हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड मानव तस्करी में टाप
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में हल्द्वानी और देहरादून मावन तस्करी के प्रमुख अड्डे हैं। पश्चिम बंगाल के बाद उत्तराखंड मानव तस्करी का दूसरा सबसे बड़ा सोर्स है। यहां से पहाड़ की बेटियों को दूसरे राज्यों और देशों में बेचा जा रहा है।हल्द्वानी में रविवार को एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल हल्द्वानी और नैनीताल पुलिस की ओर से आयोजित कार्यशाला में यह बात सामने आई।इम्पावर पीपुल के सीईओ ने बताया कि उत्तराखंड से 700-800 लड़कियों को हर साल शादी के नाम पर बेचा जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार करीब 400 लोगों को अन्य कारणों से हर साल यहां से बेचा जाता है। उन्होंने बताया कि करोड़ों रुपयों का मानव तस्करी का कारोबार यहां हो रहा है।तमाम प्रयास के बावजूद मानव तस्करी नहीं रुक रही है। रुपये कमाने का लालच देकर महिलाओं को तस्कर अपने साथ पंजाब, बिहार या पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में जाते हैं। इन पर कार्रवाई के लिए गठित एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल का काम आशा के अनुरूप नहीं रहा है। ऐसे में अब डीजीपी अशोक कुमार ने सेल का पुनर्गठन कर उसके काम का मूल्यांकन भी करने के संकेत दिए हैं।नव तस्करी के मामले कुमाऊं में हर साल बढ़ रहे हैं। तस्कर पर्वतीय इलाकों से गरीब परिवारों की लड़कियों को विवाह के नाम पर व अच्छी कंपनियों में नौकरी का झांसा देकर ले जाते हैं। इसके बाद कई को गलत कामों में धकेल जाता है। खटीमा में नेपाल से लाई जाने वाली कई महिलाओं को पूर्व में पुलिस व सुरक्षा एजेंसियां पकड़ चुकी हैं। मानव तस्करों को कुछ माह पूर्व हल्द्वानी की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल भी पकड़ चुकी है। इंटरनेट मीडिया या दूसरे माध्यम से युवतियों को प्रेमजाल में फंसाकर मानव-तस्करी का शिकार बनाया जाता है। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल मानव तस्करों पर लगातार कार्रवाई कर रही है। कई जिलों की टीमों का काम निराशाजनक रहा है। अगले माह पुलिस अधिकारी सेल के काम का मूल्यांकन करेंगे। इसके बाद सेल का पुनर्गठन किया जा सकता है। हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड मानव तस्करी के मामलों में टाप पर रहा है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में मानव तस्करी के राज्य में 20 मुकदमे व 34 पीडि़ता, 2018 में 29 मुकदमे 58 पीडि़ता, वर्ष 2019 में 19 मामले 44 पीडि़ता व 2020 में 24 मुकदमे 52 पीडि़ता रिकार्ड किए हैं। डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि कई जिलों की टीमों ने मानव तस्करों के विरुद्ध शिकंजा कसा है। कुछ टीमों का काम संतोषजनक नहीं रहा है। अगले माह मूल्यांकन के बाद एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल का पुनर्गठन करने पर विचार होगा। मुख्यमंत्री ने सरकारी स्कूलों में 10वीं व 12वीं के डेढ़ लाख और महाविद्यालयों के एक लाख छात्र-छात्राओं को मुफ्त टैबलेट देने की घोषणा की है। सरकार की यह पहल सराहनीय है। तकनीक के इस दौर में हर युवा हाथ में ऐसे उपकरणों का होना अति आवश्यक है। दूसरी तरफ, राज्य के सीमांत जिलों चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ में दो हजार से अधिक गांव अब भी दूरसंचार सेवाओं से अछूते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने यहां दूरसंचार के तार पहुंचाने की कोशिश नहीं की। तस्कर गरीब परिवारों की बेटियों को विवाह और अच्छी कंपनियों में जॉब के नाम पर ले जाते हैं। इन्हें पंजाब, बिहार या पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ले जाकर कई गलत कामों में धकेल दिया जाता है। मानव तस्करों के खिलाफ कुछ महीने पहले हल्द्वानी की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल ने बड़ी कार्रवाई की थी अब ट्रैफिकिंग के लिए भी इस नेटवर्क से जुड़े लोग सोशल साइट्स को जरिया बना रहे हैं। सोशल साइट्स पर पीड़ित से संपर्क किया जाता है। उसे नौकरी, शादी, मॉडलिंग या अन्य तरह का झांसा देकर बुलाया जाता है, जहां से उसका सौदा कर दिया जाता है। ऐसे में इस ट्रैफिकिंग चेन को पकड़ पाना अब बेहद मुश्किल हो गया है। मानव-तस्करी रोकने को सरकार और पुलिस के पास ना तो कोई कार्ययोजना है और ना ही इच्छाशक्ति है। इस अपराध को समझने को प्रशिक्षित पुलिस जरूरी है। प्रशिक्षण और कम्यूनिटी पुलिसिंग तंत्र विकसित करने के प्रस्ताव को कभी तरजीह नहीं दी गई। मानव तस्करी निरोधक इकाई भी हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप संपूर्ण नहीं है। मानव तस्करी की अधिकांश शिकायताें को लेकर कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। ऑपरेशन मुक्ति और ऑपरेशन स्माइल जैसे अभियानों से मानव तस्करी का बिंदु दरकिनार हुआ है। विवाह के लिए अपहरण की कुछ घटनाएं भी मानव तस्करी के दायरे में आती हैं, लेकिन पुलिस जांच के झंझट को बचने को किनारा कर लेती है। हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड मानव तस्करी के मामलों में टाप पर है। जो एक बड़ा चिंता का विषय है।