महामारी के दौर में भारत

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महामारी के दौर में भारत

                   डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

विश्व बैंक द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाले विकास को लेकर जारी रिपोर्ट ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स से पता चला है कि 2021-22 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में होने वाले विकास की दर करीब 8.3 फीसदी रहने का अनुमान है| वहीं 2020 में यह दर -7.3 फीसदी थी| यह इस बात का सबूत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक बार फिर से पटरी पर लौट रही है, हालांकि यह जीडीपी विकास दर उतनी नहीं है जितना पहले अनुमान लगाया गया था, इससे पहले अप्रैल 2021 में विश्व बैंक ने भारतीय जीडीपी में 10.1 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान लगाया था|इसका सबसे बड़ा कारण कोरोना की दूसरी लहर है, जिसने देश को एक बार फिर से लॉकडाउन लगाने के लिए मजबूर कर दिया था, जिसका असर आर्थिक विकास पर भी पड़ा है| हालांकि यदि कोविड-19 से जुड़े वर्तमान आंकड़ों को देखें तो हाल के कुछ दिनों में कोरोनावायरस के  मामलों में कमी आई है जिस वजह से कई राज्यों में लॉकडाउन में ढील दी जा रही है जिससे स्थिति सामान्य हो सके|वहीं 2022-23 में जीडीपी विकास दर के 7.5 फीसदी रहने की सम्भावना जताई गई है, जबकि 2023-24 में इसके 6.5 फीसदी रहने का अनुमान है| यदि अपने पड़ोसी देशों से तुलना करें तो भारत की जीडीपी विकास दर काफी अच्छी है|जहां 2021-22 में बांग्लादेश की जीडीपी विकास दर के 3.6 फीसदी रहने का अनुमान है, वहीं पाकिस्तान में तो इसके केवल 1.3 फीसदी रहने की सम्भावना है| हालांकि चीन की स्थिति भारत से थोड़ी अच्छी है जहां इसके जीडीपी ग्रोथ रेट के 8.5 फीसदी रहने की सम्भावना है| वहीं यदि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की बात करें तो जीडीपी विकास दर के 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है|वैश्विक महामारी कोविड-19 ने जितना नुकसान हमारे जीवन को पहुंचाया है, उतना ही भौतिक संपदा निवेश बाजार को भी सताया है। हालांकि स्थितियां बीचबीच में सुधरती रहती हैं, फिर भी फाइनेंशियल कोच विनायक सप्रे कहते हैं कि किसी भी तरह का जोखिम लेने से पूर्व इस बात का पूरा ध्यान रखें कि बाजार किसी भी करवट बैठ सकता है। भारतीय स्कूल आफ डेवलपमेंट मैनेजमेंट और आइआइएमपीएसीटी  नामक एक एनजीओ द्वारा किया गया यह अध्ययन राजस्थान, हरियाणा, बिहार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड के 900 से अधिक गांवों में 4,800 से अधिक घरों में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है।कोविड के संदर्भ में उभरती चुनौतियांशीर्षक के अध्ययन के अनुसार, आय और आजीविका की हानि, भोजन और पीने के पानी की उपलब्धता और बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव महामारी और तालाबंदी के दौरान ग्रामीण भारत में समुदायों की शीर्ष तत्काल चिंताओं के रूप में उभरा है। जबकि वर्ष 2020 में हुए संपूर्ण लाकडाउन के दौरान केवल 17 फीसद लोग ही अपनी नौकरी या आय के प्राथमिक स्रोत को बनाए रख सके, सर्वेक्षण में शामिल 96 फीसद परिवारों ने चार महीने से अधिक समय तक निर्वाह के लिए तरलता का प्रावधान नहीं किया था। आलेख का शीर्षक कितना ही आकर्षक क्यों लगे परंतु सत्य बात यह है कि आम भारतीय इस अवयव को सबसे कम महत्व देते हैं। शायद यही कारण है कि अधिकांश भारतीय रियल एस्टेट में निवेश करना अधिक समझदारी समझते हैं, जिसमें वे जमीन अथवा फ्लैट में निवेश करते हैं और कई बार तो वे कर्ज लेकर भी निवेश करते हैं। वह निवेश की लागत में ब्याज की धनराशि जोड़ना भूल जाते हैं और साथ ही साथ यह भी भूल जाते हैं कि आपदा की स्थिति में उस फ्लैट को बेचना टेढ़ी खीर बन जाता है और यदि भाग्य से ग्राहक मिल भी गया तो भी बाजार भाव का मिलना लगभग नामुमकिन होता है। यह सब मैंने बताने की क्यों सोची? इसका कारण यह है कि जब भारत में कोरोना का पहला मामला आया तो उसके बाद दोतीन सप्ताह में ही शेयर बाजार ताश के पत्तों की तरह गिर गया, सौभाग्य से बाजार को वापस पलटने में देर नहीं लगी, लेकिन कई लोगों की नौकरियां गई और कई लोगों के वेतन