टिहरी भारत की एक अकेली रियासत, जहां जनक्रांति से गढ़ी गई थी राजशाही से आजादी

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टिहरी भारत की एक अकेली रियासत, जहां जनक्रांति से गढ़ी गई थी राजशाही से आजादी

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में टिहरी जनक्रांति का स्मरण आवश्यक है। वहां राजशाही के विरोध में सामने आए आंदोलनकारियों पर कठोर अत्याचारों के बावजूद नहीं बुझी क्रांति की मशाल। शायद टिहरी भारत की अकेली ऐसी रियासत थी, जहां जनता ने देश की आजादी के बाद निर्णायक जनक्रांति कर राजशाही से खुद की आजादी गढ़ी, खुद की विधानसभा बनाई, सरकार बनाई और फिर आजाद भारत में विलय का लक्ष्य हासिल किया। अन्यथा अंग्रेजों ने तो 500 से ज्यादा देसी रियासतों के रजवाड़ों को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में मिलने अथवा स्वतंत्र बने रहने की छूट दे दी थी। तब सरदार वल्लभ भाई पटेल को कुछ रियासतों को विलय के लिए कार्रवाई तक का डर दिखाना पड़ा और कुछ पर कार्रवाई भी करनी पड़ी थी। टिहरी की आंदोलनरत जनता ने 11 जनवरी, 1948 को बोलांदा बदरी‘ (बोलने वाला बदरीनाथ) नाम से स्थापित सैकड़ों साल पुरानी राजवंशी सत्ता ध्वस्त कर दी। इसके बाद भारत सरकार के संज्ञान में टिहरी की अंतरिम सरकार गठित हुई और टिहरी विधानसभा का गठन किया गया व चुनाव भी हुए। स्वतंत्र भारत में मताधिकार के आधार पर चुनी गई यह पहली विधानसभा थी। खास बात यह कि चुनाव में महाराजा टिहरी के समर्थकों ने भी जनहितैषिणी सभा के नाम से हिस्सा लिया। आखिरकार भारत सरकार की एक अगस्त, 1949 की आधिकारिक घोषणा के अनुसार, टिहरी का उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) में विलय सुनिश्चित हुआ। रियासत में 1942 की अगस्त क्रांति की अलख भी युवाओं ने ही जगाई थी। टिहरी राजशाही के पतन से पहले ही 15 दिसंबर, 1947 को सकलाना में आजाद पंचायत की घोषणा कर दी गई थी। तब आजाद पंचायत के सरपंच रामचंद्र उनियाल ने कहा था, ‘हिंदुस्तान तो 15 अगस्त को आजाद हो चुका है, परंतु टिहरी की पांच लाख की आबादी अभी भी क्रूर सामंतशाही का दमन झेल रही है। आजादी हासिल करने को जितने कष्ट सहे, उससे ज्यादा मुश्किल आजादी को बनाए रखना और उसे आगे बढ़ाए रखना होता है। क्योंकि हमारे विरोधी हर तरीके से हमारी आजादी छीनने की कोशिश करेंगे।रंवाई में करों का विरोध करने वाली जनता को दंड देने व भयभीत करने के लिए 30 मई, 1930 को तिलाड़ी कांड को अंजाम दिया गया। इस कांड को गढ़वाल के जलियांवाला कांड के नाम से जाना जाता है। उस दिन राजा के प्रतिकार की रणनीति तय करने सैकड़ों किसान बड़कोट में तिलाड़ी मैदान पर जमा हुए थे। तब राजशाही की फौज ने तीन ओर से घेरकर लाठी-गोली की बौछार कर दी। चौथा खाली छोर यमुना नदी का था, जहां कई लोग जान बचाने नदी में कूद पड़े थे।