मसूरी में हुआ करती थी इंग्‍लैंड जैसी सारी सुविधाएं

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मसूरी में हुआ करती थी इंग्लैंड जैसी सारी सुविधाएं

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में मसूरी को विश्व के सात प्रमुख शहरों में जाना जाता है। यहां वे सारी सुविधाएं मौजूद थीं, जो उस जमाने में इंग्लैंड में हुआ करती थीं। लेकिन, यह सब संभव हो पाया था कैप्टन फ्रेडरिक यंग की बदौलत। वह मसूरी आए तो थे अंग्रेजी सेना के अफसर बनकर, लेकिन यह जगह उन्हें इस कदर रास आई कि फिर पूरे 40 साल यहीं रहकर इसे संवारने में जुटे रहे। कैप्टन फ्रेडरिक यंग मसूरी के विकास में योगदान को रेखांकित फ्रेडरिक यंग का जन्म आयरलैंड के डोनेगल प्रांत में 30 नवंबर 1786 को हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वे ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर भारत गए। यहां उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में अहम भूमिका निभाई और कई भारतीय रियासतों को जीतने के साथ ही दक्षिण भारत में टीपू सुल्तान से युद्ध कर उन्हें भी पराजित किया। वर्ष 1814 में कैप्टन यंग का स्थानांतरण देहरादून कर दिया गया। तब यहां टिहरी रियासत और गोरखा सेना के बीच युद्ध चल रहा था। इसके लिए टिहरी नरेश ने अंग्रेजी सेना की मदद मांगी। लगभग डेढ़ माह चले इस युद्ध के पहले चरण में अंग्रेजी सेना के कई अधिकारी मारे गए, जिनमें मेजर जनरल रॉबर्ट रोलो जिलेप्सी भी शामिल थे। कैप्टन यंग तब उनके सहायक हुआ करते थे। जिलेप्सी की मौत के बाद उन्होंने सेना की कमान संभाली। उनके नेतृत्व में सहारनपुर, लुधियाना, गोरखपुर आदि स्थानों से सेना बुलाकर दोबारा खलंगा के अभेद्य किले पर आक्रमण किया गया। तब तोप से 18 पाउंड के गोले दागे गए, जिससे किला ध्वस्त हो गया। युद्ध का समापन गोरखा सेना की हार के साथ 30 नवंबर 1814 को हुआ। गोरखाओं के यहां से हिमाचल जाने पर एक संधि के तहत टिहरी महाराज ने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों को दे दिया। यह हिस्सा ब्रिटिश गढ़वाल कहलाया। सेना में जनरल बनने के बाद वर्ष 1823 में कैप्टन यंग ने मसूरी को बसाने का कार्य शुरू किया। तब अंग्रेज मसूरी के जंगलों में शिकार खेलने आया करते थे। कैप्टन यंग को यह जगह हर दृष्टि से आयरलैंड की तरह ही लगी। यहां की खूबसूरती और जलवायु ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया। इसलिए उन्होंने मसूरी में ही डेरा डालने की ठान ली। सबसे पहले उन्होंने मसूरी के मलिंगार में शूटिंग रेंज बनाई और वर्ष 1825 में अपने लिए झोपड़ीनुमा कच्चा मकान भी बना लिया। उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों को मनाया कि यहां सैनिकों के लिए एक सेनिटोरियम बना लिया जाए। वर्ष 1827 में यह सेनिटोरियम बनकर तैयार हुआ और फिर अंग्रेजों ने यहां बसागत शुरू कर दी। मसूरी नगर पालिका के गठन में भी यंग का अहम योगदान रहा। कैप्टन यंग मसूरी की ऊंची पहाड़ी (अब लंढौर कैंट) पर सैनिकों के लिए बैरक और अस्पताल बनाना चाहते थे। इसके लिए पहले उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से विचार-विमर्श कर उन्हें विश्वास में लिया और फिर अस्पताल बनाने का कार्य शुरू किया। इस अस्पताल को ब्रिटिश मिलिट्री अस्पताल नाम दया गया। यहां मुख्य रूप से युद्ध में घायल अंग्रेजी फौज के जवानों का इलाज होता था। इसके साथ ही घायलों का उपचार एवं देख-रेख करने वाली नर्स व सिस्टरों के लिए यहां आवासीय भी परिसर बनाए गए थे। इसीलिए कालांतर में इस बाजार को ‘सिस्टर बाजार’ नाम से जाना जाने लगा। कैप्टन यंग को मसूरी को बसाने का श्रेय इसलिए भी जाता है, क्योंकि उन्हीं के मनाने पर अंग्रेज उच्चाधिकारी मसूरी में ही रहने के लिए तैयार हुए थे। दरअसल, अंग्रेजी फौज के उच्चाधिकारी विलियम बेंटिक ने मसूरी को ब्रिटिश प्रशासन के अनुकूल न होने की बात कहते हुए इस स्थान को छोड़ने का निर्णय ले लिया था। ऐसे में कैप्टन यंग ने उन्हें भरोसा दिलाते हुए न केवल मसूरी को एक शानदार हिल स्टेशन व सैनिक डिपो के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी