सिक्किम से लेकर उत्तराखंड तक समुदाय विशेष को बसाने के लिए चलाया जा रहा मिशन “आबाद
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड से सिक्किम तक भारत से लगी नेपाल सीमा पर मिशन ‘आबाद तेजी से परवान चढ़ा है। इसी के तहत बांग्लादेश व भारत के प्रमुख नगरों से होते हुए रोहिंग्या करीब 1391 किलोमीटर की यात्रा कर काठमांडू तक पहुंच गए। अब भारत से सटे क्षेत्रों में ये स्थानीय लोगों के साथ इस कदर घुल-मिल गए हैं कि पहचानना मुश्किल है।सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार इन्हें इस्लामी संघ नेपाल (आइएसएन) सीधे तौर पर मदद कर रहा है। मुस्लिम वल्र्ड लीग (एमडब्ल्यूएल) व द आर्गेनाइजेशन वल्र्ड असेंबली आफ मुस्लिम यूथ (डब्ल्यूएसएएमवाइ) परोक्ष रूप से सहयोग में जुटा है। भविष्य में इसका असर बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड पर भी सीधे तौर पर पड़ेगा। सीमा के करीब बांग्लादेशियों को भी सुनियोजित तरीके से बसाना इसी मिशन की अहम कड़ी है।सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से बदले हालात के बीच नेपाल के हिंदू राष्ट्र की पुनर्बहाली की मांग शुरू हो गई है। मधेश के 22 जिलों में तमाम संगठन इसके लिए सक्रिय भी हो गए हैं। नेपाली प्रधानमंत्री ने खुद पिछला आम चुनाव हिंदू राष्ट्र की पुनर्बहाली के मुद्दे पर ही लड़ा था। अब भारत से कूटनीति को देवनीति में बदलने के साथ ही काशी विश्वनाथ से पशुपतिनाथ तक के नारे लगाए जा रहे हैंभारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार शरणार्थियों के नाम पर नेपाल से लगते बिहार, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड तक समुदाय विशेष के लिए गलियारा तैयार कर लिया गया है। दूसरा चरण हरियाणा व पंजाब होते हुए इसे पाकिस्तान से जोडऩे की है। हाल ही में पंजाब के फरीदकोट जिले में तीन मस्जिदों का निर्माण भी इसी कड़ी का हिस्सा बताया जा रहा है।सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार आइएसएन, एमडब्ल्यूएल व डब्ल्यूएसएएमवाइ भारत-नेपाल सीमा पर समुदाय विशेष को सुनियोजित तरीके से बसा रही हैं। इस अभियान को इन्होंने मिशन आबाद नाम दिया है। इसके लिए बकायदा फंडिंग की जा रही है। नेपाल में ही स्थाई निवास प्रमाण पत्र के साथ भवन का भी निर्माण कराया जा रहा है। नौकरी के साथ ही रोजगार के अवसर भी दिए जा रहे हैं। धर्म विशेष से जुड़ी प्रचार सामग्री भी मुहैया कराई जा रही है। हाल के दिनों में भारतीय सीमा से सटे नेपाली क्षेत्रों में ऐसे लोगों ने अकूत संपत्ति अर्जित की है जिनके आय का ठोस माध्यम ही नहीं है।पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी आइएसआइ लंबे समय से भारत-नेपाल सीमा पर लश्कर और जैश जैसे आतंकी गुटों के बेस बनाने की साजिश में लगी हुई है। ऐसे में रोहिंग्या व बंग्लादेशियों को फंड मुहैया करवा कर भारत-नेपाल सीमा पर बसाने के पीछे एक बड़ी साजिश हो सकती है। सरकार को खुफिया एजेंसियों से ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि राज्य के तीर्थ स्थल जिनमें चारधाम, हरिद्वार और ऋषिकेश में पिछले सालों में तेजी से आबादी बढ़ी है। हरिद्वार में गंगा किनारे बड़ी संख्या आबादी को लेकर भी खुफिया विभाग के पास सरकार को चिंता में डालने वाले इनपुट हैं। प्रदेश में एक साजिश के तहत एक समुदाय के लोगों को असम की तर्ज पर उत्तराखंड में बसाया जा रहा है। कई संगठन इस संबंध में सरकार से ध्यान देने की भी मांग कर चुके हैं। पिछले दो दशक में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में गांव तेजी से खाली हुए हैं।
स्थानीय व मूल निवासियों से खाली हो रहे पहाड़ में गैर हिंदू आबादी का पलायन हो रहा है उत्तराखंड में पहाड़ों पर सालों से खबरें जुटाने वाले कहते हैं कि बीते कुछ समय से पहाड़ी कस्बों, गांवों में बिना पहचान व सत्यापन के रह रहे लोगों की वजह से वृद्धि हुई है। विगत समय में सतपुली, घनसाली, अगस्त्यमुनि आदि स्थानों पर हुई घटनाएं, आंखें खोलने वाली हैं। इन घटनाक्रमों में पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों में तमाम तरह की आशंकाएं घर करने के साथ ही भारी आक्रोश भी व्याप्त है। इसके साथ ही “लव जिहाद” जैसी घटनाएं भी समय-समय पर सुनाई देने लगी हैं। सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड का यह हिमालयी क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों की विशिष्ट भाषाई व सांस्कृतिक पहचान रही है। अत्यंत संवेदनशील सीमा के निकट लगातार बदल रहा सामाजिक ताना-बाना आसन्न खतरे का कारण बन सकता है। तथ्य राज्य में असम जैसी परिस्थितियों का कारक भी बन सकते हैं। आज उत्तराखंड की सरकार बॉलीवुड के फिल्मकारों को राज्य में फिल्म शूटिंग के लिए निमंत्रण देती है, अगर वे खुद ही अपने राज्य का माहौल बिगाड़ेंगे, तो पहले ही पलायन की मार झेल रहे राज्य की मुश्किलें और बढ़ेंगी। उत्तराखंड को एनआरसी नहीं, बल्कि पहाड़ में अस्पताल-डॉक्टर चाहिए, स्कूल-शिक्षक चाहिए, सड़क-बिजली-पानी चाहिए।