महात्मा गांधी का गहरा लगाव उत्तराखंड
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से कुमाऊं के लोग खासे प्रभावित थे। यही कारण था कि उनके एक आह्वान पर नैनीताल और अल्मोड़ा समेत कई स्थानों पर महिलाओं ने राष्ट्र हित के लिए अपने जेवर तक उतारकर दे दिए थे प्रसिद्ध इतिहासकार बताते हैं कि महात्मा गांधी 13 जून 1938 को पहली बार नैनीताल आए थे। उनके साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा, बेटी देवदास समेत प्यारे लाल, जवाहर लाल नेहरू, आचार्य कृपलानी और सुचिता कृपलानी भी थीं। गांधी जी 13 जून से 14 जुलाई 1938 तक कुमाऊं में रहे। इस दौरान उन्होंने भवाली, ताड़ीखेत, अल्मोड़ा, बागेश्वर और कौसानी की यात्रा की। 14 जून 1929 को महात्मा गांधी ने नैनीताल में भवाली रोड पर अपने भाषण में कांग्रेस को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का आह्वान किया था। यहां महिलाओं ने गांधी जी को अपने जेवर तक सौंप दिए थे।
18 जून 1929 को महात्मा गांधी ने अल्मोड़ा के चौघानपाटा में जनसभा को संबोधित किया। कुमाऊं प्रवास के दौरान महात्मा गांधी ने 434.52 किलोमीटर की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने 26 जनसभाएं कीं और 31 स्थानों पर उन्हें सम्मानित किया गया।
खासीप्रभावितरहींमहिलाएंनैनीताल कि महिलाएं गांधी जी से इतना अधिक प्रभावित थीं कि उन्होंने नमक सत्याग्रह से लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन तक में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इन आंदोलनों का नेतृत्व विशनी देवी, तुलसी देवी रावत और भक्ति त्रिवेदी ने किया था। अल्मोड़ा में महिलाओं ने अंग्रेजी सामान का बहिष्कार शुरू किया और शराब बंदी के लिए भी आंदोलन किया। महात्मा गांधी का जीवन देशभक्ति, सत्य, अहिंसा, सादगी और परोपकार की प्रेरणा देता है। देश को आजाद कराने के लिए उनके योगदान को देश कभी भूल नहीं सकता है। उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का जवाब अहिंसा रूपी हथियार से दिया था। वह समाज के हर वर्ग और हर तबके के लोगों के आदर्श हैं। युवाओं को भी उनके जीवन से आदर्श नागरिक बनने की प्रेरणा मिलतीहै। महात्मा गांधी का जीवनवृत्त एक पाठशाला है। उनका मानना था कि जीवन में सिद्धांत और व्यवहार में एकरूपता होना बहुत जरूरी है। उन्होंने सच को सिद्धांत और अहिंसा को व्यवहार में शामिल कर समानता का जीवन जीने का संदेश दिया। अपने सिद्धांतों से उन्होंने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करने पर कठिन से कठिन चुनौती को भी पार करने की प्रेरणा मिलती है। कौसानी के सौंदर्य से अभिभूत बापू ने इसे भारत के स्विट्जरलैंड की संज्ञा दी थी जहां प्रवास के दौरान उन्होंने योग पुस्तक की प्रस्तावना लिखी थी, वहां पर बने अनासक्ति आश्रम में बापू की यादों को सहेजे हुए करीब 150 तस्वीरें हैं। इसके अतिरिक्त महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ा साहित्य भी यहां धरोहर के रूप में रखा गया है। अनासक्ति आश्रम में सुबह-शाम बापू की प्रिय रामधुन बजाई जाती है, जिसमें स्थानीय लोगों के साथ सैलानी भी भाग लेकर आजादी के महानायक की यहां बसी यादों को आत्मसात करते हैं। कुमाऊं कमिश्नरी के तत्कालीन तीन जिलों नैनीताल, अल्मोड़ा व ब्रिटिश गढ़वाल ( पौड़ी) के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मेलन भी आयोजित किया। यह कुमाऊं परिषद के 1926 में कांग्रेस में विलय होने के बाद पहला बड़ा राजनैतिक सम्मेलन था। गांधीवादी विचारक कहते हैं कि महात्मा गांधी ने कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई। आने वाली पीढिय़ां भी उनका संदेश याद रखेंगी।