिंह धामी खटीमा चले गए।उन्होंने खटीमा में अपनी पकड़ बनाना शुरू किया। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके समक्ष सबसे पहले आपदा से निपटने की चुनौती होगी। इसके अलावा विस्थापित लोगों को मकान दिलाना और लंबे समय से चल रही डीडीहाट जिले की मांग कर रहे लोगों की उम्मीद को पूरा करना भी उनके समक्ष एक चुनौती के रूप में ही होगा। इसी समय उन्होंने स्थानीय युवाओं के लिए राज्य में उपलब्ध विभिन्न सेक्टर्स की नौकरियों में 70 प्रतिशत रिजर्वेशन करने का आंदोलन चलाया और निपटने की चुनौती होगी सीएम ने कहा कि सीमांत पिथौरागढ़ में विकास की असीम संभावनाएं हैं। पिथौरागढ़ के साथ-साथ इसी तरह के प्रदेश के अन्य शहरों को भी स्मार्ट सिटी बनाने के लिए केन्द्र सरकार से आग्रह किया जाएगा। खटीमा से बस में पिथौरागढ़ आने का अनुभव बताया  बचपन में खटीमा से हम बस से यहां आते थे। सुबह साढ़े चार बजे एक बस चलती थी। यहां यात्रा का अनुभव और दर्द मुझे पता है। सीएम ने कुमाउनी में बोलते हुए कहा कि पूरा दिन यात्रा में लग जाता था। इसलिए यहां के दिक्कतों के बारे में वह अच्छे से जानते हैं। छह महीनों के कार्यकाल में धामी के व्यक्तित्व का एक और पहलू सामने आया, वाणी पर संयम। इंटरनेट मीडिया के इस युग में जब तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती, धामी के किसी बयान ने कोई नकारात्मक चर्चा नहीं बटोरी। यही नहीं, इस अवधि में किसी तरह के विवाद का कोई दाग भी उनके दामन पर नहीं लगा। अपने छोटे से कार्यकाल और फिर चुनाव के समय उन्होंने पूरे राज्य का भ्रमण कर पार्टी के पक्ष में वातावरण बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री के रूप में और अब जिन परिस्थितियों में उन्हें फिर अवसर मिला है, यह बताने के लिए काफी है कि धामी पार्टी के दिग्गजों के बीच सामंजस्य बिठाकर आगे बढऩे की कला में भी सिद्धहस्त हो चुके हैं। धामी ये वो नाम है जिसकी गूंज देवभूमि उत्तराखंड से देश की राजधानी दिल्ली तक सुनाई देती है। मुख्यमंत्री के तौर पर सात महीने के अंदर धामी के नाम की धमक देशभर में होने लगी। सेना के सूबेदार के घर से जन्में पुष्कर सिंह धामी आज उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। धामी की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इसी के साथ धामी सरकार के दूसरे दौर का आगाज भी हो जाएग।