सेना में वीरता का पैमाना है उत्तराखंड के सैनिक’अग्निपथ स्‍कीम?

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सेना में वीरता का पैमाना है उत्तराखंड के सैनिक’अग्निपथ स्‍कीम?

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

देश की सेना में हर 100वां सैनिक उत्तराखंड का है। किसी भी सेना का जिक्र होता है तो उसमें कम जनसंख्या घनत्व वाले उत्तराखंड का नाम गौरव से लिया जाता है। आजादी से पहले हो या बाद में, उत्तराखंड का नाम हमेशा सेना के गौरव से जुड़ा रहा है। आलम यह है कि हर साल उत्तराखंड के करीब नौ हजार युवा सेना में शामिल होते हैं।राज्य में 1,69,519 पूर्व सैनिकों के साथ ही करीब 72 हजार सेवारत सैनिक हैं। वर्ष 1948 के कबायली हमले से लेकर कारगिल युद्ध और इसके बाद आतंकवादियों के खिलाफ चले अभियान में उत्तराखंड के सैनिकों की अहम भूमिका रही है। खास बात यह है कि उत्तराखंड के युवा अंग्रेजी हुकूमत में भी पहली पसंद में रहते थे।
अंग्रेजों ने उत्तराखंडी सैनिकों को नेतृत्व के लिए बेहतर पाया था। भारतीय को प्रशिक्षण देने की नींव वर्ष 1922 में देहरादून में रखी गई थी। प्रिंस ऑफ वेल्स राय मिलिट्री कॉलेज (आरआईएमसी) देहरादून में खोला गया। वर्ष 1932 में आईएमए की शुरुआत हुई। गढ़वाली, कुमाऊं, गोरखा और नागाओं को प्रशिक्षण देने के लिए पर्वतीय हिस्से को चुनागया। केंद्र सरकार ने सैन्‍य भर्ती में बड़े बदलाव का रास्‍ता साफ कर दिया है। मंगलवार को उसने सेना, नौसेना और वायुसेना में सैनिकों की भर्ती के लिए नई स्‍कीम का ऐलान किया। इसका नाम ‘अग्निपथ स्‍कीम’ है। इसके तहत चार साल की अवध‍ि के लिए सैनिकों की भर्ती की जाएगी। सेना में स्‍कीम के तहत भर्ती होने वाले इन जवानों को ‘अग्निवीर’ कहा जाएगा। यह भर्ती कॉन्‍ट्रैक्‍चुअल होगी। इसका मकसद सेना को ज्‍यादा यंग बनाना है। इसके अलावा इसकी मदद से बढ़ते वेतन और पेंशन खर्च को भी कम किया जा सकेगा। सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडल समिति की बैठक में ‘अग्निपथ स्‍कीम’ को मंजूरी दी गई। सरकार भले इस स्‍कीम के फायदे गिना रही है, लेकिन एक्‍सपर्ट्स ने इसमें कई तरह की खामियों की ओर भी इशारा किया है। इन्‍हें पूरी तरह से दरकिनार नहीं किया जा सकता है पीके सहगल ने आजतक से बातचीत में कहा की सरकार की यह बहुत खराब स्कीम है. यह सरकार के लिए अग्निपथ साबित हो सकता है. देश में बेरोजगारी बहुत है. 46 हजार लो. उनका कहना है कि एक अच्‍छा सैनिक बनने में छह से सात साल लग जाते हैं। इन दिनों बहुत ही सुपर सोफिस्टिकेटेड इक्विपमेंट आ गए हैं। ये इक्विपमेंट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस होते हैं। छह महीने की ट्रेनिंग में ये उन इक्विपमेंट को इस तरह हैंडल करना सीख लें कि जंग जीत ली जाए तो यह भूल होगी।सहगल ने दूसरी बात समर्पण के संबंध में की है। उन्‍होंने कहा क‍ि छह महीने की ट्रेनिंग और चार साल के लिए सेना में आने वाले सैनिक में शायद ही वो जज्‍बा, जुनून और काबिलियत हो जो अभी जवानों में देखने को मिलती है। हालांकि, इस स्‍कीम में खाफी खामियां हैं। सबसे बड़ी खामी तो ट्रेनिंग को लेकर ही है। छह महीने की ट्रेनिंग पूरी तरह नाकाफी है। सेना में ट्रेनिंग के लिए कम से कम डेढ़ से दो साल की जरूरत होती है। चार साल में रिटायर होने वाले सैनिकों को इस तरह ट्रेनिंग के लिए बहुत कम समय मिल पाएगा। जब तक वो मॉडर्न वेपन चलाना सीखेंगे, सेना से निकल जाएंगे।