उपचुनाव में राज्य के युवा मुख्यमंत्री की जीत के बड़े मायने
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के 22 साल के इस सफर में प्रदेश को 12 मुख्यमंत्री मिले हैं। भाजपा ने 8 मुख्यमंत्री दिए हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं। सबसे खास बात यह है कि सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे। उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में चम्पावत विधानसभा सीट से प्रदेश के चुनावी इतिहास में सबसे बड़ी जीत हासिल की। चुनाव में 93 प्रतिशत मत प्राप्त कर अब तक के सर्वाधिक मतों के अंतर से जीतने वाले विधानसभा सदस्य बन गए हैं। जून माह की उमस भरी गर्मी में भारतीय जनता पार्टी के लिए यह बड़ी राहत भरी खबर रही। विधानसभा के चुनाव में उनकी हार आम उत्तराखंडी और विपक्ष के लिए जितनी चौंकाने वाली थी, उपचुनाव की यह जीत उतनी ही प्रत्याशित। पार्टी हाईकमान ने हार के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप कर भरोसा जताया और वह इस पर खरे भी उतरे। चम्पावत उपचुनाव का परिणाम धामी के साथ-साथ प्रदेश के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके फलितार्थ पर आने वाले समय तक नजर रहेगी। उत्तराखंड में गत विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस की तमाम संभावनाओं को खारिज करते हुए भारी बहुमत प्राप्त किया। पार्टी के कमजोर खिलाड़ी भी मोदी फैक्टर के चलते मैदान मारने में सफल रहे। बावजूद इसके स्वयं धामी मुख्यमंत्री रहते और मुख्यमंत्री का घोषित चेहरा होते हुए भी अपनी सीट (खटीमा) से पराजित हो गए थे। यह हार उनके लिए ही नहीं, बल्कि पार्टी नेतृत्व के लिए भी बड़ा झटका थी और राज्यवासियों को झकझोरने वाली भी। सुविधाजनक बहुमत और अनुशासित संगठन के बूते ही पार्टी नेतृत्व धामी को हार के बावजूद मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ले पाया। अब वह ऐतिहासिक जीत के साथ मुख्यमंत्री हैं। इस जीत के साथ ही प्रदेश की राजनीति का मनोविज्ञान भी बदल गया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपे जाने के बाद भी धामी कहीं न कहीं पिछली हार व छह माह के अंदर जीत की संवैधानिक अनिवार्यता के दबाव में काम कर रहे थे। सुविधाजनक बहुमत के साथ चल रही भाजपा सरकार और संगठन में कहीं न कहीं अवसाद की छाया अवश्य थी। इसीलिए पार्टी ने इसके लिए ज्यादा समय लेने के बजाय दो माह में ही उपचुनाव का रास्ता चुना। उपचुनाव के परिणाम का सीधा सकारात्मक प्रभाव मुख्यमंत्री, उनकी टीम तथा पार्टी संगठन पर दिखाई देगा। अब सरकार के लिए निर्णय लेने व उनके क्रियान्वयन का उपयुक्त परिवेश निर्मित हुआ है। यह माना जा रहा है कि विकास में धीमी चाल, भ्रष्टाचार और नौकरशाही जैसे क्षेत्रों में मुख्यमंत्री त्वरित निर्णय ले सकेंगे। खुद की विधानसभा सदस्यता (संवैधानिक अनिवार्यता) को लेकर सारी चिंता समाप्त होने के साथ ही मुख्यमंत्री का सकारात्मक व निर्णयात्मक दृष्टिकोण बनना स्वाभाविक है। इसका प्रभाव शासन-प्रशासन और विकास योजनाओं के क्रियान्वयन पर दिखाई देगा। मंत्री परिषद की रिक्त तीन सीटों के भरने की संभावना भी बन पड़ी है। साथ ही, पार्टी संगठन में सरकारी दायित्वों के बंटवारे को लेकर हलचल दिखने लगी है। सरकार गठन के बाद जिन विधायकों व पदाधिकारियों को सरकार में दायित्व वाले पदों पर समायोजन का इंतजार था, उनकी उम्मीदें अब परवान चढ़ने लगी हैं। कुल मिलाकर चम्पावत उपचुनाव के परिणाम