ली, बल्कि उसे पूरा करके भी दिखाया। कैप्टन यंग मसूरी में लगभग 40 साल रहे। बाद में वे देहरादून के सुपरिटेंडेंट भी बने। देहरादून के पास राजपुर गांव में ‘डोनेगल हाउस’ नाम से उनका शानदार आवास हुआ करता था। हालांकि, वर्तमान में वह मौजूद नहीं है। राजपुर-शहंशाही आश्रम के मध्य से होकर आज भी जो मार्ग झड़ीपानी होते हुए मसूरी को जोड़ता है, उसे कैप्टन यंग ने ही बनवाया था। मसूरी में भारी-भरकम वाटर पंप, विद्युतगृह और तमाम भवनों के लिए तब निर्माण सामग्री राजपुर-झड़ीपानी मार्ग से ही मसूरी व लंढौर कैंट तक पहुंचाई गई थी। 1907 में पालिका के संशोधित एक्ट में माल रोड में गंदगी, कचरा फैलाने पर 80 रुपये का जुर्माना और फूल तोड़ने पर 40 रुपये जुर्माना था. मालरोड में वाहनों की संख्या को कम करने के लिए नगर पालिका ने मालरोड में शुल्क का प्रावधान किया. 1970-72 में माल रोड का प्रवेश शुल्क 10 रुपये था. 1988 में 20 रुपये और वर्तमान में दोनों बैरियरों का शुल्क बढ़ाकर वाहनों के हिसाब से 100 से 300 तक कर दिया गया है. इसके बावजूद भी माल रोड में वाहनों की संख्या कम नहीं हुई.मामले में स्थानीय निवासी ने बताया कि आज की माल रोड किसी कबाड़ी बाजार से कम नहीं है. पूरी माल रोड अतिक्रमण की चपेट में है. वाहनों की आवाजाही लगातार बढ़ रही है. लेकिन विभाग सुध लेने को तैयार नहीं हैं. मसूरी की माल रोड का अपना अलग इतिहास है. मालरोड का निर्माण करीब 1830 के आसपास माना जाता है. इतिहासकार गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि शहर की मालरोड का अपना ही इतिहास रहा है. माल रोड में चलने के लिए देश की नामचीन हस्तियों ने कायदे कानून का पालन किया था. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, दलाई लामा और अटल बिहारी वाजपेयी सहित टिहरी के महाराजा प्रताप शाह सहित कई दिग्गज नियम कानूनों के साथ मालरोड का भ्रमण कर चुके हैं. विकास नाम के दैत्य ने हिमालय की पसलियों में सेंध लगाकर उसे चीर डाला है जिसका परिणाम लगातार हो रहे भूस्खलनों और अन्य आपदाओं की सूरत में दिखाई देने लगा है. जिस हिमालय को नीति-निर्माताओं ने उत्तराखंड के पर्यटन की रीढ़ बताया था उसी की लगातार अनदेखी की जाती रही है. जिन प्राकृतिक संसाधनों को पर्यटकों को आकर्षित करने वाला कारक बताया जा रहा था उन्हीं का सबसे अनियंत्रित और क्रूर दोहन हुआ है.पर्यटन के माध्यम से स्थानीय जनों को रोज़गार उपलब्ध कराये जाने के दावों की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि आपको दूरस्थ दुर्गम जगहों में भी मैगी पॉइंट तो मिल जाते हैं यह बताने वाला कोई नहीं मिलता कि आगे का रास्ता खुला है या नहीं.नए पर्यटन-स्थलों की पहचान और उनके विकास का यह हाल है कि पहले से विकसित, नैनीताल-मसूरी जैसे अंग्रेज़ों के बनाए पर्यटन-स्थलों में लगातार पांच-सितारा महानगरीय सुविधाएं पहुँच रही हैं, जबकि मुख्य मार्ग से थोड़ा सा भी हट कर स्थित सुन्दरतम स्थान टेलीफ़ोन और इंटरनेट जैसी ज़रूरी सुविधाओं से भी महरूम हैं. मसूरी को घने बीहड़ जंगल से सुन्दरता, सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा की समृद्धि सम्पन्नता के मार्ग से, जिन लोगों ने इसे विश्व के सुन्दरतम हिल स्टेशन की बुलन्दी तक पहुँचाया उनमें उन महान अंग्रेजों और यूरोपियनों के नाम को शायद कभी भुलाया नहीं जा सकेगा – कर्नल एच.फिशर, कैप्टेन यंग, मेजर ई. विटे, सर्जन एम.बी. लैम्ब, जार्ज लांगन, जार्ज एवरेस्ट, जानमेकिनन, फ्रेडिरिक विल्सन, जर्मन दार्शनिक कार्लवर्न होल्ड, एफ.एच. कैनेडी, सी.एफ. कोलिन्स, जूलियर हेनरी जेम्स, चार्ल्स अगस्टस, मार्गेट एलिजाबेथ, कर्नल जे.एफ. वेर, एच. हैम्मैन, के.ए. हेजेम्स, स्टेदम जैसे अनेक लोग थे जिन्होंने मसूरी से बेहद प्रेम किया और अन्तिम सांसों तक मसूरी में निवास किया। काश मसूरी लौट सकती अपने पुराने ही सही मगर सुन्दर खूबसूरत, शुद्ध पर्यावरण, सभ्यता, संस्कृति से समृद्ध भरपूर दिनों की ओर। इसमें संदेह नहीं कि बढ़ती आबादी की हवस पूर्ति ने मसूरी की सुन्दरता, सभ्यता, संस्कृति और खूबसूरत पर्यावरण को समाप्त सा कर दिया है।