गैरसैण मण्डल से उनकी विरासत खतरे में कैसे …..?
साहब गैरसैण नाम से नफरत है या इधर के लोगों से !
बहुत ही संकीर्ण और कुंठित मानसिकता है यह ।
शशि भूषण मैठाणी (पारस)
क्या गढ़वाल (गैरसैण) इतना अछूत है उनके लिए! वो तो सड़को पर उतर आए कि उन्हें, गढ़वाल गैरसैण में मिलाकर उनकी राजशाही परम्पराओं को नष्ट किया गया । आगे चेतावनी है कि गैरसैण से उन्हें अलग नहीं किया तो ऐसा आंदोलन होगा जो सरकार से संभल नहीं पाएगा ।
अरे सीधे मांग ये करो न कि अब हमें उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद भी इस राज्य के दो अलग-अलग टुकड़े चाहिए । गढ़वाल प्रदेश और कुमायूं प्रदेश । बताओ यह कैसी मानसिकता है ! कि ऑपन मीडिया के कैमरों के सामने कहा जा रहा है कि गढ़वाल से हमारी संस्कृति मेल नहीं खाती है, इसलिए हम गैरसैण का हिस्सा बन ही नहीं सकते ।
अरे कोबरा नाग से भयानक जहरीले नागो.. ऊपर उठो इस जातिवादी, क्षेत्रवादी मानसिकता से ये दीमक की तरह चाट रही है तुम्हे ।
एक तरफ तुम्हीं लोग अखण्ड भारत की एकता के लिए मर मिटने की पोस्ट लिखते हो, और इधर पहाड़ में ही दो फाड़ की मानसिकता पाले बैठे हो । रथ यात्रा कर रहे हो ।
बताइए इन्हें एतराज तब नहीं है जब अगर कमिश्नरी अल्मोड़ा बन जाए और उसमें गढ़वाल के जिलों को जोड़ा जाए । और सरकार अल्मोड़ा कमिश्नरी बनानी चाहिए और उसमें गढ़वाल को जोड़ा जाए । मैं दावे के साथ कहता हूं ऐसे कड़वे बोल इस तरफ से कभी नहीं आएंगे ।
वाह साहब ! बहुत महान हो आप । जय हो ।
हाँ यह बात जरूर है कि इस विषय पर गैरसैण कमिश्नरी को लेकर आम लोगों से राय शुमारी जरूर की जाए ।
लेकिन यह क्षेत्रिय व जातीय उन्माद फैलाकर पहाड़ के दो खूबसूरत अंचलों में दो फाड़ करने की चेष्टा न की जाए । यह बहुत जहरीली मानसिकता है आप लोगों की । कैसे पहाड़ी हो आप हद करते ।
यह कश्मीर और पाकिस्तान जैसा माहौल बना रहे हैं आप । सामाजिक बनो सभ्य बनो । दुनियाँ चांद पर जाने की तैयारी कर रही है और आप एक ही पहाड़ की एक ही घाटी में कैंसर से भयानक बीज रोप रहे हो । क्या सिखा रहे हो नई पीढ़ी को । इससे आप दोनों मण्डलों में नफरत के बीज बो रहे हो और कुछ नहीं ।
बाकी यह बात मैं भी कह रहा हूँ कि अगर विरोध है तो पुर्नविचार हो । यदि आवश्यकता है भौगौलिक आधार पर मण्डलों को सृजित किया जाए, अन्यथा स्थगतित किया जाए । लेकिन मुझे कुमायूं के उन लोगों की मानसिकता से सख्त एतराज है, जो यह कह रहे हैं कि गैरसैण (गढ़वाल) से उनकी संस्कृति मेल नहीं खाती है और साजिशन उनकी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने के षड्यंत्र से उन्हें गैरसैण मंडल में मिलाया जा रहा है क्या है यह आपकी मानसिकता ? क्या हम गढवाळी लोग आपके लिए इतने अछूत हो गए कि इतनी बात से आपकी परम्पराएं समाप्त हो जाएंगी !