प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के बावजूद हार की मानसिकता से सरकार को उबारने में सफल रहे। उपचुनाव परिणाम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जीत भारतीय जनता पार्टी के लिए जितनी महत्वपूर्ण है, कांग्रेस के लिए फिर एक सबक के रूप में सामने आई है। उपचुनाव में कांग्रेस हारेगी, यह बात कांग्रेस भी जानती थी, लेकिन इतनी बुरी गत होगी, यह आभास कांग्रेस को नहीं था। हालांकि यह संकेत तो तब ही मिल गया था, जब क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले दमदार कांग्रेसियों ने चुनाव लड़ने से पल्ला झाड़ दिया। जब कोई नहीं मिला तो क्षेत्र की एक महिला कार्यकर्ता को चुनाव मैदान में उतार दिया गया। इसके बाद भी सम्मानजनक हार के लिए पार्टी नेताओं ने कोई खास जतन नहीं किया। नए प्रदेश अध्यक्ष, नए नेता सदन और उपनेता सदन के कौशल की परीक्षा भी होनी थी, लेकिन वे पहले ही पलायन कर बैठे। पार्टी प्रत्याशी ने तो उसी दौरान कह दिया था कि वह अकेली लड़ रही हैं। दिग्गज दो-चार दिन क्षेत्र में रह कर समाचार पत्रों में सुर्खियां तो बटोर गए, लेकिन पार्टी की नाक बचाने का कोई प्रयास नहीं किया। अब कांग्रेस नेता शर्मनाक हार के लिए सरकार और भाजपा को जिम्मेदार बता रहे हैं, जैसे कांग्रेस को पैरों पर खड़ा करने का जिम्मा भाजपा को निभाना था। पहले उदयपुर चिंतन शिविर फिर प्रदेश स्तरीय देहरादून चिंतन शिविर और अब जिला स्तर पर चिंतन शिविर करने की योजना बन गई है। अपने हालात पर इतना चिंतन करने वाली कांग्रेस को चम्पावत से मिले स्पष्ट संकेतों पर भी चिंता करनी चाहिए। राज्य के वित्तीय संसाधन बढ़ाने को गंभीरता से प्रयास होने चाहिए। किन सेक्टर में वित्तीय संसाधन जुटाए जा सकते हैं, यह देखा जाए। ऊर्जा के क्षेत्र में जलविद्युत संसाधन महत्वपूर्ण हैं। सौर ऊर्जा पर फोकस किया जाना चाहिए। बिजली में लाइन लास कम किया जाए। शहीदों की शहादत को बेकार नहीं होने दिया जाएगा। शहीदों के सपनों के अनुरूप उत्तराखंड को सजाया व संवारा जाएगा। मुख्यमंत्री धामी ने बताया कि राज्य में शान्ति एवं कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य में निवासरत बाहरी व्यक्तियों का सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है। 5 साल के धामी की राज्य की राजनीति में लंबी रेस में हैं. अब सीएम धामी का फोकस गुड गवर्नेंस और सरकारी सिस्टम को चुस्त दुरुस्त करने पर रहेगा. इसका संकेत वो पिछले कुछ दिनों में दे भी चुके हैं. अफसरों पर नकेल कसना हो या फिर ढीले अफसरों पर एक्शन लेना, सीएम ने मौके पर कार्रवाई की है. अपनी कैबिनेट के विस्तार को लेकर भी मुखमंत्री अब निर्णय ले सकते हैं. बीजेपी के सामने अब बड़ी चुनौती के तौर पर दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव होंगे. पिछले दो लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की है और इस रिजल्ट को दोहराना पार्टी की प्राथमिकता रहेगी. मुख्यमंत्री इस बात को बखूबी समझते हैं. संगठन और पार्टी के सीनियर लीडर्स को किस तरह सरकारी सिस्टम से जोड़कर उनसे काम ले सके और उनको सम्मान दे सके. इस दिशा पर भी अगले कुछ महीनों में प्रगति होने की उम्मीद की जानी चाहिए. सीएम धामी द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड को लाने की दिशा में ड्राफ्ट कमिटी का गठन किया गया है. सिविल कोड को लेकर भी आने वाले दिनों में हलचल जरूर होगी.
लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।