चुनाव में धनबल बाहुबल का औचित्य!

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चुनाव में धनबल बाहुबल का औचित्य!

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच चुनाव आयोग ने पांच राज्यों यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान है। चुनावों की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कोरोना काल में चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन समय पर चुनाव कराना हमारी जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा कि यदि भरोसा हो तो कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए चुनाव कराने का रास्ता निकाला जा सकता है। चुनाव आयोग ने इस बार चुनाव में डिजिटल चुनाव कराने पर ज्यादा जोर दिया है। भारत में चुनावों का आयोजन एक उत्सव की तरह होता है। चुनावो में टिकट बांटना और प्राप्त करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है। चुनावों में टिकट खरीदना ओर बेचना भी आज आम बात है। आजकल चुनावों के समय तो नेता जनता की बहुत सेवा करते हैं, पर चुनावों के बाद सब भूल जाते हंै ओर कुछ नेता तो अपने फायदे के लिए अपनी पार्टी तक को छोड़ देते हं। इसलिए चुनावों में टिकट ऐसे लोगों को देना चाहिए, जो पार्टी और जनता दोनों के प्रति ईमानदार और वफादार हों। ऐसे व्यक्ति को टिकट मिलना चाहिए, जो सबसे अधिक लोकप्रिय और ईमानदार, पढ़ा-लिखा, साफ छवि वाला हो।चुनावों में उम्मीदवार के चयन का आधार तो लोकप्रियता और योग्यता ही होना चाहिए। मुश्किल यह है कि अब तो सभी दलों में उम्मीदवार के चयन का आधार धनबल, बाहुबल और जातिबल हो गया है। इससे चुनावी माहौल भी बिगड़ता है, लेकिन मलाल तो इस बात का है कि ऐसे उम्मीदवार को न तो न्यायपालिका रोक पा रही है और न ही चुनाव आयोग। इस माहौल के कारण ही अच्छे लोग राजनीति में आने से बचते हैं। योग्य उम्मीदवारों से ही लोकसभा और विधानसभा सुशोभित हो, तभी इन सदनों की गरिमा बनी रहेंगीभाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर क्षेत्रीय स्तर पर भावी उम्मीदवार के कार्य, नेतृत्व क्षमता, कार्य निष्पादन क्षमता जैसी बातों को ध्यान में रखकर ही चुनाव के लिए टिकट देना उचित होगा। कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि नीति, नियम, व्यक्तित्व, चरित्र, योग्यता आदि को नजरअंदाज कर केवल व्यक्तिगत-पारिवारिक लाभ को सिंचित करने के लिए चुनावों में टिकट का वितरण किया जाता है। कहीं-कहीं पर बंदरबांट की तरह भी यह वितरण किया जाता रहा है। इस प्रकार की वितरण प्रणाली से क्षेत्र, राज्य, राष्ट्र एवं व्यक्ति विशेष का भला नहीं होना है। इसके नकारात्मक परिणाम हर स्तर पर देखने को मिल रहे हैं एवं मिलेंगे आजकल राजनीति में आने के लिए लोग नए-नए उपाय ढूंढते रहते हैं। साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनाकर राजनीति में दाखिल होना चाहते हैं। यह गलत प्रवृत्ति है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। राजनीति में प्रवेश करने के लिए योग्यता निर्धारित होनी चाहिए और काबिल लोगों को ही आगे बढ़ाना चाहिए, तभी लोक कल्याण का कार्य संभव है। शिक्षित, अपराध से दूर, समाजसेवाी व्यक्ति को ही टिकट दिया जाना चाहिए।जनप्रतिनिधियों का कार्य देश व समाज की सेवा करना है, तो टिकटों का विभाजन भी व्यक्ति का चरित्र, समाज के प्रति कार्य, त्याग, कार्यशैली की कुशलता के आधार पर ही किया जाना चाहिए, ताकि वह आगे जाकर एक सुंदर व स्वच्छ लोकतंत्र का निर्माण कर सके। धनबल व बाहुबल के द्वारा चुने हुए व्यक्ति लोकतंत्र की छवि को धूमिल करते हैं। चुनावों के दौरान किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को चाहे किसी भी पार्टी से हो, उसे विरोधी दल के उम्मीदवार पर व्यक्तिगत आक्षेप, टीका-टिप्पणी करने की बजाय अपने चुनाव क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण, अपेक्षित सुविधाएं उपलब्ध कराने, विकास और पब्लिक की खुशहाली को बढ़ाने के उपायों पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए इस आधार पर आम लोगों का समर्थन प्राप्त करना चाहिए। सजग नागरिक अथवा मतदाता को भी चाहिए कि वे किसी जाति-धर्म, वंश-परिवार, अमीर-गरीब पर ध्यान दिए बिना उसकी राजनीतिक योग्यता, नेकनीयती, पूर्व में उसके द्वारा किए गए कार्यों, इच्छा शक्ति, उसके वायदों को निभाने की क्षमता के आधार पर इनका विश्लेषण करते हुए अपने मताधिकार का सही उपयोग करना चाहिए। मौजूदा समय में हम देख रहे हैं कि राजनीतिक पार्टियां, उनके तथाकथित नेता अपने को किसान, राजवंश, दलित, सैनिक, अमीर-गरीब इत्यादि वर्गों में बांटकर लोगों को अपने समधर्मी, समजाति, समपेशा से जोड़, उनकी भावनाओं को भुनाकर वोट मांगते हैं। ऐसी सोच अत्यंत निंदनीय होने के साथ-साथ विभाजनकारी भी है। आम लोगों को इनकी कुत्सित चालों और निजी स्वार्थ को पहचानना आवश्यक है। इन खर्चों के अलावा पार्टी स्तर पर भी चुनाव खर्च किया जाता है। पार्टी अपने प्रत्याशियों को पोस्टर बैनर आदि सामग्री के साथ ही नकदी भी देती है। धन बल की महत्ता को समझते हुये जो जितनी धनी पार्टी होती है वह उतना ही धन प्रत्याशियों पर झोंकती है। ईमान्दारी का डंका पीटने वाले दल धन बल का जम कर इस्तेमाल करते हैं। इस तरह देखा जाय तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री चुनाव से ही बहने लग जाती है। हैरानी का विषय तो यह है कि प्रत्येक चुनाव में भारी मात्रा में शराब और करेंसी नोट पकड़े जाते हैं लेकिन आज तक पता नहीं चला कि वह शराब और रुपये किसके थे। आम मतदाता को ऐसे व्यक्ति अथवा उम्मीदवार को अपना वोट देना चाहिए, जो उनके क्षेत्र, प्रदेश तथा समग्र रूप में देश हित में सोचता और कार्य करता हो! न कि किसी पार्टी विशेष एवं व्यक्ति विशेष को देखकर अपने मत का दुरुपयोग करना चाहिए।