सकलाना की आजादी के बाद आजाद पंचायत उद्घोषणाओं का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा था। देवप्रयाग व कीर्तिनगर की पुलिस चौकी व कार्यालयों पर जनता ने कब्जा कर लिया था। बडियारगढ़ में भी आजाद पंचायत की घोषणा हो चुकी थी। वहां टिहरी पर कब्जा करने के लिए प्रजामंडल ने सत्याग्रहियों की भर्ती शुरू की थी। आजाद कीर्तिनगर में डांगचैरा से दादा दौलतराम के नेतृत्व में कोर्ट परिसर में पहुंचे किसान व ग्रामीण आंदोलनकारी जत्थों पर चलाई गई महाराजा के अधिकारियों की गोली से नागेंद्र दत्त सकलानी व मोलू भरदारी शहीद हो गए। महाराजा के अधिकारी इन शहादतों के बाद के आक्रोश को कीर्तिनगर तक ही सीमित रखने का षड्यंत्र कर रहे थे, लेकिन घटनास्थल पर मौजूद प्रजामंडल व साम्यवादी विचारधारा के नेताओं ने तय किया कि वे 11 जनवरी को शहीदों के शव लेकर खास पट्टी होते हुए टिहरी के लिए कूच करेंगे।इसके बाद भागीरथी व भिलंगना के संगम पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनका यही फैसला टिहरी राजशाही के ताबूत पर अंतिम कील साबित हुआ। जनक्रांति के बीच नरेंद्र नगर से महाराजा नरेंद्र शाह ने टिहरी नगर में घुसने का प्रयास भी किया, लेकिन अडिग वीरेंद्र दत्त सकलानी एडवोकेट, जो तब तक आजाद टिहरी पंचायत के प्रमुख घोषित हो चुके थे, ने साथियों सहित वह प्रयास विफल कर दिया। सकलानी ने टिहरी को डूबने से बचाने के लिए टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का भी वर्षों तक नेतृत्व किया। 14 जनवरी को सकलानी केनेतृत्व में टिहरी प्रजामंडल ने शासन संभाला। टिहरी में शहीदों के शव पहुंचने तक जगह-जगह से सत्याग्रहियों की भीड़ भी वहां पहुंच चुकी थी। हजारों टिहरीवासियों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।देश को आजादी 15 अगस्त 1947 में मिली, लेकिन टिहरी रियासत की जनता को आजादी के लिए दो साल इंतजार करना पड़ा। टिहरी महाराज और भारत सरकार के बीच एक अगस्त 1949 को नरेंद्रनगर में विलय पत्र पर हस्ताक्षर हुए। इसके बाद ही टिहरी रियासत विधिवत रूप में भारतीय संघ का हिस्सा बनी।16 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत के विरुद्ध आवाज उठाने वाले क्रांतिकारियों ने राजधानी टिहरी पर कब्जा कर लिया। इसके बाद भारत सरकार ने भी टिहरी रियासत में शांति व्यवस्था के लिए विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी और एक अगस्त 1949 का दिन टिहरी रियासत के लिए असली आजादी का दिन है। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ, तब टिहरी गढ़वाल में राजशाही के अधीन था। वर्ष 1815 में महाराज सुदर्शन शाह ने टिहरी नगर को अपनी राजधानी बनाया एक अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया।तत्कालीन संयुक्त प्रांत के प्रमुख गोविंद बल्लभ पंत की उपस्थिति में राजकीय इंटर कालेज नरेंद्रनगर के मैदान में विलय के निमित्त कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें टिहरी रियासत के महाराज मानवेंद्र शाह और अन्य अधिकारियों की उपस्थिति में विलयीकरण समझौता हुआ। इस दौरान टिहरी रियासत की सेना ने प्रांत प्रमुख गोविंद बल्लभ पंत को गार्ड आफ आनर दिया और वहां पर तिरंगा भी फहराया गया। टिहरी राजशाही पर शोध करने वाले इतिहासकार राजू गुसाईं बताते हैं कि टिहरी रियासत के विलय के दौरान का वीडियो भारतीय फिल्म डिवीजन के पास सुरक्षित है।उसे लच्छीवाला (देहरादून) पिकनिक स्पाट के म्यूजियम में पर्यटकों को भी दिखाया जाता है, ताकि वे टिहरी राजशाही के इतिहास से परिचित हो सकें।स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के पदचिन्हों पर चलना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं.