उत्‍तराखंड की शिक्षा के सामने 22 साल की समस्याओं का छह माह में समाधान चुनौती!

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उत्तराखंड की शिक्षा के सामने 22 साल की समस्याओं का छह माह में समाधान चुनौती!

 डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्‍तराखंड शिक्षा के सामने 22 साल से शिक्षा विभाग में व्याप्त समस्याओं के साथ संसाधनों की कमी का समाधान छह महीने में करना बड़ी चुनौती होगी। आज भी तमाम स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री के साथ को दून में शिक्षा मंत्री की बैठक हुई, जिसमें आश्वासन दिया गया कि उत्तराखंड के विद्यालयों में स्मार्ट टीवी उपलब्ध कराए जाएंगे, साथ ही कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी, लेकिन सवाल यह उठता है कि प्रदेश के 1202 विद्यालयों में वर्तमान में बिजली नहीं है। ऐसे में स्मार्ट टीवी और कंप्यूटर कैसे चलाए जाएंगे।दूसरी ओर शिक्षा विभाग में शिक्षकों एवं प्रधानाचार्य के सैंकड़ों पद रिक्त चल रहे हैं। यहां तक कि 24 मुख्य शिक्षा अधिकारी व जिला शिक्षा अधिकारियों के पद खाली हैं। चम्पावत जिले में तो मुख्य शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी जिला पर्यटन अधिकारी देख रहे हैं। 500 से अधिक प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त हैं और प्रशिक्षित डीएलएड, सीटीईटी, यूटीईटी ब्रिजकोर्स करने वाले अभ्यर्थी आंदोलन की राह पर हैं। बेसिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों की भर्ती कानूनी दांवपेच में उलझी है।प्रदेश के राजकीय विद्यालयों के पुस्तकालयों में पुस्तक खरीदने के लिए हर वर्ष 12 से 13 करोड़ रुपये जारी होते हैं, लेकिन बहुत कम स्कूलों में ही पुस्तकालय नजर आते हैं। अधिकारियों ने इसकी पड़ताल की कभी जरूरत महसूस नहीं की। सरकार की ओर से प्राथमिक विद्यालय को पांच हजार रुपये, जूनियर-हाईस्कूलों के लिए 13 हजार रुपये, हाईस्कूलों में 15 हजार रुपये और राजकीय इंटर कालेज में 20 हजार रुपये प्रतिवर्ष दिए जाते हैं, लेकिन कई स्कूलों में तो अलग से पुस्तकालय तक नहीं हैं। आखिर जिम्मेदार अधिकारी इस बारे में कोई कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं।विद्यालयी शिक्षा विभाग के आलाधिकारियों के साथ बैठक में सभी बुनियादी सुविधाओं की रिपोर्ट तलब की। अध्ययन के बाद ज्ञात हुआ कि कई स्कूलों में बुनियादी संसाधनों की सख्त जरूरत है। एक साल के भीतर अभिभावकों को विद्यालयी शिक्षा में कई क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाई देंगे।पिछले कई साल से सरकारें निजी स्कूलों को टक्कर देने के दावे तो कर रही हैं, लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। आज भी 467 स्कूलों में बालिकाओं के लिए टायलेट नहीं हैं। 80 टायलेट ऐसे हैं, जिनकी छत कभी भी गिर सकती है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की ग्रांट मिलती है। शिक्षा विभाग की ताजा रिपोर्ट सरकारी स्कूलों में बुनियादी संसाधनों की बदहाली की कहानी बयां कर रही है। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा के गिरते स्तर और कम होती छात्रसंख्या को थामने के लिए मुख्यमंत्री के निर्देशों पर आंशिक अमल ही किया जा सका है। विद्यालयों में शासन से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने स्कूलों में जाकर पढ़ाने की मुहिम अभी नहीं संभाली है। अलबत्ता, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने स्कूलों में जाकर पढ़ाना शुरू कर दिया है।प्रदेश में सरकारी विद्यालयों में छात्रसंख्या में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। हालत ये है कि नजदीकी सरकारी विद्यालयों को छोड़कर छात्र-छात्राएं निजी विद्यालयों में शिफ्ट हो रहे हैं। प्रदेश में सरकारी और सहायताप्राप्त विद्यालयों की संख्या 17054 है। इनमें अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की संख्या 10.09 लाख है। वहीं, गैर सरकारी विद्यालयों की संख्या 5674 है। इनमें छात्रसंख्या 13.23 लाख है। मुख्यमंत्री ने छात्र-छात्राओं का आकर्षण बढ़ाने और अभिभावकों को प्रेरित करने के लिए आइएएस, आइपीएस, आइएफएस से लेकर पीसीएस अधिकारियों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने पर जोर दियाथा।