कम दामों पर हो रही माल्टा व गलगल की खरीद, किसान मायूस

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कम दामों पर हो रही माल्टा गलगल की खरीद, किसान मायूस

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

राज्य सरकार ने वर्ष 2021-22 के लिए माल्टा एवं पहाडी नीबू (गलगल) फलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है। सी ग्रेड माल्टा एवं पहाडी नीबू (गलगल) सी ग्रेड फलों के लिए क्रमश: आठ रुपये एवं पांच रुपये प्रति किलोग्राम घोषित किया है। उद्यान विभाग ने माल्टा एवं पहाड़ी नीबू फलों के उर्पाजन की कार्रवाई शुरू कर दी है। काश्तकारों को मंडी तक ढुलान का खर्चा भी नहीं देना पड़ेगा।जिले में 666.89 हेक्टेयर भूमि में माल्टा, संतरा, बड़ा नीबू आदि की फसल होती है। लगभग 30 हजार किसानों ने पेड़ लगाए हैं। लगभग 10 हजार किसानों के पास बेचने के लायक फल उत्पादित होते हैं। 4264.52 मिट्रिक टन नीबू प्रजाति के फलों की पैदावार जिले में हो रही है। सरकार ने अब समर्थन मूल्य घोषित कर दिया है। उद्यान सचल दल केंद्रों के प्रभारियों योजना के क्रियान्वयन में जुट गए हैं। यह योजना उद्यान कार्ड धारकों के लिए होगी। ठेकेदार बिचौलिये इस योजना में आच्छादित नहीं होंगे। माल्टा एवं पहाड़ी नीबू की क्रय 15 दिसंबर से 31 जनवरी 2022 तक किया जाएगा। क्रय किए जाने वाले सी ग्रेड माल्टा फलों का न्यूनतम व्यास 50 मिमी तथा नीबू(गलगल) का व्यास 70 मिमी से अधिक होना आवश्यक है। 80 रुपये किलो बिक रहा संतरा। गलगल के फल मध्यम आकार वाले, अंडाकार, पीले रंग के और मोटे छिलकेवाले होते हैं। फलों का उपयोग लेमनेड, मुरब्बा, शरबत, चटनी एवं अचार बनाने में होता है। इसके रस से शीतल, झागदार पेय तैयार करते है, छिलको से लेमन तेल टिंक्चर आदि बनाए जाते हैं।इसके खुसबूदार फूल मार्च अप्रैल में खिलते हैं। कच्चे फल हरे रंग के होते हैं जो पकने पर पीले हो जाते हैं। फल बहुत खट्टे और रसदार होते है। रस निचोड़ने के बाद बचे छिलको से अचार बनाते है। छिलको को दो टुकड़ों में काटकर नमक लगाकर धूप में रखने से कुछ दिनों में अचार तैयार हो जाता है।गलगल का पौधा बीज और कलम दोनों प्रकार से लगाया जा सकता है।गलगल एक स्वास्थ्यवर्धक फल है, जिसमें विटामिन सी, विटामिन बी, पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और कॉपर की प्रचुरता होती है। इसके अलावा इसमें कई प्रकार के फ़्लेवोनोइड्स, कैरोटेनॉइड्स और एसेंसियल आइल भी पाये जाते हैं। इस वजह से इनमें एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण जाते हैं।गलगल हमारी इम्यूनिटी में सुधार करता है; हीमोग्लोबिन बढ़ाता है; पाचनतंत्र को मजबूत करता है; शरीर मे पोटेशियम की आपूर्ति कर ब्लड प्रेशर नियंत्रित करता है।गलगल कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। इसके घुलनशील फाइबर और फ्लेवोनोइड अच्छे (एचडीएल) कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाते हैं बुरे (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल तथा ट्राइग्लिसराइड्स को कम करते हैं।गलगल में पाये जाने वाले प्लावोनोइड्स हमें इसोफेजियल, पेट, ब्रेस् और अग्नाशय के कैंसर से बचाते है। गलगल यूरिन में साइट्रेट के लेवल को बढ़ा देता है, जिससे किडनी स्टोन का खतरा कम हो जाता है।सरकार से मिलने वाला समर्थन मूल्य कम है। वह बड़े काश्तकारों के लिए अच्छा है। जिनका माल रामनगर आदि जाता है। माल्टा, नीबू और संतरा आदि की खरीद शुरू हो गई है। रामनगर की एक एजेंसी को काम दिया गया है। किसान समर्थन मूल्य के अनुसार उसे माल दे रहे हैं। किसानों को ढुलान का पैसा भी नहीं देना है। मुख्य उद्यान अधिकारी ने बताया कि उद्यान विभाग द्वारा माल्टा एवं पहाडी नीबू फलों के उर्पाजन की कार्यवाही शुरू कर दी गई है। उन्होंने इस संबंध में अधीनस्थ सभी उद्यान सचल दल केन्द्र के प्रभारियों को निर्देशित किया है कि योजना के क्रियान्वयन के लिये फलों के उपार्जन की अनुमानित मात्रा का आंकलन कर जानकारी दे।