शहरीकरण की रफ्तार के आगे उत्तराखंड में गांव सिकुड़े

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शहरीकरण की रफ्तार के आगे उत्तराखंड में गांव सिकुड़े

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तराखण्ड को सत्ताइसवें राज्य के रूप में भारत गणराज्य के शामिल किया गया। वर्ष 2000 से 2006 तक इसे उत्तरांचल के नाम से पुकारा जाता था, लेकिन जनवरी 2007 में स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसका आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे उत्तराखंड की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के साथ ही यह राज्य हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली देश की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना का उद्गम स्थल है। उत्तराखंड का शहरीकरण बहुत तेजी से हो रहा है। राज्य की कुल आबादी के 36.24 लोग शहरों में रहते हैं। जबकि राज्य गठन के समय यह आंकड़ा 21.72 था। उत्तराखंड जिस तेजी से शहरीकरण बढ़ रहा है, निकायों में उस हिसाब से सुविधाएं जुटाने की तैयारी नहीं है।राज्य बनते वक्त 21.72 प्रतिशत थी शहरी आबादी : आर्थिक सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड गठन के समय 21.72 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करती थी। शहरीकरण में असली तेजी पिछले एक दशक में देखने को मिली है। अब प्रदेश में शहरी आबादी 36.24 प्रतिशत हो गई है। नई जनगणना के बाद शहरी आबादी 40 प्रतिशत के पार पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।रिपोर्ट के अनुसार बीते दस साल में उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से 17.10 लाख लोगों का पलायन शहरों की तरफ हुआ है। अलग राज्य बनते समय प्रदेश में कुल 63 निकाय थे। यह अब बढ़कर 102 हो गए हैं। हालांकि, जनसंख्या के अनुपात में निकाय तो बढ़े हैं। लेकिन शहरी सुविधाएं सभी लोगों तक पहुंचाना अब भी चुनौती है।पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में 2011 की जनगणना के अनुसार शहरी आबादी सिर्फ 10.3 प्रतिशत थी। उत्तराखंड में 2011 में शहरी आबादी का प्रतिशत 26.55 प्रतिशत था। एसडीसी फाउंडेशन के मुताबिक, उत्तराखंड में शहरीकरण हिमाचल की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा है। उत्तराखंड के साथ बने छत्तीसगढ़, झारखंड भी शहरीकरण के मामले में पीछे हैं। आर्थिक सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड गठन के समय 21.72 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करती थी। शहरीकरण में असली तेजी पिछले एक दशक में देखने को मिली है। अब प्रदेश में शहरी आबादी 36.24 प्रतिशत हो गई है। नई जनगणना के बाद शहरी आबादी 40 प्रतिशत के पार पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।रिपोर्ट के अनुसार बीते दस साल में उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से 17.10 लाख लोगों का पलायन शहरों की तरफ हुआ है। अलग राज्य बनते समय प्रदेश में कुल 63 निकाय थे। यह अब बढ़कर 102 हो गए हैं। हालांकि, जनसंख्या के अनुपात में निकाय तो बढ़े हैं। लेकिन शहरी सुविधाएं सभी लोगों तक पहुंचाना अब भी चुनौती है। भले ही केंद्र व राज्य सरकार तमाम ऐसी स्वरोजगार की योजनाएं चला रही हों, जिनमें बैंक से लोन की जरूरत होती है, लेकिन उत्तराखंड के बैंक लोन देने में आनाकानी कर रहे हैं। इस वजह से प्रदेश में ऋण-जमा अनुपात महज 47 फीसदी है, जबकि आरबीआई के मानकों के हिसाब से यह 60 फीसदी होना ही चाहिए। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, प्रदेश में ऊधमसिंह नगर का ऋण-जमा अनुपात सबसे अधिक 103 प्रतिशत, चमोली का 70 प्रतिशत, हरिद्वार का 66 प्रतिशत है, जबकि पौड़ी, अल्मोड़ा और बागेश्वर का 26-26 प्रतिशत है। देहरादून का 35 प्रतिशत, उत्तरकाशी का 52 प्रतिशत, टिहरी का 32 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग का 28 प्रतिशत, पिथौरागढ़ का 45 प्रतिशत, चंपावत का 34 प्रतिशत, नैनीताल का 41 प्रतिशत है। कुमाऊं मंडल के छह जिलों का ऋण-जमा अनुपात आरबीआई के 60 फीसदी के मानक के करीब 58 फीसदी है, जबकि गढ़वाल मंडल के सात जिलों का ऋण-जमा अनुपात महज 42 फीसदी है।रिपोर्ट में केंद्रीय सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वय मंत्रालय के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड में जनवरी 2022 से मार्च 2022 की तिमाही में महंगाई 5.83 प्रतिशत बढ़कर 6.38 प्रतिशत हो चुकी है. देश में उत्तराखंड का आठवां स्थान है. 2011 की जनगणना के आधार पर उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तुलना में 200 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश की तुलना में 37 प्रतिशत से ज्यादा शहरी आबादी है। इसका सीधा अर्थ यह है कि हमारे सामने अर्बन इंफ्रॉस्ट्रक्चर को बढ़ती शहरी आबादी की जरूरत के अनुसार विकसित करने की बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में दिल्ली देहरादून इकोनॉमिक कॉरिडोर, चार धाम परियोजना और तमाम अन्य केंद्रीय प्रोजेक्ट्स से उत्तराखंड में शहरी दबाव निश्चित तौर पर बढ़ेगा इन सब चुनौतियों के लिए प्रदेश के शहरों को तैयार करने के लिए राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को अर्बन मैनिफेस्टो और शहरीकरण की घोषणाओं को तथ्यों और आउटकम ओरिएंटेड आधार पर तैयार करना होगा। लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।