सहगल की तरह अश्विनी सिवाच ने भी नए सैनिकों की लॉयलिटी पर इशारा किया। उन्‍होंने कहा कि फौज के अंदर नाम, नमक, निशान के काफी मायने होते हैं। जिस जवान को पता है कि उसकी चार साल की ही नौकरी है उसमें सामान्‍य जवानों की तरह जज्‍बा नहीं होगा। स्‍कीम से निकलने वाले 75 फीसदी जवानों के भविष्‍य को अनिश्चितता का खतरा होगा। एक और अहम खतरे की ओर इशारा किया। उन्‍होंने कहा कि ये अग्निवीर बैटल ट्रेंड जवान होंगे। फर्ज कीजिए इन्‍हें बाहर निकलने पर ठीकठाक जॉब नहीं मिली और ये किसी एंटी-सोशल एक्टिविटी की तरफ चल गए तो क्‍या होगा। यह समझने की कोशिश करनी चाहिए। लिहाजा, रिटायरमेंट के बाद इनकी जॉब सुनिश्चित करनी होगी। हर साल करीब 60 हजार सैनिकों का रिटायरमेंट होता है। इतनी ही भर्तियां होती हैं। उन्‍होंने सवाल किया कि कितने लोगों को रिटायरमेंट के बाद नौकरियां मिलती हैं। अग्निपथ स्‍कीम से 4 साल के लिए भर्ती होगी। इसमें छह महीने ट्रेनिंग होगी। सैनिकों की छुट्टियां भी होंगी। ये मुश्किल से दो साल नौकरी कर पाएंगे। ये सेना का मनोबल गिराने जैसा है। सेना के स्‍ट्रक्‍चर ने 1947, 1962, 1965, कारगिल जैसे युद्ध जीतकर दिए हैं।  पढ़ाई-लिखाई की उम्र में सेना में भर्ती होने वाले नौजवान 22-25 साल में फिर बेरोजगार हो जाएंगे। उन्‍हें न तो पेंशन मिलेगी न ग्रेच्‍युटी। दरअसल, अग्निवीर बैच के 25 फीसदी तक के नौजवानों को ही सेना में आगे रेगुलर भर्ती का मौका मिलेगा। सैनिकों की भर्ती शुरू में चार साल की अवधि के लिए होगी। लेकिन, उनमें से कुछ को बरकरार रखा जाएगा।  सशस्त्र बलों के लिए अग्निपथ योजना पूर्ववर्ती सैन्य परंपरा, लोकाचार, नैतिकता और मूल्यों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह सेना की दक्षता और प्रभावशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।’ सैनिकों में युवाओं की भर्तियां छोटी अवधि के लिए करेंगे तो वे 24 साल होते-होते फौज से बाहर हो जाएंगे. इससे देश में और बेरोज़गारी ही बढ़ेगी कहते हैं, ”क्या आप वाक़ई कि बड़ी संख्या में सैन्य प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं को नौकरी से बाहर करना चाहते हैं? ये युवा फिर उसी समाज में आएंगे, जहाँ पहले से ही हिंसा बढ़ी हुई है. क्या आप चाहते हैं कि ये पूर्व फौजी पुलिस और सिक्यॉरिटी गार्ड बनेंगे? मेरा डर है कि कहीं हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेने वाले बेरोज़गार युवाओं का मिलिशिया न तैयार हो जाए.”भारत का स्थायी निवासी होना चाहिए. उनकी आयु 17.5 से 21 वर्ष के बीच होनी चाहिए. उम्मीदवार को 10वीं या 12वीं पास होना चाहिए. इसके साथ ही उनको सभी चिकित्सा मानदंडों को पूरा करना होगा. चार साल पूरे होने के बाद भले ही 25 फीसदी अग्निवीरों को स्थायी काडर में भर्ती कर लिया जाएगा, लेकिन सवाल यह हो रहा है कि दसवीं या बारहवीं पास करके अग्निवीर बने 75 फीसदी युवाओं के पास चार साल बाद क्या विकल्प होगा..  वहीं उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी पिछले तीनचार सालों से आर्मी में जाने की तैयारियों में जुटे युवाओं में भी अग्निपथ स्कीम को लेकर खासा आक्रोश और निराशा नजर देखी जा रही है.