मुख्य उद्यान अधिकारी ने बताया कि यह योजना उद्यान कार्ड धारकों के लिये होगी। ठेकेदार बिचौलिये इस योजना में आच्छादित नहीं होंगे। माल्टा एवं पहाड़ी नीबू की क्रय 15 दिसंबर से 31 जनवरी 2022 तक किया जाएगा। संबंधित उत्पादकों को घोषित समर्थन मूल्य से अधिक मूल्य किसी अन्य माध्यम से प्राप्त होने की स्थिति में वे अपनी फसल का विक्रय करने हेतु स्वतंत्र होंगे। क्रय किए जाने वाले सी ग्रेड माल्टा फलों का न्यूनतम व्यास 50 मिमी. तथा नीबू(गलगल) का व्यास 70 मिमी. से अधिक होना आवश्यक है। फल कटे सडे, गले होकर स्वस्थ रोग रहित होने चाहिए। तुडाई उपरान्त फलों के वाष्पीकरण एवं श्वसन क्रिया से वनज में कमी को ध्यान में रखते हुए क्रय के समय तौल में 2.50 प्रतिशत अधिक वजन लिया जाएगा। उद्यान विभाग द्वारा उपार्जित सी ग्रेड माल्टा एवं पहाडी नीबू को भण्डारण के उपरान्त अथवा ताजे उपार्जित फलों को राज्य के भीतर तथा बाहर स्थापित मण्डियों सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की प्रसंस्करण इकाईयों को विक्रय किया जाएगा। यदि समर्थन मूल्य या इससे अधिक मूल्य स्थानीय बाजारों में प्राप्त होता है तो इसे निलामी द्वारा पहली प्राथमिकता पर विक्रय किया जायेगा। फल उत्पादकों को भुगतान एकाउन्ट पेई चैक तथा आरटीजीएस के माध्यम से किया जाएगाउन्होंने बताया कि जिले में 04 संग्रह/क्रय केन्द्र बनाये गये हैं, जहां पर कर्मचारियों की तैनाती की गई है। बताया कि उपार्जन हेतु जोशीमठ, दशोली, घाट ब्लाक के लाभार्थियों के लिये राजकीय सामुदायिक फल संरक्षण केन्द गोपेश्वर को संग्रह/क्रय केन्द्र बनाया गया है। जबकि पोखरी, कर्णप्रयाग, नारायणबगड आदिबद्री विकास खण्ड के लिये राजकीय सामुदायिक फल संरक्षण केन्द्र कर्णप्रयाग को, गैरसैंण ब्लाक के लिये राजकीय सामुदायिक फल संरक्षण केन्द्र गैरसैंण तथा ब्लाक थराली, देवाल के लिये राजकीय सामुदायिक फल संरक्षण केन्द्र ग्वालदम को संग्रह/क्रय केन्द्र बनाया गया है। पहाड़ में माल्टा उगा रहे किसानों की मुश्किल पर कृषि विशेषज्ञ राजेंद्र कुकसाल कहते हैं “ अगर क्वालिटी फूड मार्केट में आता है तो उसके एमएसपी की जरूरत ही नहीं पड़ती। लोग 200 रुपये किलो की दर से भी खरीदने को तैयार हैं। लेकिन किसी फल की क्वालिटी-वेरायटी ऐसी है जिसकी बाज़ार में मांग ही नहीं है, तो उस पर एमएसपी की जरूरत होगी।पहाड़ में कभी संतरा होता था लेकिन सरकारी नीतियों के चलते वो बाहर हो गया। माल्टा जंगली फल है। उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। लेकिन वह बहुत तेज़ी से फैलता है और ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। उसमें बीज बहुत ज्यादा होते हैं। बीज से पौध बनाना आसान होता है इसलिए सरकार की योजनाएं में, नर्सरियों में, पौध बांटने में माल्टा पर ज़ोर दिया जाने लगा। माल्टे की सात रुपये प्रति किलो एमएसपी बहुत कम है। लेकिन इस कीमत पर भी सरकार को घाटा ही होता है।डॉ राजेंद्र कुकसाल कहते हैं “सरकार को पता है कि माल्टा की खरीद के लिए जो पैसे दिए जा रहे हैं उसे डूबना ही है”।वह बताते हैं “ माल्टा बहुत खट्टा होता है। पहाड़ के लोग ही धूप में बैठकर नमक लगाकर उसे खा सकते हैं। माल्टे का जूस बनाने वाली फूड प्रॉसेसिंग कंपनी को भी मैंने बंद होते देखा है। संतरे-कीनू के जूस में चीनी कम मिलानी पड़ती है। लेकिन माल्टा ज्यादा खट्टा होता है और बहुत चीनी मिलानी पड़ती है। माल्टा किसानों को भी कोई फायदा नहीं होता”।डॉ राजेंद्र कुकसाल की सलाह है “ सरकारी योजना में माल्टा की पौध की जगह संतरे को प्रोत्साहित करना चाहिए। 25-30 वर्षों से माल्टा इतना अधिक होने लगा है। संतरा पहाड़ के बगीचों में बेहद कम हो गया। भले ही उसमें देखभाल ज्यादा हो लेकिन किसान को उसकी बेहतर कीमत मिलेगी”। उत्तराखंड के मैदानी ज़िले ख़ासतौर पर उधमसिंह नगर और हरिद्वार के किसान कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां के कई किसानों ने दिल्ली पहुंचकर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की। सितारगंज से खबर है कि पुलिस किसानों को दिल्ली जाने से रोक रही है। वहां बॉर्डर पर ही किसान जमे हुए हैं।राज्य के पहाड़ी हिस्सों के किसान भी कृषि कानून के खिलाफ़ हैं।हुए प्रदर्शन में नैनीतालपौड़ी समेत कई पर्वतीय ज़िलों के किसानों ने अपना विरोध दर्ज कराया। लेकिन जिस तरह मैदानी हिस्सों में किसान खुलकर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। पहाड़ के किसान तीव्र विरोध नहीं कर रहे। लेकिन आज चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा ने कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों को अपना समर्थन दिया है। किसान आंदोलन के 23वें दिन पहाड़ की एक प्रबल आवाज़ आंदोलन में शामिल हुई है। सुंदरलाल बहुगुणा ने कहा कि वह अन्नदाताओं की मांगों का समर्थन करते हैं।उम्मीद है कि उनका ये समर्थन पर्वतीय अंचल के किसानों की आवाज़ मज़बूत करेगा।