विदेशों में धमाल मचाएगा उत्तराखंड का हर्षिल सेब

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विदेशों में धमाल मचाएगा उत्तराखंड का हर्षिल सेब

 

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड

भारत दुनिया में सेबों का सबसे बड़ा मार्केट है। न्यूजीलैंड, अमेरिका, ईरान सारे देशों से सेब यहां आता है। पहाड़ी क्षेत्र भारत में सीमित है लेकिन उनका भी पूरा दोहन नहीं कर पाए हैं। उत्तराखंड में सेब अगर कहीं चर्चित हुआ तो हर्षिल में विल्सन का हुआ। लेकिन हमने अपने रहन-सहन को तो आधुनिक बनाया, पर खेती के लिए हम पुराने ढर्रे पर ही रहे। आज के समय में देखा जाए तो उत्तराखंड में 10 जिले ऐसे हैं, जहां सेब की खेती बहुत अच्छे तरीके से हो सकती है। इतना ही नहीं, उत्तराखंड में सेब की खेती का एक और सकारात्मक पहलू है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तराखंड का सेब कश्मीर और हिमाचल से पहले तैयार होगा। अब जो चीज पहले तैयार हो जाएगी तो उसे बाजार भी अच्छा मिलेगा। उत्तरकाशी में हर्षिल घाटी के 8 गांव सुक्की, झाला, पुराली,जसपुर, बगोरी, हर्षिल, धराली और मुखबा सेब उत्पादन के लिए मशहूर हैं। लेकिन मौसम के साथ-साथ जंगली जानवर इस क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। उपला-टकनौर जन कल्याण ट्रस्ट के माध्यम से आठों गांवों के सेब काश्तकार व्यापार करते हैं। ट्रस्ट के अध्यक्ष का कहना है “हमारा उगाया हुआ सेब घर-घर जाता है। लेकिन सरकार सेब काश्तकारों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रही है।जंगली जानवरों से सेब के बगीचों का नुकसान बड़ी समस्या बन गई है। हम बच्चे की तरह सेब के पेड़ों को पालते हैं। 20-25 साल पुराने पेड़ों को कभी भालू नुकसान पहुंचाता है तो कभी लंगूर उसकी खाल छील देता है। सेब लगते ही तोतों के झुंड फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। साल दर साल ये समस्या बढ़ती ही जा रही है”।हर्षिल वन पंचायत के सरपंच बताते हैं कि सेब को बचाने के लिए काश्तकारों ने उद्यान विभाग को कई बार अपने सुझाव और प्रस्ताव भेजे हैं लेकिन उन पर कभी कार्रवाई नहीं की गई। “सेब ही यहां के किसानों की आय का मुख्य ज़रिया है। कैनन गन, सोलर फेन्सिंग, आइडर ( जानवरों को भगाने के लिए रोशनी और आवाज़ निकालने वाली मशीन) जैसी कई कारगर तकनीक है जिससे हमारे बगीचों को बचाया जा सकता है। सरकार यूएनडीपी, कैंपा, वन पंचायत के फंड से भी किसानों की मदद कर सकती है। हम 50 प्रतिशत सब्सिडी मिलने पर खुद भी कैनन गन खरीदने के लिए तैयार हैं। वन्यजीवों के हमले से काश्तकारों को बहुत नुकसान हो रहा है। इसलिए हम सेब महोत्सव का विरोध कर रहे हैं”।उत्तरकाशी की धराली के सेब काश्तकार के पास सेब के 800 पेड़ हैं। डाउन टु अर्थ से बातचीत में वह बताते हैं “ वर्ष 2013 की आपदा के बाद रास्ते बंद होने के चलते हर्षिल के सेब बाज़ार तक नहीं पहुंच पाए और खराब हो गए। जिसके बाद यहां कोल्ड स्टोरेज बनाया गया। 2018, 2019, 2020 में ये कोल्ड स्टोरेज चला। लेकिन इस वर्ष ये बंद हो गया है।यहां आपदा के चलते रास्ते बंद हो जाते हैं। लॉकडाउन में मुश्किल आती है। कोल्ड स्टोरेज चलता तो हमारे सेब बचे रहते। हमने कई बार प्रशासन को कोल्ड स्टोरेज शुरू करने के लिए पत्र भेजे हैं। ज़िले के मुख्य उद्यान अधिकारी ने इस मसले पर हाथ खड़े कर दिए हैं। वह कहते हैं कि शासन स्तर से इस पर काम नहीं हो रहा। अगर ये कोल्ड स्टोरेज शुरू नहीं किया जाएगा तो हर्षिल के काश्तकार सेब महोत्सव में अपने फल नहीं भेजेंगे”।सेब की कीमत का सवाल भी उठाते हैं। “अडानी जैसी कंपनी हमारे सेब की कीमत क्वालिटी के आधार पर 14, 20 और 30 रुपये प्रति किलो तय करती है। इससे अच्छा रेट तो हमें ठेले वाला देकर जाता है। हम ये भी चाहते हैं कि सरकार ही हमारे सेब खरीदे”।  