खराब रास्तों की वजह से नंधौर सेंचुरी को हो रहा नुकसान
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड वन विभाग में पुनर्गठन प्रक्रिया जोरशोर से कुमाऊं में नया वन्य जीव वन प्रभाग प्रस्तावित किया गया है। इसमें हल्द्वानी का नंधौर क्षेत्र तथा पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट अभ्यारण्य का क्षेत्र शामिल होगा। नया वन्य जीव वन प्रभाग का मुख्यालय नैनीताल में प्रस्तावित किया गया है। मानव वन्य जीव के संघर्ष के बढ़ते मामले, मुआवजे के अलावा हिंसक वन्य जीव को आदमखोर घोषित करने में देरी के अलावा वन्य जीव संरक्षण की दृष्टि से यह अहम कदम माना जा रहा है।दरअसल राज्य में मानव वन्य जीव संघर्ष के साथ ही वन्य जीवों के अवैध शिकार के मामले बढ़ रहे हैं। इससे वन विभाग को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मानव वन्य जीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं से विभागीय अधिकारी कर्मचारियों को पब्लिक के आक्रोश का सामना करना पड़ता है जबकि वन्य जीवों के अवैध शिकार पर पर्यावरण प्रेमियों व सगठनों के निशाने पर आ जाता है। राज्य में बाघ, गुलदार, भालू, सुअर आदि के हमलों की बढ़ती घटनाओं बाद पैदा हो रही विपरीत परिस्थितियों ने वन विभाग को नए सिरे से सोचने को विवश किया है। इसी के तहत अब कुमाऊं व गढ़वाल में दो वन्य जीव वन प्रभाग बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। कुमाऊं में अस्कोट अभ्यारण्य व नंधौर सेंचुरी क्षेत्र जबकि गढ़वाल में गोविंद पशु विहार व गंगोत्री उद्यान को मिलाकर वन्य जीव वन प्रभाग बनाने का प्रस्ताव नए पुनर्गठन में शामिल किया गया है।नन्धौर वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी असल में 1000 वर्ग किलोमीटर की विशाल नन्धौर घाटी का एक हिस्सा है. यह घाटी उत्तराखंड के नैनीताल, चम्पावत और उधमसिंह नगर जिलों में फैली है.पर्यटकों के लिए वर्ष 2017 में खोले गए नंधौर वन्य अभयारण्य का रास्ता खराब होने के कारण इस सत्र में अभी तक एक भी पर्यटक नहीं पहुंच पाया है। पर्यटकों की आवाजाही न होने से नेचर गाइड भी परेशान हैं। गत वर्ष 15 नवंबर को अभयारण्य को पर्यटकों की आवाजाही के लिए खोल दिया गया था, लेकिन वन विभाग रास्तों को ठीक नहीं कर पाया। जिससे पर्यटक बुकिंग कराने के बाद भी अभयारण्य में घूमना पसंद नहीं कर रहे हैं। नंधौर अभयारण्य 23113.8 हेक्टेयर में फैला हुआ है। जो नंधौर, ज्योलाशाल, शारदा रेंज, डांडा रेंज व चम्पावत वन प्रभाग के अंतर्गत है। यहां पहुंचने के लिए तीन रास्ते बनाए गए हैं। पहला रास्ता टनकपुर–चम्पावत राष्ट्रीय राजमार्ग के ककरालीगेट से, दूसरा खटीमा के चकरपुर व तीसरा रास्ता हल्द्वानी के चोरगलिया से आता है।इधर, ककरालीगेट पर विधायक निधि से निर्मित 20 लाख का रिसेप्शन हाउस भी बना हुआ है। साथ ही विशाल गेट भी बनाया गया है। बीते वर्ष अक्टूबर माह में आई दैवीय आपदा के कारण अभयारण्य के मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए थे। जिसके बाद उनकी मरम्मत नहीं की गई है। अभयारण्य में उत्तराखंड के अलावा कई राज्यों के पर्यटक आते रहे हैं। नेचर गाइड सौरभ कलखुडिय़ा ने बताया कि दो माह से अधिक का समय होने को है, लेकिन एक भी पर्यटक यहां नहीं पहुंचा है। पर्यटक जंगल सफारी के लिए बुकिंग तो करा रहे हैं, लेकिन रास्ता खराब होने के कारण अभयारण्य में घूमना पसंद नहीं कर रहे हैं। हालांकि सुविधा की दृष्टि से पर्यटकों के रुकने के लिए यहां गेस्ट हाउस की भी व्यवस्था की गई है सेनापानी गेस्ट हाउस 1885 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। यह स्थान ऊंचे स्थान पर होने के कारण खासा लुभाता है। नंधौर अभयारण्य मछली वन के नाम से भी प्रसिद्ध है। जानवरों के साथ-साथ यहां से गुजरने वाली नदियों में मछली के तमाम प्रजातियां भी पाई जाती हैं। नंधौर वन्य जीव बाहुल्य क्षेत्र है। सुरक्षा की दृष्टि से दोपहिया वाहन से अभयारण्य की सैर पर प्रतिबंध लगाया गया है। चौपहिया वाहन से पर्यटक प्रवेश शुल्क देकर सैर कर सकते हैं सुरई रेंज में पहली मगरमच्छ सफारीमुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की विधानसभा खटीमा से सटी सुरई वन रेंज में पहली मगरमच्छ सफारी बनाने की तैयारी है। रेंज के ककहरा नाले में बड़ी संख्या में तालाब पाए जाते हैं। सफारी जोन बनाने का उद्देश्य इनका संरक्षण भी है। इसके अलावा पीलीभीत टाइगर रिजर्व का बफर क्षेत्र होने के कारण यहां बाघों की भी अच्छी मौजूदगी है। मगरमच्छों के नाम पर एक नए तरीके का आकर्षण पैदा होने की वजह से सैलानियों को यह जोन काफी पसंद आएगा।यह भी पढ़ेंबंद गाड़ी से टाइगर के दीदार की तैयारीकाबेर्ट नेशनल पार्क के कालागढ़ क्षेत्र में पार्क प्रशासन एक खास योजना पर काम कर रहा है। इसके मुताबिक पाखरो जोन में 100 हेक्टेयर से अधिक जंगल को टाइगर सफारी बनाने की प्लानिंग है। इस क्षेत्र को चारों तरफ से कवर किया जाएगा। पहले से यहां मिलने वाले बाघों के साथ रेस्क्यू में पकड़े गए बाघ भी यहां छोडऩे की तैयारी है। ताकि बाघ एक सीमित दायरे में रहे। इसके बाद चारों तरफ से बंद गाड़ी को तय टाइगर जोन में घुमाया जाएगा। ताकि पर्यटकों को बाघ दिखने की गारंटी भी मिले। सेंट्रल जू आथोरिटी और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से इस प्रोजेक्ट को अनुमति मिल चुकी है। उम्मीद है कि 2022 में प्रोजेक्ट धरातल पर आ जाए।