उत्तराखंड में लचर स्वास्थ्य सेवाएं

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उत्तराखंड में लचर स्वास्थ्य सेवाएं

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में आज भी लोग ज्यादातर अपना इलाज़ करवाने प्राइवेट डॉक्टर और प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते हैं. उत्तराखंड बने 21  साल गुजरने के बाद भी स्वास्थ्य सुविधाएं पटरी पर नहीं आई हैं. हालत यह है कि प्रदेश में आज भी लोग इलाज़ के लिए प्राइवेट डॉक्टर और प्राइवेट अस्तपाल पर निर्भर हैं. उत्तराखंड में जनसंख्या के अनुपात में डाक्टरों की कमी है। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बेशक कम हैं, लेकिन जितनी हैं भी उनका समुचित लाभ लोगों को नहीं मिल पाता। जिला अस्पतालों में छोटी-बड़ी कई बीमारियों का इलाज हो सकता है, मगर वे भी रेफरल सेंटर बने हुए हैं। इमरजेंसी में 80 प्रतिशत मामले बिना देखे, जाने रेफर हो जाते हैं। स्वास्थ्य की चुनौतियों से जूझते कार्यकर्ताओं व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने जमीन हकीकत बयां की। विशेषज्ञों ने कहा कि सरकारी डाक्टर बेझिझक होकर मरीज को उपचार दे सकें, इसके लिए उपभोक्ता फोरम नियमावली कुछ छूट देने की जरूरत है। नई सरकार की कैबिनेट संशोधन प्रस्ताव तैयार कर केंद्र को भेजे। इससे बिना देखे मरीज को रेफर करने की संस्कृति बदलेगी। प्राथमिकताएं तय करते हुए बजट खर्चने की जरूरत है। निर्माण व खरीद के लिए प्रशासनिक दखल रोकने की भी बात कही गई।आइएमए के प्रतिनिधियों ने सुझाया कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने के साथ पर्वतीय क्षेत्रों तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए निजी अस्पताल खोलने के नियमों में ढील दी जाए। जरूरत अनुरूप डाक्टर मिलें, इसके लिए नए मेडिकल कालेज जरूरी हैं, लेकिन यह सुनिश्चित हो कि गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होगा। मरीजों को रेफर करने का रिवाज खत्म हो, इसके लिए समीक्षा जरूरी। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े उपकरणों की खरीद जरूरत के आधार पर ही हो-मशीन खरीदने से पहले तकनीशियन की नियुक्ति का प्रविधान हो।मेडिकल इंश्योरेंस को अनिवार्य किया जाए।-बिना प्लानिंग व जरूरत के खर्च करने से बचना होगानिगरानी तंत्र को क्रियाशील व पारदर्शी बनाने की जरूरत। मेडिकल कालेज खोलने के बजाय गुणवत्ता बढ़ाना अधिक जरूरी है। मेडिकल की पढ़ाई के लिए नीट में न्यूनतम अंक निर्धारित हों। वरना गुणवत्ता अधिक खराब होगी। सीई एक्ट में नियमों को सरल करना भी जरूरी है। राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के लिए नीतियों से ज्यादा नीयत जिम्मेदार है। स्वास्थ्य क्षेत्र में निर्माण व खरीद के बजाय पर्याप्त डाक्टर व मेडिकल स्टाफ तैनात करने की जरूरत है। निगरानी बढ़े। उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग की महानिदेशक कहती हैं कि ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक में सरकारी हॉस्पिटल ज्यादा सुविधाएं दे रहे हैं. वह इस बात से इनकार करती हैं कि सरकारी के बजाय आम लोग प्राइवेट डॉक्टर या क्लीनक में जाते हैं.इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उत्तराखंड के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर संजय गोयल कहते हैं कि आम लोग प्राइवेट डॉक्टर के पास या क्लीनिक में इसलिए जाते हैं क्योंकि सरकारी अस्पतालों में भीड़ बहुत ज़्यादा है और प्राइवेट डॉक्टर के पास उन्हें पर्सनल ट्रीटमेंट मिल जाता है. प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बेहद लचर है। खासतौर पर दूरदराज के ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र खोले तो गए हैं, लेकिन वहां चिकित्सकों, फार्मेसिस्टों समेत पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी बनी हुई है। राज्य बने हुए 21  साल गुजरने के बाद भी उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर नहीं लाया जा सका है। चिकित्सकों की कमी के साथ ही सीमित संसाधन राज्य के लिए परेशानी का बड़ा सबब बने हुए हैं। ऐसे में स्वास्थ्य महकमे के जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यप्रणाली और कायदे-कानूनों को लेकर गैर जिम्मेदार रुख सवाल खड़े कर रहा है। ऑडिट रिपोर्ट में विभिन्न जिलों में बरती गई अनियमितताओं का खुलासा यह बयां कर रहा है कि स्वास्थ्य महकमा अंदरूनी तौर पर खुद बीमार है। जिलों में मुख्य शिक्षाधिकारियों ने दवाइयों की खरीद में नीति का पालन नहीं किया। यहां तक कि दवाइयों का परीक्षण कराने की जरूरत महसूस नहीं की गई। इसके अलावा विभिन्न खरीद और कार्यों में प्रोक्योरमेंट नियमों की अनदेखी हुई है। वहीं कई अस्पतालों में यूजर्स चार्जेज को लेकर भी अनियमितताएं सामने आई हैं।अस्पतालों में तमाम खर्चों, खातों और कैश बुक में उनके ब्योरे में अंतर अस्पताल प्रशासन के कामकाज की पोल खोलने को काफी है।वैसी भी उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं के साथ ही दैवीय आपदाओं का खतरा मौजूद है। इसी वजह से अधिक ट्रॉमा सेंटर खोलने की पुरजोर पैरवी की जा रही है। इसके बनने के बाद भी चालू हालत में नहीं आने से इसके बनाने का प्रयोजन ही विफल साबित हो गया है। ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया सच जनता और सरकार दोनों की आंखें खोलने वाला है। एक ओर स्वास्थ्य महकमा और सरकार संसाधनों की कमी का रोना रो रही है, दूसरी ओर महकमे को जनता को राहत पहुंचाने के लिए जितनी शिद्दत से काम करना चाहिए, इसके उलट मनमाने तरीके से जरूरी कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि स्वास्थ्य महकमे की खामियों को दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि भविष्य में इन्हें दोहराया नहीं जा सके।