देहरादून के परेड मैदान में बड़ी संख्या में प्रतिदिन तैयारी करने वाले मैदानी और पहाड़ी जनपदों के युवाओं का साफ तौर पर कहना है कि जिस तरह का सपना उन्होंने भारतीय सेना को ज्वाइन कर एक सुरक्षित भविष्य को लेकर देखा था, वह अग्निपथ स्कीम से टूटता नजर रहा है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए परेड मैदान में शारीरिक दक्षता का अभ्यास करने वाले युवाओं का कहना है कि इस स्कीम में 4 साल की नौकरी में वह कैसे अपने भविष्य को सिक्योर कर सकते हैं. 4 साल के छोटे से अनुभव से कैसे कोई जवान पाकिस्तान और चाइना या अन्य देशों के अनुभवी जवानों के आगे बॉर्डर पर कड़ी टक्कर दे सकता है. वहीं पिछले 4 सालों से सेना में भर्ती की तैयारी में जुटे उत्तराखंड के युवाओं का यह भी कहना है कि राज्य सरकार अग्निपथ स्कीम के तहत सेना में सेवा देने वाले युवाओं को अलग-अलग सरकारी सेवाओं में प्राथमिकता देने की बात कर रही है. उसको पहले शासनादेश के रूप में इसे धरातल पर लाना होगा. तभी राज्य के युवाओं में विश्वास जगाया जा सकता है. उत्तराखंड राज्य एक अरसे से ही सैनिक बाहुल्य प्रदेश रहा है. यहां का अधिकांश युवा सेना में ही अपने पूर्वजों की तर्ज पर अपना भविष्य तलाशता है.युवाओं का सवाल है कि जिस तरह से 4 साल का सेवाकाल योजना सरकार लेकर आ रही है, उसे समझना और उस पर भरोसा करना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है. अग्निपथ को लेकर उत्तराखंड के मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र के आक्रोशित युवाओं ने कहा कि मुख्यमंत्री अपनी जीत का जश्न सड़कों पर मनाते नजर आए, लेकिन आज युवा जब इस योजना से हताश और निराश होकर सड़कों पर आ रहा है उत्तराखण्ड का जुड़ाव सर्वविदित है, हमारे यहां के वीर सैनिकों की शौर्य गाथाओं से भारतीय सेना का इतिहास भरा पड़ा है। यहां के हर घर से कोई न कोई वीर सैनिक अवश्य ही भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहा होता है।अतः हमने यह तय किया है कि अग्निपथ योजना के अंतर्गत मां भारती की सेवा के उपरांत अग्निवीरों को राज्य सरकार उत्तराखण्ड पुलिस आपदा प्रबन्धन, चार धाम यात्रा प्रबन्धन सहित अनेक सेवाओं में प्राथमिकता प्रदान करेगी, तत्सम्बन्धी नियम शीघ्र ही तय किये जायेंगे।प्रदेश के युवाओं के सर्वांगीण विकास व उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने हेतु हमारी सरकार पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है और हम निरंतर इस दिशा में प्रयासरत रहेंगे।मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के युवा को अग्निवीर बन राष्ट्र व राज्य का नाम रोशन करेंगे और अपने शौर्य व पराक्रम का परचम चारों दिशाओं में है. सेना में बहादुरी दिखाने के मामले में उत्तराखंड का बड़ा नाम है। जब भी कोई युद्ध हुआ है, तभी उत्तराखंड के युवाओं ने अपनी जांबाजी से मिसाल कायम की है।  वीरता के इतिहास में उत्तराखंड जैसे कम जनसंख्या घनत्व वाले राज्य का बड़ा नाम है।आजादी से पहले हो या बाद में, हमेशा यहां के युवाओं ने सेना में अपनी बहादुरी की वीरगाथा स्वर्ण अक्षरों से लिखी। अविभाजित उत्तर प्रदेश के इस क्षेत्र के नाम आजादी से पहले ही जहां तीन विक्टोरिया क्रॉस सहित 364 वीरता पदक थे, वहीं आजादी के बाद से अब तक यहां बहादुरों ने एक परमवीर चक्र सहित 1262 वीरता पदक अपने नाम किए हैं। 

लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।