वन्यजीवों के आतंक से त्रस्त उत्तरकाशी के सुखी टॉप गांव के सेब काश्तकार भी वन विभाग और उद्यान विभाग के रवैये से नाराजगी जताते हैं और देहरादून सेब महोत्सव का विरोध करते हैं।इससे पहले 2019 में हर्षिल में ही सेब महोत्सव का आयोजन किया गया था। इस वर्ष देहरादून में हो रहे अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव में देश के सेब उत्पादक राज्यों के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों के सेब भी प्रदर्शित किये जाएंगे।एक ओर सरकार ने हर्षिल घाटी के सेब को पहचान दिलाने के लिए सरकार ने हर्षिल के सेब बांटे तो वहीं दूसरी ओर अब देहरादून में सेब महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. अपनी गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हर्षिल घाटी में बना एकमात्र कोल्ड स्टोर का संचालन भी ठप पड़ा हुआ है. जबकि घाटी में अब सेब तुड़ान शुरू हो गई है, लेकिन सेब रखने के लिए कहीं स्थान नहीं है, तो वहीं हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों ने सरकार को चेतावनी दी है अगर कोल्ड स्टोर शुरू नहीं होता है तो सेब महोत्सव का बहिष्कार किया जाएगा और महोत्सव में हर्षिल के सेब नहीं भेजे जाएंगे.हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों का कहना है कि वर्ष 2020 के बाद से घाटी के सेब काश्तकारों के लिए 8 करोड़ की लागत से बनी कोल्ड स्टोर का संचालन बन्द पड़ा हुआ है. काश्तकारों का कहना है कि अब हर्षिल घाटी में सेब के उत्पादन की तुड़ान शुरू हो गई है, लेकिन कोल्ड स्टोर संचालन बंद होने के कारण अब काश्तकारों के पास सेब रखने के लिए स्थान नहीं मिल पा रहा है और काश्तकारों को सेब खराब होने का डर सता रहा है.हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों का कहना है कि सरकार फाइलों में ही हर्षिल के सेब की पहचान दिलाने की बात कर रही है. वहीं दूसरी ओर धरातल पर कोई सुविधा नहीं है. हर्षिल के सेब काश्तकारों का कहना है कि अगर ऐसी स्थिति बनी रहती है और कोल्ड स्टोर का संचालन शुरू नहीं है कि उत्तरकाशी जनपद में आराकोट, हर्षिल और नौगांव घाटी करीब 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. जिसमें से हर्षिल घाटी में करीब 5 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है, तो वहीं हर्षिल घाटी का सेब अपनी उच्च गुणवत्ता के लिए देश की मंडियों में अपना विशिष्ट पहचान रखता है.प्रदेश में 25318 हेक्टेयर में सेब की पैदावार होती है। प्रति वर्ष लगभग 60 से 62 हजार मीट्रिक टन सेब उत्पादन होता है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए सरकार ने सी ग्रेड सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नौ रुपये प्रति किलो तय किया है। पिछले चार साल से सेब का समर्थन मूल्य आठ रुपये प्रति किलो ही था। इस बार सी ग्रेड सेब का एमएसपी नौ रुपये प्रति किलो तय किया गया है। सरकार का प्रयास है कि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिले। कंपनियां सेब खरीदने के आलवा कोल्ड स्टोर का संचालन भी खुद के हाथों में लेना चाहती हैं, ताकि वह सेब खरीदकर यहीं स्टोर कर सकें। इस सीजन में यह संभव नहीं है, टेंडर आदि की प्रक्रिया में समय लगता है।वर्ष 2016 के बाद अब एमएसपी में एक रुपये की वृद्धि की गई है। जबकि हिमाचल में सेब का एमएसपी 8.50 रुपये है। सेब उत्पादन में उत्तरकाशी प्रदेश का सबसे अग्रणी जिला है। इसके अलावा चमोली, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, देहरादून, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चंपावत भी सेब का उत्पादन होता है। लेकिन अभी तक इसकी ठीक से मार्केटिंग नहीं हो पाई है। हर्षिल का सेब अमेरिका के वाशिंगटन एप्पल को टक्कर देता है, लेकिन अभी तक इसकी ठीक से मार्केटिंग नहीं हो पाई है जिसके चलते सेब एसोसिएशन हर्षिल उत्पादन के लिए प्रयास कर रहा है। सेबों के लिए मशहूर हर्षिल के काश्तकार  मेज़बान  राज्य के ही सेब अपने ही आयोजन से नदारद मिलेंगे!