होली के त्योहार का विराट समायोजन बदलते परिवेश में विविधताओं का संगम बन गया है, एक तरह से देखा जाए तो यह अवसर प्रसन्नता को मिल-बांटने का होता है, सचमुच होली दिव्य है, अलौकिक है और मन को संवारने का दुर्लभ अवसर है, रुड़की शहर विधायक प्रदीप बत्रा और समाज सेविका मनीषा बत्रा ने होली की तैयारियों में जुटे क्षेत्र वासियों को दी शुभकामनाएं

0
307

 

हरिद्वार ब्यूरो अमित मंगोलिया
भगवानपुर प्रभारी मो मुकर्रम मलिक

रुड़की । शहर विधायक प्रदीप बत्रा और समाजसेविका मनीषा बत्रा ने होली की तैयारियों में जुटे क्षेत्रवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी है उन्होंने कहा है कि होली के पर्व को लेकर सभी में उत्साह और खुशी का माहौल है शहर से लेकर गांव तक होली पर्व की तैयारियां जोरों शोरों पर है।शहरों कस्बों व गांव सब जगह होली मिलन कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं एक दूसरे को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया है । उन्होंने कहा है कि होली और बसंत का अटूट रिश्ता है। बसंत के आगमन से सम्पूर्ण प्रकृति में नई चेतना का संचार होता है। होली का आगमन बसंत ऋतु की शुरुआत के करीब-करीब आस-पास होता है। यह वह वक्त है, जब शरद ऋतु को अलविदा कहा जाता है और उसका स्थान वसंत ऋतु ले लेती है। इन दिनों हल्की-हल्की बयारें चलने लगती हैं, जिसे लोक भाषा में फागुन चलने लगा है, ऐसा भी कह दिया जाता है। यह मौसमी बदलाव व्यक्ति-व्यक्ति के मन में सहज प्रसन्नता, स्फूर्ति पैदा करता है और साथ ही कुछ नया करने की तमन्ना के साथ-साथ समाज का हर सदस्य अपनी प्रसन्नता का इजहार होली उत्सव के माध्यम से प्रकट करता है। इससे सामाजिक समरसता के भाव भी बनते हैं। भारतीय लोक जीवन में होली की जड़ें काफी गहरी हैं।
होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता। पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है। प्रश्न है कि प्रसन्नता का यह आलम जो होली के दिनों में जुनून बन जाता है, कितना स्थायी है? गानों की धुन एवं डांडिया रास की झंकार में मदमस्त मानसिकता ने होली जैसे त्योहार की उपादेयता को मात्र इसी दायरे तक सीमित कर दिया, जिसे तात्कालिक खुशी कह सकते हैं, जबकि अपेक्षा है कि रंगों की इस परम्परा को दीर्घजीविता प्रदान की जाए। उन्होंने कहा है कि स्नेह और सम्मान का, प्यार और मुहब्बत का, मैत्री और समरसता का ऐसा समां बांधना चाहिए कि जिसकी बिसात पर मानव कुछ नया भी करने को प्रेरित हो सके।
होली सौहार्द्र, प्रेम और मस्ती के रंगों में सराबोर हो जाने का हर्षोल्लासपूर्ण त्यौहार है। यद्यपि आज के समय की गहमागहमी, अपने-तेरे की भावना, भागदौड़ से होली की परम्परा में बदलाव आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है। रुड़की शहर विधायक प्रदीप बत्रा और समाज सेविका मनीषा बत्रा ने कहा है कि धर्माचार्य बताते हैं कि होली मनाने के लिए विभिन्न वैदिक व पौराणिक मत हैं। वैदिक काल में इस पर्व को ‘नवान्नेष्टि’ कहा गया है। इस दिन खेत के अधपके अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है। इस अन्न को होला कहा जाता है, इसलिए इसे होलिकोत्सव के रूप में मनाया जाता था। इस पर्व को नवसंवत्सर का आगमन तथा बसंतागम के उपलक्ष्य में किया हुआ यज्ञ भी माना जाता है। कुछ लोग इस पर्व को अग्निदेव का पूजन मात्र मानते हैं। मनु का जन्म भी इसी दिन का माना जाता है। अत: इसे मन्वादितिथि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से यह त्योहार मनाने का प्रचलन हुआ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here