अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस अभियान नई पहल के साथ

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अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस अभियान नई पहल के साथ

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

पहाड़ प्रकृति का एक महत्वपूर्ण अंग है. हर साल आज के दिन यानी 11 दिसंबर को विश्वभर में अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया जाता है. इस दिन को इसलिए भी मनाया जाता है ताकि आज के दिन दुनियाभर में पर्वतीय क्षेत्रों के विकास पर बातचीत की बर्फ से ढकी और वन क्षेत्रों से घिरे पहाड़ और खूबसूरत वादियां कुदरत का अनमोल तोहफा है और इसे संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है. बता दें कि भारत पहाड़ों का देश है. ये सभी पहाड़ अपने आप में खास है और विभिन्न पशु, पक्षियों का घर भी है. दुनिया में कई लोग अपना जीवन पहाड़ों पर गुजार देते है, पर्वत केवल हमारे पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों और मानव जाति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवसको मनाने के पीछे कई खास वजह है. दरअसल इस दिन के बहाने लोग दुनिया में पर्वतों की भूमिका को याद करते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं. इस दिन हम लोगों को दुनिया में पहाड़ों की भूमिका और जीवन के इसके प्रभाव को समझने या समझाने का काम करते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया था और 2003 के 11 दिसंबर से अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाने का संकल्प लिया था. अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस 2021 की थीम है-सस्टेनेबल माउंटेन टूरिज्म। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पर्वतीय पर्यटन वैश्विक पर्यटन का लगभग 15-20 प्रतिशत आकर्षित करता है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा, ”यह प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को संरक्षित करने, स्थानीय शिल्प और उच्च मूल्य वाले उत्पादों को बढ़ावा देने और स्थानीय त्योहारों जैसे कई पारंपरिक प्रथाओं का जश्न मनाने का एक तरीकाहै। जो जीवन में प्रकृति का है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है। एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है, जबकि मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षो तक फलता-फूलता है, जितने वर्षो तक उसके लगाए वृक्ष फलते-फूलतेहैं।प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे-नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के नकारा नहीं जा सकने के बाद दुनिया ने पहाड़ों के महत्व को गंभीरता से देखना शुरू कर दिया। उनके महत्व को स्वीकार करते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार पूरे 2002 को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष के रूप में घोषित किया था। फिर, यह घोषणा की गई कि पहला अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस अगले वर्ष 2003 में मनाया जाएगा।पर्यटन पहाड़ों का एक प्रमुख पहलू है। पहाड़ों के सतत विकास के लिए पर्यटन का एक स्थायी तरीका खोजना होगा। यह इन उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रहने वालों के लिए आजीविका के विकल्प के साथ-साथ परिदृश्य और जैव विविधता के संरक्षण में मदद कर सकता है। सतत पर्यटन पहाड़ों की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का एक तरीका है। आज जब जलवायु परिवर्तन की वजह से पर्वतों की भौगोलिक स्थिति में लगातार बदलाव आता जा रहा है। वनों को नष्ट किए जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं, तो ऐसे में यह पृथ्वी और मानव जीवन के लिए गंभीर विषय हो गया है। अब लोगों को पर्वतों के प्रति अपने दायित्वों को समझना होगा। इसलिए अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह समृद्ध जैव विविधता और प्राकृतिक परिदृश्य को बचाने के लिए जागरूकता का आह्वान करता है। ये पर्वत आबादी और जैव विविधता को संभालने के अलावा मानवता के आधे हिस्से को ताजा पानी भी प्रदान करते हैं। हालांकि बढ़ते तापमान ने भी पर्वतीय ग्लेशियरों को अभूतपूर्व दरों पर पिघला दिया है, जिससे लाखों लोगों के ताजे पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई है। वैश्विक स्तर पर ये समस्याएं लगभग सभी को प्रभावित कर रही हैं। इसलिए भी इन प्राकृतिक धरोहरों की देखभाल करना बहुत जरूरी है। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए खास महत्‍व होता है। यहां रहने वाले लोग, पर्वतों से जुड़ा रोजगार करने वाले लोग, पर्वतारोही, सामाजिक संस्थाओं में सबसे अधिक उत्साह होता है।  वैश्विक स्तर पर ये समस्याएं लगभग सभी को प्रभावित कर रही हैं। इसलिए भी इन प्राकृतिक धरोहरों की देखभाल करना बहुत जरूरी है. लेकिन भारत में पहाड़ी शहर पर्यटकों की आमद के कारण अधिक प्रभावित होते हैं, जिससे गैर-जिम्मेदार कूड़े से पारिस्थितिक नुकसान होता है। पहाड़ी इलाकों में सफाई अभियान चलाना इतना आसान नहीं है, लेकिन जब भी ये सफाई अभियान चलाया जाता है तो सभी क्षेत्रों के लोग आते हैं और उत्साह के साथ भाग लेते जरूरी है  हमारा उद्देश्य दुनिया के एक सबसे खूबसूरत पर्वतारोहण स्थल की रक्षा और संरक्षण करना है। अभियान के दौरान सैनिटरी नैपकिन को अक्सर तालाबों, नदियों और झीलों में फेंक दिया जाता है। इस प्रकार जल निकायों को दूषित कर दिया जाता है या खुले में फेंक दिया जाता है, जो बदले में मिट्टी को प्रदूषित करता है। वन्यजीवों को खतरे में डालता है। बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड की एक परंपरा की शुरुआत करने से ग्रुप ट्रेल्स और अभियानों के दौरान शून्य अपशिष्ट शिविर का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए टीएसएएफ की महिला प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।‘हर साल हिमालय दुनिया भर से लगभग सात लाख पर्यटकों को आकर्षित करता है। पर्यटन में वृद्धि ने मिश्रित अपशिष्ट प्रबंधन की बढ़ती चिंता को जन्म दिया है, जिसमें प्लास्टिक एक मुख्य घटक है। यह न केवल सुरम्य पहाड़ी परिदृश्य को खराब करता है, बल्कि भूमि क्षरण, वायु प्रदूषण और अस्थिर पहाड़ी ढलान आदि जैसी समस्याओं को भी जन्म दे सकता है। टीएसएएफ अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से बी-स्कूलों, निगमों और व्यक्तिगत पर्यटकों के 5000 से अधिक प्रतिभागियों को अपने अभियान में शामिल करता है। यहां महत्वपूर्ण यह है इनमें 15 से 20 प्रतिशत सदस्य महिलाएं होती हैं। फाउंडेशन का उद्देश्य निःशुल्क बायो जैविक बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड प्रदान कर सैनिटरी पैड के अपशिष्टों के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकना है।अब तक, टीएसएएफ ने अभियानों के दौरान एकत्र किए गए कचरे को अलग करने और उन्हें आगे की रीसाइक्लिंग के लिए दिल्ली या देहरादून में स्थित विभिन्न इकाइयों में भेजने के लिए कई सफाई अभियान चलाये हैं। हालांकि, टीमों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस्तेमाल किये गये सैनिटरी पैड हैं, जिन्हें या तो जला दिया जाता है या जमीन में दफन कर दिया जाता है, जो बदले में वन्यजीवों को खतरे में डालते हैं या कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन को बढ़ाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए टीएसएएफ ने जैविक बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड पेश करने का फैसला किया, जो जमीन के नीचे दबने पर स्वाभाविक रूप से विघटित हो जाएगा। इसके अलावा, यह पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देगा, वन्यजीवों की रक्षा करेगा और प्रतिभागियों में व्यवहार परिवर्तन लाने में मदद करेगा।