क्या अल्मोड़ा की सभ्यता संस्कृति इतनी कमजोर है कि गैरसैण मण्डल नाम जुड़ने से उसमें गढ़वालियत आ जाएगी और वह खतरे में आ जाएगी ।
मैं तो मानता हूँ अल्मोड़ा सिर्फ आप कुमायूं के लोगों की सांस्कृतिक राजधानी नहीं बल्कि हम सभी गढवाळी, कुमाऊनी, जौनसारी पहाड़ियों की सामूहिक सांस्कृतिक राजधानी है । मैं चमोली का हूँ लेकिन मुझे अल्मोड़ा और पौड़ी को अपने पहाड़ी प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत का केंद्र बताने में गर्व महसूस होता है ।
मेरी सरकार से गुजारिश है कि अगर ऐसे कुछ तथाकथित लोगों की मानसिकता से हमारे गढ़वाल कुमायूं में जहर घोला जा रहा है तो, नवसृजित गैरसैण मण्डल ही नहीं बल्कि गढ़वाल व कुमायूं मण्डलों को भी भंग कर दिया जाए । ताकि यह नफरत के बीज फिर से न उग पाएं । बदले में जिलों की संख्या बढ़ाई जाए ।
हमें एकजुट होकर सम्पूर्ण पहाड़ की बात करनी होगी । न कि मेरा अल्मोड़ा तेरा गैरसैण की । हम सब एक हैं । लेकिन कुमायूं से कुछ लोगों द्वारा उठाई गई इस आवाज ने पहाड़ को शर्मशार किया है । गढवाळी समाज को आहत किया है । चंद लोगों ने अपने राजनीतिक प्रपंचों के खातिर पहाड़ की एकता को तोड़ने का काम किया है । ऐसे में हम कैसे कहें कि हम उत्तराखंडी हैं । फिर तो तू गढवाळी मैं कुमाऊनी ही हुए ना । शर्म आती है ऐसे लोगों की मानसिकता पर ।
दोगली बातें करते हो झूठ बोलते हैं कि हम पहाड़ी एकजुट हैं । सच यह है कि हम एक हैं ही नहीं ।
सच यह है कि हम पहाड़ी टुकड़े-टुकड़े छोड़ो गाड़ गदेरों में सिमटे हैं । हम स्वयं को बुरी तरह से जातिवाद और क्षेत्रवाद के जहरीले मकड़जाल में बुन चुके हैं । हम पहाड़ों से पलायन तो कर चुके हैं लेकिन अपनी सोच को पहाड़ की उन घाटियों से बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं ।
अरे कमिश्नरी गैरसैण बने या अल्मोड़ा नाम से क्या फर्क पड़ता है । मेरा अपना व्यक्तिगत मत है कि गैरसैण के बजाय कमिश्नरी का नाम अल्मोड़ा कर दिया जाय सारा विवाद एक झटके में समाप्त हो जाएगा और गैरसैण को जिला बना लिया जाए ।लेकिन यह प्रशासनिक व्यवस्था होगी कोई एक नाम देना । लेकिन ताज्जुब इस बात का कि गैरसैण या अल्मोड़ा नाम देने मात्र से कैसे किसी गढवाळी या कुमाऊनी की संस्कृति और परम्पराएं कैसे नष्ट हो सकती हैं ?
यह तो एक प्रशासनिक व्यवस्था मात्र है ।
सच तो यह कि ऐसी कुत्सित सोच के लोगों के दिमाग में मानसिक रूप हर वक़्त मवाद तैर रहा होता है । और वह समय-समय पर फूट-फूट कर इनके मुंह से गंदे पीप की तरह बाहर बहता रहता है । और समाज को तोड़ने का काम करते हैं ।
ये लोग कभी भी हम पहाड़ियों को ही आपस मे एक नहीं देखना चाहते हैं ।
यही लोग हैं जो कभी बातें करते हैं अखण्ड भारत में एकजुटता की । अरे दिमाग से सड़े, गले, पके मवादियों देश की बाद में सोचो ! सबसे पहले तुम इस अदने से प्रदेश उत्तराखंड में ही खंड-खंड टुकड़ों में बंटे हो । गजब है कुमायूं में रथयात्रा चल रही है कि उन्हें गढ़वाल के गैरसैण में मिलाकर उनका अपमान हो गया, कुमायूं की संस्कृति नष्ट भ्रष्ट हो गई । मेरी बातों पर यकीन न हो तो इस पोस्ट के अंत में दिए गए वीडियो लिंक को क्लिक करके जरूर सुन लीजिएगा ।
वाह… क्या सोच पाई है तुम लोगों ने ।
हे विद्रोही मानसिकता के लोगो यह सोच किसी आतंकी सोच से कम नही है । असल में पहाड़ की सभ्यता और संस्कृति तुम जैसे लोगों की मानसिकता ग्रहण लग गई है । प्रशासन को चाहिए कि इनके रथ गाड़ियों व लाउडस्पीकरों को तत्काल जब्त कर इन्हें हवालात में ठूंसा जाए । जो अपने जहरीले बोल से गढ़वाल कुमायूं की दो हिस्सों में बात वैमनस्यता फैलाने का काम कर रहे हैं । अफशोषजनक ।
हमें ऐसे जहरीले नफरतबाज नागों को चिन्हित कर उनका सभी सामाजिक मंचों पर एक स्वर में विरोध कर सबसे पीछे धकियाना होगा ।