ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर चीन ने बनाया खतरनाक प्लान, टेंशन में है भारत
चीन एक बार फिर भारत की मुश्किलें बढ़ा सकता है. चीन ने तिब्बत में एक मेगा डैम बनाने की योजना बनाई है. यह बांध इसलिए बनाया जा रहा है ताकि चीन दुनिया का सबसे बड़ा पावर स्टेशन बना सके. अब चीन के इस डैम प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरणपिवदों और भारत सरकार में चिंता की स्थिति है. चिंता की वजह है ब्रह्मपुत्र नदी का इस बांध में शामिल होना.
ब्रह्मपुत्र को नियंत्रित करने की साजिश
इस पूरे प्लान में ब्रह्मपुत्र नदी से निकलने वाली तीन धाराओं को चीन ने अपने प्लान में रखा है. हिमालय से निकलती हुई ये धाराएं भारत के अलग-अलग राज्यों से गुजरती हैं. ब्रह्मपुत्र नदी इस तरह से दुनिया की सबसे बड़ी और गहरी नदी बन जाती है जो 1500 मीटर के क्षेत्र से बहती हुई निकलती है. माना जा रहा है कि चीन, ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को हिमालय के इलाकों और भारत में बहने से पहले नियंत्रित करने की कोशिश करने वाला है.
14वीं पंचवर्षीय योजना में जिक्र
चीन का यह प्रोजेक्ट तिब्बत के मेडोग काउंटी में है और ये सेंट्रल चीन की यांग्त्जे नदी पर बने थ्री जॉर्ज बांध से भी बड़ा प्रोजेक्ट होने वाला है.
माना जा रहा है कि जो बांध बनेगा उससे 300 अरब किलोवॉट बिजली हर वर्ष चीन पैदा कर सकता है. चीन के 14वीं पंचवर्षीय योजना में इसका जिक्र खासतौर पर किया गया था.
इसे फाइव ईयर प्लान को मार्च में सबके सामने लाया गया था. तिब्बत में ब्रह्मपुत्र को यारलुंग सांगपो के नाम से जानते हैं. यहां पर पहले से ही दो प्रोजेक्ट मौजूद हैं जबकि छह और प्रोजेक्ट्स पर काम जारी है.
अब जो बांध बनने वाला है वो अपनी तरह का पहला बांध होगा. पिछले वर्ष अक्टूबर में तिब्बत की स्थानीय सरकार ने चीन की पावर चाइना के साथ स्ट्रैटेजिक को-ऑपरेशन एग्रीमेंट साइन किया था. पावर चाइना एक पब्लिक कंस्ट्रक्शन कंपनी है जो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स में महारत रखती है.
क्यों बढ़ जाएंगी भारत की मुश्किलें
चीन की तरफ से इस हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का ऐलान भारत के लिए परेशानियां बढ़ाने वाला है. विशेषज्ञों की मानें तो इस बांध के बन जाने के बाद भारत, बांग्लादेश समेत कई पड़ोसी देशों को सूखे और बाढ़ दोनों का सामना करना पड़ सकता है. इस मेगा डैम के निर्माण के बाद सब-कुछ चीन पर निर्भर करेगा. उन्हें आशंका है कि चीन जब चाहेगा, बांध का पानी रोक देगा और कभी भी बांध के दरवाजे खोल देगा. इससे पानी का बहाव तेजी से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की तरफ आएगा.
नॉर्थ ईस्ट को झेलनी पड़ेगी भयानक बाढ़
इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, असम समेत कई राज्यों में भयानक बाढ़ आ सकती है. ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से शुरू होकर भारत और बांग्लादेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है. इस दौरान यह करीब 2900 किलोमीटर की यात्रा करती है. भारत में इस नदी का एक तिहाई पानी आता है. इसके जरिए उत्तर-पूर्वी राज्यों में पानी की सप्लाई की जाती है. इस खबर से भारत और बांग्लादेश चिंतित हैं. हालांकि चीन का कहना है कि वह अपने पड़ोसी देशों के हितों का ध्यान रखते हुए ही कोई काम करेगा.
समझौते को न मानने वाला चीन
साल 2008 में भारत और चीन ने एक समझौता किया था कि सतलुज और ब्रह्मपुत्र नदी के पानी के बहाव को आपसी सहमति से ही उपयोग किया जाएगा. इन दोनों नदियों के पानी के बंटवारे, बहाव और बाढ़ से संबंधित प्रबंधन को मिलकर करेंगे. लेकिन साल 2017 में डोकलाम विवाद के बाद चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को भारत से शेयर नहीं किया था. ब्रह्मपुत्र नदी के हाइड्रोलॉजिकल डेटा को साझा न करने की वजह से उस साल असम में भयानक बाढ़ आई थी.
चीन के तिब्बत ऑटोनॉमस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी यानी यारलंग झांग्बो नदी सबसे बड़ा जल संसाधन का स्रोत है. तिब्बत में 50 किलोमीटर क्षेत्र में यारलंग जांग्बो ग्रैंड कैनियन है. यहां पर पानी 2000 मीटर से नीचे गिरता है. यहां पर 70 मिलियन किलोवॉट प्रति घंटा की दर से बिजली पैदा की जा सकती है. यानी चीन के सबसे बड़े बांध थ्री-गॉर्जेस पावर स्टेशन के बराबर.
ब्रह्मपुत्र दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी नदी
ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में यारलुंग सांगपो, अरुणाचल प्रदेश में सियांग/दिहांग नदी और असम में लुईत दिलाओ के नाम से भी जानते हैं. यह नदी चीन, भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा की तरह है और एक प्रकार से ट्रांस-बॉर्डर के तौर पर बहती है. पानी के बहाव के लिहाज से यह दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी और लंबाई के हिसाब से 15वीं सबसे बड़ी नदी है.
ब्रह्मपुत्र नदी करीब 3,969 किलोमीटर लंबी है. नदी की औसत गहराई करीब 124 फीट है. यह नदी मानसरोवर झील क्षेत्र से निकलती है जो कैलाश पर्वत के करीब है. यह दक्षिणी तिब्बत से बहती हुई अरुणाचल आती है. असम में यह दक्षिण-पश्चिम दिशा से बहती हुई जब बांग्लादेश जाती है तो वहां उसे जमुना के नाम से जानते हैं.