में भारी गिरावट आई। स्थितियां पटरी पर लौटी ही थी कि कोरोना की दूसरी लहर पहले से भी ज्यादा तेजी से आती दिखाई दे गई। ऐसे में वह निवेशक, जिन्होंने अपने पोर्टफोलियो में पर्याप्त तरलता रखी थी, वह काफी हद तक परिस्थितियों का सामना करने में सफल रहे। एक तरफ जहां यह सब मुश्किलें थी, वहीं दूसरी तरफ अप्रैल के महीने से बाजार ने जो तेजी पकड़ी वह अभी तक कायम यह है। इसी दौरान कई नए निवेशक बाजार में आए और बाजार की तेजी में भाग्य के भरोसे पैसा भी बनाया और उसको अपना कौशल समझने लगे। एक रिटेल निवेशक की दृष्टि से यह सोच बहुत भयावह होती है जब वह बिना किसी ज्ञान के स्वयं को चैंपियन समझ बैठता है। ऐसे में वह सभी निवेशक जिन्होंने पिछले वर्ष पैसे बनाए, उन्हें स्वयं को चैंपियन समझकर जो पैसे बनाए हैं, उसका संरक्षण करने पर ध्यान देना चाहिए। परिस्थितियां जो सामान्य दिख रही थीं, कोरोना की तीसरी लहर के साथ वापस कठिन हो सकती हैं और यदि ऐसे समय में बाजार ने पिछले वर्ष की तरह साथ नहीं दिया तो इस बार दोहरी मार पड़ सकती है। इक्विटी बाजार की सालभर की चाल से इस भ्रम में रहें कि यह हमेशा ऊपर की तरफ ही जाता है, यदि भारत के इक्विटी बाजार का 42 साल का इतिहास देखें तो आप पाएंगे कि तीनचार वर्ष तक (यह मैं सिर्फ बी.एस.. सूचकांक की बात कर रहा हूं )कई शेयर तो कई सालों तक नेगेटिव रहे हैं या फिर उनमे ट्रेडिंग बंद होने का भी खतरा रहता है। आग, पानी और बिजली की तरह ही इक्विटी बाजार जैसे देने की क्षमता रखता है, उसी प्रकार सब कुछ नष्ट करने की भी क्षमता रखता है। इसलिए इक्विटी बाजार  में छलांग लगाने से पहले जोखिम लेने की अपनी क्षमता का अंदाजा अवश्य लगा लें क्योंकि बाजार आपकी अपेक्षा के विपरीत कई महीनों, वर्षों तक निगेटिव रिटर्न दे सकता है। ऐसे में यदि आप इससे इश्क कर बैठे तो परिस्थिति विकट हो सकती है और हांइश्क है तो रिस्क हैजैसे संवाद फिल्मों में ही ठीक लगते हैं, निजी जीवन में यह सोच भारी पड़ सकती है। अब आप सोच रहे हैं कि इसका उपाय क्या है तो उपाय बड़ा आसान है। कम से कम 8-10 महीने के घर खर्च के बराबर की धनराशि ऐसे रखें कि आवश्यकता पडऩे पर 24 घंटे के भीतर धनराशि उपलब्ध हो जाए और बाजार के उतार का उस धनराशि पर नकारात्मक प्रभाव पड़े। जैसा कि रहीम जी का दोहा यह बताता है किरहिमन निज संपत्ति बिना, कोउ विपति सहाय /बिनु पानी ज्यों जलज को, नहीं रवि सके बचाय। संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अर्थशास़़्त्री इलियाट हैरिस के मुताबिक, ‘देशों और क्षे़त्रों के बीच वैक्सीन की असमानता पहले से असमान और नाजुक वैश्विक रिकवरी के लिए खतरनांक संकेत है।’उदाहरण के लिए अफ्रीका महाद्वीप में वैक्सीन की कवरेज दुनिया में सबसे कम है और वैक्सीन का डोज उपलब्ध न होने के चलते वहां वैक्सिनेशन रोकने की नौबत आ सकती है। दुनिया में जहां औसतन 11 फीसदी लोग वैक्सीन की पहली डोज ले चुके हैं, जबकि अफ्रीका के लिए यह संख्या केवल दो फीसदी है। इसलिए यह अप्रत्याशित नहीं है कि अफ्रीका महाद्वीप में सबसे धीमी आर्थिक रिकवरी दर्ज की जा रही है। इसकी भी आशंका है कि आगे उसे कोरोना की नई लहरों का सामना करना पड़ सकता है।इसी तरह, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत में वैक्सीन अभियान के लड़खड़ाने के चलते रिकवरी भी सबसे धीमी दर्ज की जा रही है। विश्व बैंक के मुताबिक, ‘ कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओ में इस साल पिछले बीस सालों में सबसे धीमी वृद्धि की आशंका है, साल 2020 इसका अपवाद है। इन देशों में वैक्सिनेशन की गति भी बेहद कम है।’ हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक ने एक अनुमान लगाया कि महामारी से संबंधित आधारभूत ढांचे में निवेश के परिणाम कैसे होंगे, इसमें वैक्सीन को भी शामिल किया गया था। नतीजे में पाया गया कि इसमें आज 50 बिलियन डाॅलर का निवेश करने से 2025 तक अतिरिक्त वैश्विक उत्पादन में कुल नौ ट्रिलियन डाॅलर कमाए जा सकेंगे।इससे पता चलता है कि वैक्सीन केवल महामारी से बचने के लिए ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में भी निर्णायक भूमिका निभाने जा रही है। वैक्सीन तक पहुंच ही बाकी सारे निर्णायक कारकों जैसे आर्थिक और प्राकृतिक पूंजी, मानव संसाधन और सामाजिक- राजनीतिक वातावरण को तय करेगी।