हिंदी दिवस: भाषा संवाद का सबसे सशक्त माध्यम है हिंदी

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हिंदी दिवस: भाषा संवाद का सबसे सशक्त माध्यम है हिंदी

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 

हिन्दी प्रेमी लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन विश्व हिन्दी दिवस होता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए 2006 में प्रति वर्ष 10 जनवरी को हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की थी। विश्व में हिन्दी का विकास करने और एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।विश्व में हिन्दी का विकास करने और एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई थी.प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था. पहले विश्व हिंदी सम्मेलन) का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था. तब से इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. विश्व हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्‍य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है. 1975 से विभिन्न देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो ने विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया था. आमतौर पर हर वर्ष 10 जनवरी को देश भर के विश्वविद्यालयों एवं अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ-साथ स्कूली स्तर पर विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें निंबध प्रतियोगिता, चर्चा, वाद-विदाद, आदि शामिल हैं। इसी प्रकार, केंद्र व राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों में भी हिंदी में कामकाज को प्रेरित करने का संकल्प लिया जाता है।युवा पीढ़ी अंग्रेजी को ज्यादा और हिंदी भाषा को कम महत्व देती है। हिंदी की अनदेखी को रोकने और विश्‍व स्‍तर पर इसके व्‍यापक प्रचार के लिए हर साल हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। विश्‍व में अंग्रेजी, मंदारिन और स्‍पेनिश के बाद हिंदी सबसे ज्‍यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह भारत के अलावा कई अन्‍य देशों में भी व्‍यापक रूप से बोली जाती है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 65 करोड़ लोग किसी न किसी माध्‍यम से अपने दैनिक जीवन में इस भाषा का उपयोग करते हैं।आज हिंदी का महत्‍व इतना बढ़ गया है कि संयुक्त राष्ट्र ने भी हिन्दी में वेबसाइट बनाई है और हिन्दी में रेडियो प्रसारण भी करता है। वहीं अमेरिका का विदेश विभाग हर सप्ताह समसामयिक मुद्दों पर हिन्दी में संवाद करता है। हिन्दी भाषा में स्वदेश की महक है, जिसे बोलते और सुनते ही गर्व और सुकून की अनुभूति होती है। हिन्दी की महत्ता और इसके प्रति लोगों में आत्मविश्वास जगाने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी भाषा विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। पिछले कुछ साल में हिन्दी को लेकर लोगों में विश्वास और बढ़ा है। यहां तक की देश के कई व्यावसायिक पाठ्यक्रम की शुरुआत भी हिन्दी में कर दी गई है। कवि सुमित्रानंदन पंत ने भी कहा था कि हिंदी भाषा राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम श्रोत है. इसके अलावा देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी कहा था कि जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य पर गर्व नहीं, वह आगे नहीं बढ़ सकता.गौरतलब है कि भारत की संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया था. इसके बाद 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से हिंदी को भारत की राजभाषा चुना. संविधान के अनुच्छेद 343 में यह प्रावधान किया गया है कि देवनागरी लिपि के साथ हिंदी भारत की राजभाषा होगी. पहला राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर 1949 को मनाया गया था. विश्व में हिंदी भाषी करीब 80 करोड़ लोग हैं. यह दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. आम तौर से विश्व हिंदी दिवस के मौके पर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयो में निबंध, भाषण समेत कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, लेकिन कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण इस साल अधिकांश आयोजन वर्चुअल तरीके से होने की संभावना है. हिंदी दिवस से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है जबकि 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है. ऐसे में अक्सर विश्व हिंदी दिवस को लेकर दुविधा भी होती है. हिन्दी भाषा में मादकता, आकर्षक और मोहकता भी है। यही कारण है कि रूस के वरान्निकोव और बेल्जियम के बुल्के भारत आकर हिन्दी को समर्पित हो गए। बोलने को तो फ्रेंच भी एक भाषा है,परंतु आकर्षक और मोहक नहीं। इंटेलियन भाषा आकर्षक है, परंतु मादक और मोहक नहीं। चीनी भाषा न तो मादक है,न आकर्षक और न ही मोहक है।