ऐतिहासिक है तराई का चैती माता मंदिर, दूर-दराज से आते हैं भक्त

0
570

ऐतिहासिक है तराई का चैती माता मंदिर, दूरदराज से आते हैं भक्त

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तर भारत में लगने वाले बड़े मेलों में भगवती मां बाल सुंदरी देवी का चैत्र माह में लगने वाला चैती मेला भी एक है।धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देव शक्तियों का वास है। आजादी के बाद पश्चिम पाकिस्तान से आने वाले बंगाली विस्थापितो को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसाया गया। इस वक्त ऐसे लगभग 6 करोड़ लोग 18 प्रदेशों में रह रहे हैं, जिनमें उधम सिंह नगर के दिनेशपुर, रुद्रपुर, तथा शक्तिफार्म में रहने वाले बंगाली भी शामिल हैं। इन विस्थापितों ने विगत 65 वर्षो में बंजर जमीन को आबाद करके उसे हरा-भरा बनाया, लेकिन उन्हें जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया गया। तब से आज तक इस अधिकार के लिए विस्थापित बंगाली बंगाली कल्याण समिति, निखिल भारत उदवास्तु समन्वय समिति आदि संगठनों तहत आंदोलन कर रहे है। दिल्ली के जंतरमंतर में भी धरना प्रदर्शन हो चुके हैं। इस बार उत्तराखंड विधानसभा में बंगाली बहुल सितारगंज क्षेत्र से भाजपा से टिकट पर के जीतने से इन विस्थापितों में कुछ आशा जगी है।बंगाली समाज में होने वाले विशिष्ट धार्मिकसांस्कृतिक आयोजनों में दिनेशपुर में महावारुणि स्नान महोत्सव, रुद्रपुर में अटरिया मेला और शक्तिफार्म में बंगाल के हुगली जिला के तारकेश्वर धाम की तर्ज पर चैत के महीने में होने वाला बाबा तारकनाथ मेला मुख्य हैं। शक्तिफार्म में लगभग 30 छोटे बड़े गाँव हैं। टैगोर नगर में दुर्गा पूजा, बैकुण्ठपुर में कृष्णा पूजा नाम संकीर्तन, गुरुग्राम में हरीचाँद जन्मोत्सव प्रसिद्ध हैं। वैसे प्रत्येक गाँव में पूजाअर्चना विधि विधान के साथ होती रहती है। बाबा तारकनाथ धाम सुरेन्द्रनगर में शिव पूजा सबसे प्रसिद्ध है। 65 साल पहले विथापन के बाद बंगालियों के यहाँ बसते समय ही सुरेन्द्र नगर में एक झोंपड़ी में यह पूजा शुरू हो गई थी। तब दिलीप राय जी मुख्य भूमिका में थे और उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक मंदिर नहीं बन जाता, तब तक मैं पत्तल में ही भोजन करूँगा। यहाँ एक महीने पहले से ही भक्तों का ताँता लग जाता है। शिव काँवर वाले गौमुख हरिद्वार से गंगा जल पद यात्रा करजय बम भोलेके उदघोष के साथ बाबा तारकनाथ धाम में जल चढ़ाते हैं। बाबा तारकनाथ धाम के चारों ओर और कई मन्दिर हैं, जिनमें काली मंदिर, शेराँवाली, शनि महाराज, लोकनाथ, मनसा देवी आदि हैं।भक्तों की टोली प्रत्येक वर्ष यहाँ रमती है और महीने भर शिव आराधना में लीन रहती है। एक महीने संन्यासियों की तरह उपवास कर शाम को खाना खाते है। सात संन्यासियों में मूल संन्यासी विमल हालदार हैं। मन्दिर के पुजारी पहले पागल बक्सी पंडा और दुखी राम पंडा हुआ करते थे आज वह गद्दी दुखी राम पंडा सम्भाल रहे हैं। मोना विश्वास भी प्रमुख पुजारियो में से एक हैं। पूजा के दौरान चड़क पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जात्रा, गान और रंगारंग प्रोग्राम होते हैं।कुमाऊं का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला काशीपुर अपने आप में राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं अनेक पौराणिक महत्व संजोये हुए है। जिसमें आदि शक्तिपीठों में से एक है मां बाल सुंदरी का मंदिर है। जिसका जीर्णोद्धार मुगल शासक औरंगजेब ने किया था। 52 शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर चैती परिसर में स्थित है। माता का यह नाम उनके द्वारा बाल रूप में की गई लीलाओं की वजह से पड़ा है। इसे पूर्व में उज्जैनी एवं उकनी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता था। माता के प्रांगण में चैत्रमास में लगने वाला उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला लगता है। इस मेले को चैती मेला के नाम से जाना जाता है। इस मेले में देश भर से लोग आते हैं। इस दौरान माता मंदिर में ही विराजती हैं और भक्तों पर कृपा कर उनके कष्टों को हर लेती हैं। इस मंदिर में किसी देवी की मूर्ति नहीं बल्कि एक पत्थर पर बांह का आकार गढ़ा हुआ है, और इसी की पूजा होती है। औरंगजेब ने बनवाया था मंदिरचैती देवी मंदिर (जिसे माता बालासुन्दरी मंदिर भी कहा जाता है)। यह मंदिर नैनीताल जिले में काशीपुर कस्बे में कुंडेश्वरी मार्ग पर स्थित है। यह स्थान महाभारत से भी संबंधित रहा है जोकि इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां देवी महाकाली के मंदिर में बलि भी चढ़ाई जाती थी। अन्त में दशमी की रात्रि को बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती हैं। ऐसे पहुंचे चैती माता मंदिचैती माता मंदिर पहुंचने के लिए फ्लाइट, बस और ट्रेन की सुविधा है। फ्लाइट से चैती माता मंदिर पहुंचने के लिए दिल्ली से पंतनगर और फिर पंतनगर से करीब करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। इसके साथ ही दिल्ली, गाजियाबाद, लखनऊ, मुरादाबाद, हल्द्वानी से ट्रेन और बस की सुविधा है। मंदिर रामनगर मार्ग पर स्थित है। वर्जनमंदिर प्रांगण में लगने वाला मेला चैत्र में लगता है इसी वजह से उसे चैती मेले के नाम से जाना जाता है। चैत्र माह की सप्तमी की रात में माता की सोने की मूर्ति नगर देवी मंदिर से डोले के रूप में बाल सुंदरी मंदिर पहुंचती है। इस दौरान ढोल नगाड़ों के साथ हजारों श्रद्धालु माता के डोले के साथ चलते हैं। प्राचीन काल से ही डोले के साथ मजबूत सुरक्षा व्यवस्था भी रहती है जो आज भी जारी है। कहा जाता है कि इस दौरान हिमाचल प्रदेश स्थित ज्वाला देवी के मंदिर की एक ज्योत कम हो जाती है। मंदिर परिसर में एक विशाल कदंब का वृक्ष है, जो नीचे से खोखला होने पर भी ऊपर से हरा भरा है।ऐतिहासिक चैती मेले का धार्मिक और व्यापारिक महत्व है। इस मेले में प्रतिदिन करोड़ों का व्यापार होता है। विभिन्न राज्य सहित दिल्ली तक से दुकानें आती हैं। अन्य राज्यों के छोटे-बडे़ दुकानदारों के मेले में आने का इंतजार रहता है। इसके अलावा बड़े झूले व खेल तमाशा लगते हैं। मेले के दौरान भगवती मां बाल सुंदरी देवी चैती मंदिर में एक सप्ताह तक सार्वजनिक दर्शन देने के लिए विराजमान रहती हैं।ऐतिहासिक चैती मेले में लगने वाला नखासा मेला उत्तरी भारत का प्रमुख मेला है। इस मेले में कभी चंबल के डाकू अपनी पसंद का घोड़ा खरीदकर ले जाते थे। घोड़ा व्यापारियों के अनुसार इस मेले से सुल्ताना डाकू, डाकू मान सिंह के अलावा फूलन देवी भी घोड़े खरीद कर ले जाती थीं। बताया जाता है कि चैती मेला में नखासा मेला करीब चार सौ साल पहले रामपुर निवासी घोड़ों के बड़े व्यापारी हुसैन बख्श ने शुरू किया था।चैती मेले में लगे नखासा बाजार में पुराने घोड़ा व्यापारियों में से एक रामपुर निवासी चौधरी शौकत अली भी हैं। पांच पीढ़ियों से घोड़ों का कारोबार चौधरी शौकत अली का परिवार कर रहा है। अब छठी पीढ़ी में उनके बेटे सलमान ने खानदानी कारोबार को संभाल लिया है। अपने पुत्र के साथ कारोबार में हाथ बंटाने नखासा मेला में आए चौधरी शौकत अली ने बताया कि 400 साल पहले यहां भगवती बाल सुंदरी का मेला नहीं लगता था। सिर्फ मंदिर में पूजा होती थी, करीब 150 साल से मेला लगने लगा है। तब उनके दादा के पिता हुसैन बख्श ने पंडाओं से मिल कर यहां नखासा बाजार शुरू किया था। चौधरी शौकत अली ने बताया कि हुसैन बख्श के बाद उनके बेटे पुत्र मो. हुसैन, उनके पुत्र अली बहादुर, उनके पुत्र मेरे पिता चौधरी जफर और अब मेरा पुत्र सलमान घोड़ों के कारोबार को आगे बढ़ा रहा है। चौधरी शौकत अली ने बताया कि जब चैती मेला में नखासा मेला लगना शुरू हुआ। तब घोड़ों का कारोबार था। सबसे बड़े खरीददार सेना, पुलिस अधिकारी, राजा महाराजा और व्यापारी थे। जैसे-जैसे राजा रजवाड़ों का जमाना गया और कारों, मोटर साइकिलों का जमाना आया तो घोड़ों का यह कारोबार भी उतार पर आ गया है। चौधरी शौकत अली ने बताया कि चैती नखासा मेले में अफगानिस्तान, पंजाब, अविभाजित पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के व्यापारी घोड़े लेकर आते और खरीद कर ले जाते थे। उनके दादा अली बहादुर के समय डाकू मंगल सिंह, सुल्ताना डाकू और पिता चौधरी जाफर अली के समय डाकू फूलन देवी यहां से घोडे़ खरीद कर ले जाती थी। चौधरी ने बताया कि डाकू मेला में घोड़े खरीदने सामान्य खरीदार के वेश में आते थे और किसी को भी परेशान नहीं करते थे। चौधरी शौकत अली ने बताया कि फूलन देवी के बारे में तब पता चला जब वह मंदिर में देवी दर्शन कर और घोड़े खरीद कर चली गई थी। उन्होंने बताया कि चैती मेले के नखासा मेले में इस साल मल्होत्रा (पंजाब) और पंजाब, गुजरात, बदायूं, बरेली से घोड़े बिक्री के लिए हैं। अनेकों विशेषताओं व विशिष्ठताओं को अपने में संजोये इस पीठ का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। आज इस क्षेत्र के उचित विकास के साथ-साथ इस मंदिर को धार्मिक पर्यटन मानचित्र में अंकित किए जाने की आवश्यकता है।