महामृत्युंजय मंत्र से मृत्यु को पराजित करने के पीछे क्या कहानी है
अनिल आर्य
महामृत्युंजय मंत्र की रचना
महामृत्युंजय मंत्र हिन्दू धर्म में एक प्रमुख मंत्र है, जिसका संबंध भगवान शिव से है। यह दिव्य मंत्र की को सिद्ध करके मृत्यु पर भी विजय पाया जा सकता है। पुरानी काल में जिस तरह देवताओं के पास अमृत था, तो दानवों के पास इस मंत्र की शक्ति थी। दानव ऋषि शुक्राचार्य जी के द्वारा जब भी यह महामृत्युंजय मंत्र पढ़ा जाता था तो दानव दुबारा पुनः जीवित हो जाते थे। इस मंत्र को मृत संजीवनी मंत्र भी कहा जाता है।
यह गायत्री मंत्र के समकालीन हिंदू धर्म का सबसे सिद्ध और व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है।
पौराणिक काल में शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था। मृकण्ड ने सोचा कि भगवन शिव तो संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्न कर यह विधान बदलवाया जाए। ऋषि मृकण्ड ने भोलेनाथ की बड़ी घोर तपस्या की. भोलेनाथ ऋषि मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने मृकण्ड को शीघ्र दर्शन नहीं दिया, लेकिन भक्त ऋषि मृकण्ड की भक्ति के आगे आखिरकार भोलेनाथ झुक ही जाते हैं।
भगवान शिव प्रसन्न होकर ऋषि मृकण्ड को दर्शन देते है। भोलेनाथ ने ऋषि मृकण्ड को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे रहा हूं, लेकिन इस वरदान के हर्ष के साथ एक विषाद भी होगा। भोलेनाथ के वरदान से ऋषि मृकण्ड को पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने मार्कण्डेय रखा. ज्योतिषियों ने ऋषि मृकण्ड को बताया कि आपका पुत्र (मार्कण्डेय) अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है।
मृकण्ड ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को यह दुखी समाचार सुनाया. तब मृकण्ड ऋषि और उनकी पत्नी ने सोचा की “जिस ईश्वर की कृपा से हमे संतान कजी प्राप्ति हुई है वही भोलेनाथ इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है। मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने एक दिन अपने पुत्र मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए वह उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे, जिन्होंने उन्हें जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे। मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे।
इसके बोल कुछ इस प्रकार है।
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ है-
समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते है, विश्व में सुरभि फ़ैलाने वाले भगवान् शिव मृत्यु न की मोक्ष से हमे मुक्ति दिलाएं
समय पूरा होने पर यमदूत मार्कण्डेय को लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए।
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र(Maha Mrityunjaya Mantra) का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गए. यमराज ने बालक मार्कण्डेय को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं। शिवलिंग से स्वयं भगवान महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?
यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है। भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते। यमराज ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले जीव को त्रास नहीं करूँगा।
महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित ‘महामृत्युंजय मंत्र’ काल को भी परास्त करता है. सोमवार को महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करने से शिवजी की कृपा होती है और कई असाध्य रोगों, मानसिक वेदना से राहत मिलती है ।।