इन्हीं सब कारणों से हिन्दी अपने गुणों पर गौरवान्वित है। विश्व हिन्दी दिवस प्रतिवर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करना और हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है।पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन नागपुर में 10 जनवरी,1975 को आयोजित किया गया था, इसलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। सर्व प्रथम विश्व हिंदी को मनाने की सुरुआत भारत में 10 जनवरी,2006 को हुई थी।हमारा देश लंबे समय तक अंग्रेजों की दासता के अधीन रहने के कारण भारत में विश्व हिंदी दिवस के अलावा हर साल 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ मनाया जाता है।भारत में आजादी से पूर्व देश में हिन्दी का प्रयोग शून्य था,बल्कि हिन्दी भारत को आजाद कराने में एक सैनिक की भांति लड़ी थी और इसका प्रयोग उस समय भी सर्वाधिक था। लेकिन समय की करवट के साथ हिन्दी का आकाश सूना होता गया।विश्व में अनेक देश जैसे- इंग्लैंड, अमेरिका, जापान और जर्मन आदि अपनी भाषा पर गर्व महसूस करते हैं तो हम क्यों नहीं? चीन की अर्थव्यवस्था भारत से 3 गुनी बड़ी है, आज वहां बिजली, पानी, आवास, चिकित्सा, रोज़गार अथवा गरीबी जैसे मुद्दे काफ़ी हद तक न के बराबर हैं।भारत 1947 में आज़ाद हुआ और चीन जो जापान के साथ द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका में और आतंरिक संघर्षों के कारण लगभग बर्बाद हो गया था, वहां 1949 में कम्युनिस्ट शासन स्थापित हुआ। गरीबी, कुपोषण, अनियंत्रित जनसंख्या, महामारियां और खस्ती आर्थिक व्यवस्था किसी भी देश के लिए बड़ी चुनौती थीं, लेकिन चीन ने दृढ़ता से सबका मुक़ाबला किया।भारत में अंग्रेजी जितनी फायदेमंद भारतीयों के लिए मानी जाती है, उससे हज़ार गुना ज्यादा लाभ अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा के लिए भारत से कमा लेती है। कभी सोचा है कि अपनी विशाल प्राचीन संस्कृति के रहते भी भारत के लोग एक पिद्दी से देश इंग्लैंड को महान क्यों मानते हैं, जबकि उसके पड़ोसी फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड, स्पेन,पुर्तगाल,इटली इत्यादि उसकी ज्यादा परवाह नहीं करते।आज भाषा को लेकर संवेदनशील और गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। इस सवाल पर भी सोचना चाहिए कि क्या अंग्रेजी का कद कम करके ही हिन्दी का गौरव बढ़ाया जा सकता है?जो हिन्दी कबीर, तुलसी, रैदास, नानक,जायसी और मीरा की भजनों से होती हुई प्रेमचंद,प्रसाद, पंत और निराला को बांधती हुई भारतेंदु हरिशचंद्र तक सरिता के भांति कलकल बहती रही, आज उसके मार्ग में अटकलें क्यों हैं? और आज आजाद भारत में हिन्दी कर्क रोग से पीड़ित क्यों है?अफसोस इस बात का भी है कि हम हिन्दी का यश बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध तो है,पर नवभारत नहीं न्यू इंडिया में। यदि माननीय प्रधानमंत्री देश का वास्तविक कायाकल्प करना चाहते हैं, तो हिन्दी को उसकी गरिमा पुनः लौटाये। डिजिटल इंडिया के इस युग में चरमराती हिन्दी को चमकाना होगा। तकनीकी और वैज्ञानिक दौर में हिन्दी के लिए अप्रत्यक्ष रूप से बाध्यता अनिवार्य करनी होगी।उदाहरण के लिए गूगल जैसे बड़े सर्च इंजन की ही ले तो इस पर सर्च करने के बाद 90 फीसदी परिणाम अंग्रेजी में आते हैं, जबकि इसके विपरीत 90 फीसदी परिणाम हिन्दी में लाने होंगे। सरकारी वेबसाइट को हिन्दी में रूपांतरित करने से लेकर ऑन या ऑफलाइन फॉर्म सभी को हिन्दी में परिवर्तित या इनका नवीनकरण करना इस दिशा में एक सार्थक कदम होगा। इस तरह अनेक छोटी-छोटी कोशिश मन से की जाये तो हिन्दी के प्रति एक सुखद माहौल तैयार किया जा सकता है।आज प्रत्येक भारतीय को राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर ले जाने के लिए हिन्दी के प्रति हीनता के बोध को मन से हटाना होगा और वैचारिक और मानसिक रुप से अंग्रेजी के दासता का त्यागकर अपने राष्ट्र अपनी भाषा का आदर करते हुए इसे विकसित एवं समृद्धशाली बनाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना होगा। विश्व हिंदी दिवसका आयोजन अभी तक विदेश मंत्रालय ही अपने सीमित दायरे में कराता रहा है. विदेश मंत्रालय में अब सुषमा जी जैसा कोई विकट हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाप्रेमी नज़र नहीं रहा. ऐसा लगने लगा है कि मंत्रालय की प्राथमिकताओं में भारतीय भाषाओं की अस्मिता जैसे मुद्दे गौण हो गए हैं.उम्मीदें कभी समाप्त नहीं होतीं. हिंदी में भारत है. भारत की समेकित संस्कृति हैलेकिन अफ़सोस कि कोरोना की भेंट चढ़ गया. दोनों का उद्देश्य हिंदी का प्रचार प्रसार ही है। विश्व हिंदी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस की शुरुआत का अंतर है। राष्ट्रीय हिंदी दिवस को इसलिए मनाया जाने लगा क्योंकि भारत में ही हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। वहीं विश्व हिंदी दिवस को इसलिए मनाया जाता है ताकि विश्न में भी हिंदी को वही दर्जा मिले।