सरहद की हिफाजत के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान संभाले पर लगी रोक

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सरहद की हिफाजत के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान संभाले पर लगी रोक
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला 

सरहद की हिफाजत करने वाले जवानों को रिटायरमेंट के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान मिली तो इन रणबांकुरों के हाथ पहाड़ की मिट्टी में भी रच-बस गए। हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण असंतुलन के खतरे से निपटने को ‘हरित योद्धा’ पूरी मुस्तैदी से जुटे हैं। पिछले साढ़े तीन दशक में उन्होंने कई वनस्पतिविहीन पहाड़ियों को फिर हरा-भरा कर दिया है। हम बात कर रहे हैं 127-गढ़वाल (टीए) ईको टास्क फोर्स की। यह फोर्स डेढ़ करोड़ पौधे लगाने का कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था वैसे तो पहले से ही घाटे में चल रही है, लेकिन पैसे के अभाव में अब प्रदेश की कई योजनाएं बंद करने की भी नौबत रही है। ऐसे ही एक मामले में राज्य सरकार द्वारा भुगतान किए जाने की सूरत में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने खंडूड़ी सरकार में बनीं प्रादेशिक सेना की भर्ती रैली पर रोक लगा दी है। रक्षा मंत्रालय से यह रोक प्रदेश सरकार से 132 करोड़ रुपए मिलने की वजह से लगाई गई है। गढ़वाल और कुमाऊं में इस प्रोजेक्ट के तहत एकएक बटालियन और चार कंपनियां कार्यरत हैं। पूर्व सैनिकों की ग्रीन सोल्जर्स के नाम से पहचाने जाने वाली ईको टास्क फोर्स की प्रतिपूर्ति का उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2018 से रक्षा मंत्रालय को भुगतान नहीं किया है, जिससे इस पर रोक लगी है।प्रदेश के बंजर पहाड़ों को हराभरा करने के लिए सरकार में वर्ष 2012 में गढ़वाल में 127 इन्फेंट्री बटालियन (प्रादेशिक सेना ) ईको टास्क फोर्स का गठन किया गया था, जबकि कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ में 130 इन्फेंट्री बटालियन ईटीएफ का गठन किया गया था। दोनों ही बटालियन और इनकी दोदो कंपनियों के चार सौ पूर्व सैनिक और आठ सैन्य अधिकारी तभी से बंजर पहाड़ों को हराभरा करने का बीड़ा उठाए थे। जिस वजह से ग्रीन सोलजर्स ने कई पहाड़ियों और जंगलों को पुनर्जीवित किया था। चमोली जिले के माणा, देहरादून के मसूरी, पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी आदि क्षेत्रों की बंजर पहाड़ियों को पुनर्जीवित करने में ईटीएफ का अहम योगदान रहा है। ईटीएफ के इसी अहम योगदान की वजह से उसे वर्ष 2012 में अर्थ केयर अवार्ड, वर्ष 2008 में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी ग्रीन गवर्नेस अवार्ड सहित कई पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। ईटीएफ में कार्यरत पूर्व सैनिकों की सामरिक दृष्टि से भी अहम भूमिका है जो भारतचीन सीमा से लगे गांवों में वे फलदार पौधे लगाते हैं। एक बटालियन हर साल 800 हेक्टेयर में आठ लाख पेड़ लगाती है।इस पूरे प्रोजेक्ट का खर्चा राज्य सरकार उठाती आई है। लेकिन के नेतृत्व वाली राज्य सरकार वर्ष 2018 से केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को पूर्व सैनिकों को दिए गए वेतन एवं प्रोजेक्ट पर आने वाले खर्च का भुगतान नहीं कर रही हैं। पिछले पांच साल से यह रकम बढ़कर अब 132 करोड़ हो चुकी है। इस मामले में रक्षा मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि 132 करोड़ की बकाया धनराशि का भुगतान होने पर दोनों बटालियन इससे जुड़ी कंपनियों को बंद कर दिया है। सेना के मुताबिक केंद्र को बकाया भुगतान नहीं होने से रक्षा मंत्रालय की ओर से भर्ती रैली पर रोक लगा दी गई है। भर्ती रैली न होने से ईटीएफ में पूर्व सैनिकों की संख्या लगातार घटती जायेगी। मंत्रालय की ओर से यह भी कहा गया है कि अगले साल तक भुगतान नहीं होने पर इन्फैंट्री बटालियन ईटीएफ को ही रद्द कर दिया जाएगा।इस बाबत सैनिक कल्याण मंत्री ने इस गंभीर समस्या से अपना हाथ झाड़ते हुए कहा कि ईटीएफ के मामले में केंद्रीय रक्षा मंत्री को अवगत करा दिया गया है। उनसे अनुरोध किया गया है कि 132 करोड़ की उत्तराखंड की इस देनदारी को माफ किया जाए। जबकि केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री ने भी बिल्कुल चुप्पी साधने वाले अंदाज में इतना ही कहा कि मेरा इस मामले में कुछ भी बोलना ठीक नहीं होगा। यह नीति निर्धारण का मामला है। बेहतर होगा कि इस संबंध में मुख्यमंत्री से बात की जाए। कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी सरकार की लापरवाही से खंडूड़ी सरकार की एक बेहतरीन योजना दम तोड़ने जा रही है। जिससे सैकड़ों पूर्व सैनिक फिर से तो सड़क पर आ ही जाएंगे, प्रदेश के ईको सिस्टम को भी नुकसान झेलना पड़ेगा।चमोली जिले के माणा, देहरादून के मसूरी, पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी आदि क्षेत्रों की बंजर पहाड़ियों को पुनर्जीवित करने में ईटीएफ का अहम योगदान रहा है। यही वजह है कि वर्ष 2012 में इसे अर्थ केयर अवार्ड, वर्ष 2008 में बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोयायटी ग्रीन गर्वनेंस अवार्ड सहित कई पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। ईको टास्क फोर्स में सेना से रिटायर होकर आए जवानों को लिया जाता है और उन्हें हिमालय क्षेत्र में अपनी नर्सरी में पौधे उगान ईको टास्क फोर्स जहां पेड़ लगाने जाती है, पहले वहां मिट्टी का नमूना लेती है और उसके बाद वहां के अनुकूल पौधों का ही रोपण कर.रहा है  जलवायु परिर्वतन जैसी वैश्विक समस्या से निपटने के लिए भारत ने विश्व पटल पर अपने देश में वन आच्छादन क्षेत्र में वृद्धि करने की जो प्रतिबद्धता की है, उसकी पूर्ति के लिए ठोस कदम उठाए गए हैं।  साथ ही विभिन्न संस्थानों द्वारा केन्द्र सरकार की वित्तीय सहायता से किए जा रहे वृक्षारोपण की भी समीक्षा की जा रही है। ताकि संसाधनों का सही उपयोग हो सके। पर्यावरणीय बदलावों के बीच वह अपने दायित्व के प्रति पूरी तरह सजग हैं। इसका उदाहरण पहाड़ के वे क्षेत्र हैं, जो विभिन्न कारणों के चलते उजाड़ हो गए थे। ईको टास्क फोर्स के पर्यावरण प्रहरियों के कारण ही यह क्षेत्र फिर हरे-भरे हो गए हैं। यह मुहिम एक व्यापक एवं सतत अभियान के रूप में बढ़ती रहेगी।

लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।