बैकडोर भर्ती प्रकरणःविधानसभा के बाहर धरने पर बैठे बर्खास्त कर्मचारी

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बैकडोर भर्ती प्रकरणःविधानसभा के बाहर धरने पर बैठे बर्खास्त कर्मचारी
देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर भर्तियों के चलते बर्खास्त हुए कर्मचारी विधानसभा के बाहर पांच दिवसीय धरने पर बैठ गए। इस दौरान कर्मचारियों ने प्रदर्शन करते हुए सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। वहीं, उन्होंने दोबारा नियुक्ति की मांग की। कर्मचारियों का कहना है कि एक ही नियमों के तहत राज्य गठन के बाद विधानसभा सचिवालय में तदर्थ आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति हुई है, लेकिन 2016 के बाद लगाए गए 228 कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया गया। कर्मचारियों की मांग है कि या तो उन्हें बहाल किया जाए या राज्य गठन के बाद से 2016 तक लगे कर्मचारियों को भी बर्खास्त किया जाए।
विधानसभा में बैकडोर से भर्तियां करने पर सवाल उठने पर स्पीकर ऋतु खंडूड़ी भूषण ने 3 सितंबर 2022 को पूर्व आईएएस अधिकारी डीके कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्य विशेषज्ञ जांच समिति का गठन किया था। जांच समिति ने राज्य गठन से 2021 तक तदर्थ आधार पर की गईं नियुक्तियों की जांच कर 20 दिन के भीतर 22 सितंबर 2022 को विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति ने जांच में पाया कि तदर्थ आधार पर नियुक्तियां नियम विरुद्ध की गई हैं। समिति की रिपोर्ट पर विधानसभा अध्यक्ष ने 23 सितंबर को तत्काल प्रभाव से 2016 से 2021 तक की गईं कुल 228 नियुक्तियां को रद्द कर कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद कर्मचारी हाईकोर्ट गए तो वहां भी उन्हें निराशा मिली। वहीं, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दी।
विधानसभा में भर्ती प्रकरण में यदि मैं भी आरोपी तो दंड भुगतने को तैयाररू कुंजवाल
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस नेता गोविंद सिंह कुंजवाल ने विधानसभा में कर्मचारियों की बर्खास्तगी मामले में सरकार और स्पीकर ऋतु खंडूड़ी पर दोहरा चरित्र अपनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यदि नियुक्तियां अवैध है तो नियुक्ति देने वालों पर भी हो कठोर कार्यवाही हो। यदि वह भी आरोपी हैं तो दंड भुगतने के लिए तैयार हैं।  उन्होंने कहा कि विधानसभा ने मामले की जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी की टीम गठित की थी। एक्सपर्ट कमेटी ने साफ  किया कि राज्य बनने के बाद विधानसभा में सभी नियुक्तियां गलत हैं। इन नियुक्तियों को यदि न्यायालय भी अवैध घोषित करता है तो नियुक्ति देने वाले स्पीकरों पर भी कार्यवाही होनी चाहिए। उनके और अन्य स्पीकर के खिलाफ  जांच होनी चाहिए। ताकि भविष्य में युवाओं के साथ इस तरह का खिलवाड़ न हो सके।
उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार अनुच्छेद 16 स्पष्ट करता है कि राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से  संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। ऐसे में 2001 से 2016 तक की नियुक्तियों को वैध और 2016 से आगे की नियुक्तियों को अवैध ठहराकर सरकार ने समानता के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाई है जबकि वर्ष 2016 में हुई नियुक्तियों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने वैध करार दिया था।
कुंजवाल ने कहा कि यदि विधानसभा में हुई नियुक्तियां गलत तरीके से की गई हैं तो 2001 से 2022 तक की गई सभी नियुक्तियों को तत्काल निरस्त किया जाए, वरना द्वेषपूर्ण राजनीति के तहत निकाले गये 2016 के बाद के कर्मचारियों को बहाल किया जाए। उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार ऐसा नहीं करेगी क्योंकि 2016 से पहले विधानसभा में हुई नियुक्तियों में भाजपा के मंत्रियों के नजदीकियों को बंदरबांट की गई है।
कुंजवाल ने कहा कि विधानसभा में 2016 के बाद वाले कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर वाहवाही लूटने वाली स्पीकर ऋतु खंडूड़ी  सवालों के घेरे में हैं। उन्होंने कहा कि वह निजी कारणों से विधानसभा में 2016 से पहले के बैकडोर भर्ती वालों को बचाने का कार्य कर रही हैं। उनके द्वारा हाईकोर्ट में काउंटर फाइल कर खुद कबूलनामा किया है। इसके बाद भी 2016 से पहले वालों को बचाने के लिए उन्होंने अब अपनी साख तक दांव पर लगा दी है। 2016 से पहले विधानसभा में अवैध रूप से भर्ती हुए कई कर्मचारी ऐसे हैं जिनकी विधानसभा में नियुक्ति बीसी खंडूड़ी के मुख्यमंत्री रहते हुईं। इसमें तत्कालीन सीएम बीसी खंडूड़ी के पर्यटन सलाहकार की बेटी सहित कई हाई प्रोफाइल लोगों के परिजन शामिल हैं।  जिस कार्यवाही को स्पीकर सत्य की जीत करार दे रहीं हैं वह एक अधूरा और झूठा सत्य है। खुद स्पीकर की ओर से बनाई डीके कोटिया समिति ने भी अपनी रिपोर्ट के नंबर 12 में साफ  किया है कि राज्य गठन के बाद से लेकर अभी तक की सभी भर्तियां अवैध हैं।