76 साल की डायरेक्टर, 22 साल की मैनेजर, चल पड़ी सपनों की फैक्ट्री

0
508

76 साल की डायरेक्टर, 22 साल की मैनेजर, चल पड़ी सपनों की फैक्ट्री
– दर्द से उपजे सपनों को साकार कर रहीं बेटियां
– गोदाम्बरी इंटरप्राइज में धागों के साथ बुना जा रहा रिश्तों का ताना-बाना

मां बोली, बेटा, तूने मुझे क्या दिया? बेटा बोला, मां इस उम्र में आपको डायरेक्टर बना दिया। मां-बेटे दोनों एक दूसरे को देखते हैं और जोर से खिल-खिला देते हैं। मां-बेटे की यह ठिठोली देख मैं भी मुस्करा देता हूं। चश्मे से उसपार भी मां की आंखों में संतुष्टि का भाव और चमक साफ दिखाई देती है तो बेटे को मां की चाहत पूरा करने पर गर्व सी अनुभूति होती है।

यह कहानी 76 साल की सावित्री नौटियाल और उनके बेटे सुशील नौटियाल की है। देहरादून के गुच्चीपानी के निकट स्थित जोहड़ी गांव की एक संकरी सी गली के अंतिम मकान में कई सपने बुने जा रहे हैं। नाम दिया गया है गोदाम्बरी इंटरप्राइजेस, ताना-बाना रिश्तों का। यहां धागों को करीने से संवार कर जिंदगी के सपनों को साकार किया जा रहा है।

जो लोग महिला सशक्तीकरण और महिलाओं आजादी के पक्षधर हैं, उन्हें यहां जरूर जाना चाहिए। कि यहां आसपास के गांवों के डेढ़ दर्जन से अधिक ग्रामीण महिलाओ की जिंदगी किस तरह बदल रही है। उनकी निजी जिंदगी की परेशानियां कैसे कम हो रही हैं।
गोदाम्बरी इंटरप्राइसेस का एक पहलू यह है कि इसकी मैनेजर एक 22 साल की उत्साही लड़की मानसी रांगड़ है और लगभग हमउम्र की फैशन डिजाइनर दीपशिखा तोमर है। मानसी लिटरेचर की छात्रा है और अब धागों और रंगों से सपनों को बुन रही है तो दीपशिखा निफ्ट हैदराबाद से पासआउट होने के बाद वापस अपनी माटी और अपने लोगो के बीच लौट आई है। इस टेक्सटाइल यूनिट में दो पुरुषों को छोड़कर बाकी सभी 14 महिलाएं हैं। यहां बेडशीट, शर्ट, टावल, क्विल्ट, स्टाल आदि बनते हैं। साथ ही साथ कपड़े के बचे टुकड़ों से मोबाइल कवर, डाइनिंग टेबल टावल, छोटे कैरी बैग बनाए जाते हैं। यह सब पूरी तरह से 100 प्रतिशत काटन है और बहुत ही महीन कारीगरी है। मदद के लिए टेक्सटाइल में बीटेक कर चुके इंदौर के तुषार तांबे हैं। जो देश-विदेश में टेक्सटाइल इंडस्ट्री का अनुभव यहां काम में ला रहे हैं।

सावित्री नौटियाल के अनुसार अधिकांश ग्रामीण महिलाओं की स्थिति आज भी अच्छी नहीं है। आर्थिक अभाव से कई अन्य पारीवारिक परेशानी होती हैं। ऐसे में इन महिलाओं को सशक्त कर उनकी पीड़ को कुछ कम करने का प्रयास करने का सपना था। अब यह सपना धीरे-धीरे साकार हो रहा है।