संकट में आया खरसू के सौ साल पुराने पेड़ों का अस्तित्व

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संकट में आया खरसू के सौ साल पुराने पेड़ों का अस्तित्व

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड एक ओर जहां अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जाना जाता हैं वही दूसरी ओर अपनी विस्मित कर देने वाली दुलभ जडी-बूटियों व अनेक तरह के वृक्ष भी के लिए भी विश्व विख्यात है।उत्तराखंड का एक बड़ा भू -भाग वनों से ढका है।जों हमेशा की प्रकृति प्रेमियों ,पर्यटकों व शोधकर्ताओं की जिझासा का केंद्र रहा हैं।उत्तराखंड में तीन तरह के वन पाए जाते हैं।जिसमें अलग अलग तरह के वृक्ष पाये जाते हैं। अवैध दोहन से बुग्यालों के निकट स्थित वन्य क्षेत्रों में पाये जाने वाले एक सौ साल से भी अधिक पुराने खरसू के पेड़ों का अस्तित्व संकट में है। पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के ऊंचाई वाले इलाकों में इसके पेड़ों की संख्या अब गिनी चुनी रह गई है। इसके अस्तित्व पर संकट को देखते हुए वन विभाग ने इसके संरक्षण की योजना बनाई है।चौड़ी पत्ती प्रजाति के बांज और रियाज के बाद एक हजार मीटर से लेकर चार हजार मीटर की ऊंचाई के वनों में खरसू के पेड़ पाए जाते हैं। पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के ऊंचाई वाले कुछ इलाकों में खरसू के पेड़ हैं। इसकी पत्तियां चारे के काम आती हैं जबकि लकड़ी का इस्तेमाल इमारती और जलौनी लकड़ी के रूप में किया जाता है। बांज की तरह बेहद मजबूत लकड़ी होने के कारण इसका बड़े पैमाने पर दोहन होता रहा है। पुराने पेड़ों को जहां इमारती लकड़ी के लिए काट दिया गया वहीं भेड़ बकरियों या अन्य जानवरों के चरने से नए पौधे भी नहीं पनप पा रहे हैं। स्थिति यह है कि अधिक दोहन के कारण मुनस्यारी के बुग्यालों के निकट चौड़ी पत्ती प्रजाति में शामिल खरसू के पेड़ों की संख्या 150 के लगभग रह गई है। इनमें से जो पुराने पेड़ हैं वह भीतर से खोखले होते जा रहे हैं। खरसू के पेड़ों पर संकट देखते हुए वन विभाग ने इनके संरक्षण की योजना बनाई है। इन पेड़ों को काटने पर वन विभाग सख्त कार्रवाई करेगा।थामरी कुंड के निकट हैं गुफाओं वाले विशालकाय खरसू के पेड़पिथौरागढ़। मुनस्यारी के थामरी कुंड को जाने वाले मार्ग में खरसू के चार से छह विशालकाय पेड़ हैं। यह पेड़ नीचे से खोखले होने के कारण इनके तनों का आकार गुफाओं जैसा हो गया है। इन पेड़ों के एक सौ साल से भी अधिक पुराने होने का अनुमान है। स्थानीय निवासी हीरा सिंह चिराल ने बताया कि यह पेड़ वर्षों से ऐसे ही हैं। पेड़ों के भीतर इतनी जगह है कि एक साथ पांच लोग खड़े रह सकते हैं। उन्होंने बताया कि बारिश होने पर चरवाहे इन्हीं पेड़ों के भीतर बैठते हैं।खरसू के पेड़ों के तनों में उगता है झूला पिथौरागढ़। खरसू के पेड़ झूला के प्रमुख स्रोत हैं। बांज के पेड़ों की तरह खरसू के पेड़ों के तने पर बड़ी मात्रा में झूला उगता है। झूला का उपयोग मसालों या दवाओं के लिए किया जाता है। झूले का दोहन कानूनी रूप से प्रतिबंधित होने के कारण तस्कर अवैध तरीके से इसे निकालकर बेचते हैं।दीमक या अन्य बीमारी के कारण पेड़ खोखले हो जाते हैं। बांज या खरसू सहित इस प्रजाति के पेड़ों की उम्र औसत 100 वर्ष होती है। पेड़ों की अधिक उम्र होने पर भी तना भीतर से खोखला हो जाता है ।खरसू के पेड़ों के संरक्षण का प्रस्ताव बनाया गया है। शीघ्र ही इस पर कार्य शुरू कर दिया जाएगा। खरसू के पेड़ों को काटने या फिर इनको क्षति पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी वृक्षारोपण करना और वनों की कटाई को रोकना जलवायु परिवर्तन को रोकने की प्रमुख रणनीतियां मानी जाती हैं। लेकिन एक नए विश्लेषण से पता चला है कि पेड़ों को संरक्षित करने और वृक्षारोपण में लगने वाली लागत इसमें आड़े आ सकती है, जिससे दुनिया भर में उत्सर्जन में कमी लाने वाले लक्ष्यों में तेजी से वृद्धि हो सकती है।आरटीआई इंटरनेशनल (आरटीआई), नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर बताया है कि अधिक महत्वाकांक्षी तरीके से उत्सर्जन में कटौती की योजनाओं से लागत में तेजी से वृद्धि होगी। शोधकर्ताओं ने कहा कि 2055 तक कुल उत्सर्जन में 10 प्रतिशत से अधिक का लक्ष्य हासिल करने के लिए जमीन के मालिकों को पौधे लगाने और पेड़-पौधों की पर्याप्त सुरक्षा के लिए प्रति वर्ष 393 बिलियन डॉलर (लगभग 29 लाख करोड़ रुपए) की लागत आएगी, जिस पर अंतर्राष्ट्रीय नीति विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए यह आवश्यक है।