आमजन की जिंदगी से खिलवाड़ चारधाम यात्रा सवालों के घेरे में

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आमजन की जिंदगी से खिलवाड़ चारधाम यात्रा सवालों के घेरे में

                    डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

हरबर्टपुर विकासनगर-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर डामटा के पास रविवार को हुई बस दुर्घटना ऐसे स्थान पर हुई है, जहां राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के बड़कोट खंड ने राजमार्ग को करीब 18 मीटर चौड़ा बनाया है तथा हाईवे का डामरीकरण भी कराया हुआ है। ऐसे में दुर्घटना कैसे हुई इसका अंदाजा कोई भी नहीं लगा पा रहा है। इससे तो यही कहा जा रहा है कि सुहावने सफर में जिंदगी की गारंटी नहीं। वर्ष 2012 व 2013 की आपदा ने उत्तरकाशी में सड़कों की स्थिति को जर्जर बना दिया था। इनमें सबसे खराब स्थिति गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग, धरासू यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग, हरबर्टपुर विकासनगर यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग की थी। ये राष्ट्रीय राजमार्ग जगह-जगह क्षतिग्रस्त तथा संकरे भी थे, लेकिन वर्ष 2015 से लेकर 2022 के बीच इन राष्ट्रीय राजमार्ग पर चौड़ीकरण का कार्य हुआ। गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग व धरासू यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर आलवेदर निर्माण चल रहा है। हरबर्टपुर विकासनगर-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का भी चौड़ीकरण व डामरीकरण कार्य किया गया, जिस कारण अब देहरादून से लेकर बड़कोट तक पहुंचने में ढाई से तीन घंटे का समय लग रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग दुरुस्त होने के कारण गाड़ियों की रफ्तार भी बढ़ी है।रविवार को राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिस स्थान पर दुर्घटना हुई उस स्थान पर सड़क काफी चौड़ी है। भले ही सड़क पर क्रास बैरियर और पैराफीट नहीं बने थे, लेकिन दुर्घटना का कारण तेज गति और नींद हो सकती है। इंटरनेशनल रोड फेडरेशन ने चिंता व्यक्त की है। इस तरह की सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए फेडरेशन ने सड़क सुरक्षा के लिए तकनीकी पहलुओं पर काम करने के साथ नियमों को सख्त करने के सुझाव दिए हैं।इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के अध्यक्ष ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में वाहन चलाने के लिए लाइसेंस नियमों को सख्त किया जाए। साथ ही ओवरलोडिंग पर लगाम कसने के साथ फिटनेस नियमों को भी कड़ा किया जाए। वाहनों में अनिवार्य रूप से ट्रैकिंग सिस्टम भी लगाया जाना चाहिए। वहीं, फेडरेशन के इंडिया चैप्टर के अध्यक्ष ने कहा कि सड़क निर्माण के दौरान सुरक्षा के लिहाज से तकनीकी पहलुओं पर भी काफी काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों पर क्रैश बैरियर लगाए जाएं और सड़क निर्माण में पहाड़ के कटान भूस्खलन जोन के उपचार में सभी मानकों का ध्यान रखना जरूरी है। इसके अलावा सड़क सुरक्षा के लिए इंटेलिजेंट ट्रैफिक प्लान पर काम करने के साथ रंबल स्ट्रिप्स बनाकर वाहनों में स्पीड गवर्नर लगाए जाएं। सड़क दुर्घटनाओं में मौत के मामलों में भारत का आंकड़ा 11 प्रतिशत है। वर्ष 2020 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 1.4 लाख व्यक्तियों की मौत दर्ज की गई है और यह संख्या चिंता की तरफ इशारा करती है। इस स्थिति को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भारत समेत ब्राजील को वर्ष 2025 तक मौत के आंकड़ों को आधा करने का लक्ष्य दिया है।उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री राजमार्ग पर हुई बस दुर्घटना ने चारधाम यात्रा की सुरक्षा को भी सवालों के घेरे में ला दिया है। फिलहाल, हादसे की वजह चालक को झपकी आना और तेज गति को माना जा रहा है। अतीत के आईने में झांकें तो विभिन्न हादसों के लिए जिम्मेदार ये वजहें नई नहीं हैं। सड़क सुरक्षा समितियों की बैठक में भी इन पर मंथन होता रहता है।बावजूद इसके सरकारी तंत्र यातायात नियमों का पालन करवाने में सफल क्यों नहीं हो पा रहा? ब्लैक स्पाट और दुर्घटना संभावित स्थलों को ठीक करने में अगंभीरता क्यों दिखाई जा रही है? पहाड़ में सैकड़ों किमी सड़क पर पैराफिट और क्रैश बैरियर तक नहीं है, यह दुर्घटनास्थल भी इसी का हिस्सा है। इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जिम्मेदार संस्थाएं आमजन की जिंदगी से खिलवाड़ क्यों कर रही हैं? तंत्र को इन सवालों की तह में जाकर इनके हल ढूंढने चाहिए। चारधाम यात्रा के पड़ावों पर श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए उचित प्रबंध किए गए हैं, मगर यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी वाहन चालकों को पर्याप्त आराम करने का अवसर तक नहीं मिल रहा। यात्रा मार्ग में न तो उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए कोई व्यवस्था है और न ही कोई यह पूछने वाला कि वह लगातार कितने घंटे से वाहन का संचालन कर रहे हैं। चंद रुपयों के लालच में यात्रा से लौटते ही उन्हें दूसरी ट्रिप पर भेजा जा रहा है। जबकि, परिवहन विभाग की व्यवस्था में हर ट्रिप के बाद चालक को एक दिन का आराम देना अनिवार्य है। श्रद्धालु भी यात्रा के दौरान निश्चित समय में ज्यादा से ज्यादा स्थानों का भ्रमण करने के लिए चालकों के आराम का ख्याल नहीं रख रहे। इसी बेपरवाही के कारण चालकों की नींद की झपकी हादसों का सबब बन रही है। इस बारे में तंत्र के साथ श्रद्धालुओं को भी गंभीरता दिखानी होगी।

लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।