जंगल की आग से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार-टूटने का खतरा !

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जंगल की आग से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तारटूटने का खतरा !

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के जंगलों में धधक रही आग न सिर्फ वन संपदा और आबादी पर आफत बनकर टूट रही है, बल्कि इससे ग्लेशियरों की सेहत पर भी खतरा बढ़ गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार जंगलों के जलने से निकल रही कार्बनडाई ऑक्साइड ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाकर ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार बढ़ाएगी और इसके कण ग्लेशियर पर चिपककर सीधे तौर पर भी बर्फ पिघलने की गति को बढ़ाएंगे। उत्तराखंड के जंगल चौतरफा आग से धधक रहे हैं, उससे सभी ग्लेशियर धुएं के रूप में कार्बनडाई ऑक्साइड गैस की चपेट में हैं। अभी यह गैस वायु मंडल में ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचा रही है। जब बारिश होगी तो इसके कण (ब्लैक कार्बन) नीचे आकर ग्लेशियर पर परत की तरह बिछ जाएंगे। इनसे ऊर्जा का संचार होगा और ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ जाएगी। वैसे भी बारिश कम होने से पहले ही ग्लेशियरों पर इस सीजन बारिश का कम जमाव हुआ है। धुएं से बर्फ और पिघलेगी तो इसका असर ग्लेशियरों की दूरगामी सेहत पर पड़ सकता है उत्तराखंड में आग से पहाड़ी जिलों में वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है शहरों में जहां सामान्य दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 50 से कम रहता था, इन दिनों 100 से ऊपर है।   वैज्ञानिकों के मुताबिक, हवा के साथ यह काला धुआं ग्लेशियर तक पहुंच रहा है और उसे खराब कर रहा है।हवा में कार्बन के साथ ओजोन की मात्रा भी बढ़ी वैज्ञानिक ने बताया कि आग के बाद हवा में ब्लैक कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ी है। सामान्य हालात में इसकी मात्रा दो माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए लेकिन जंगल की आग के कारण 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से 15 तक पहुंच रही जिससे ग्लेशियरों पर खतरा बढ़ा है। सामान्य दिनों  40 से 50 पीपीबी यानी पर पार्ट बिलियन रहने वाले ओजोन की मात्रा इन दिनों 100 तक रिकार्ड की गई है।जंगल की आग से ग्लेशियरों पर खतरा बढ़ा गया है। ब्लैक कार्बन और अन्य पार्टिकुलेट मैटर हवा के साथ ग्लेशियरों तक पहुंच रहे हैं। इन्हें जल्द काबू नहीं किया गया तो ग्लेशियरों पर मोटी परत बन सकती है। इससे ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का खतरा बढ़ेगा। उत्तराखंड में जल रहे जंगलों से ग्लेशियर प्रभावित होने लगे हैं। डेढ़ महीने से धधकते जंगलों से निकल रहे ब्लैक कार्बन और अन्य कणों से हिमालयी ग्लेशियरों पर एक परत बन रही है और उनका रंग काला होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में ग्लेशियरों के पिघलने की गति सामान्य से करीब 20 फीसदी तक बढ़ सकती है पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की दर बहुत तेजी से बढ़ी है, जिससे यहां की इकोलॉजी को भारी नुकसान पहुंच रहा है. इसके अलावा पर्यावरणविदों और एक्सपर्ट्स का मानना है कि उत्तराखंड में ग्लेशियर पिघलने और इनमें ब्लैक कार्बन जमा होने के पीछे भी जंगलों की आग ही सबसे बड़ा कारण है. आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड में साल 2000 से अबतक करीब 45 हजार हेक्टेयर फॉरेस्ट एरिया को नुकसान पहुंचा है. जलवायु परिवर्तन की रफ्तार तेज होने का जोखिम भी उतना ही बढ़ेगा. यह एक कुचक्र है. जंगलों की आग हिमालय की पर्वतमालाओं की बर्फ और ग्लेशियर पर सीधा असर डालेगी. बढ़ते तापमान की वजह से बरसों से जमी बर्फ तेजी से पिघलेगी, जिसके आने वाले भविष्य में कई दुष्परिणाम हो सकते हैं. ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग जलवायु परिवर्तन का निर्मम उदाहरण है. साथ ही यह पूरी दुनिया के लिए भी सबक है कि पर्यावरण से मुंह मोड़ना का अंजाम किस कदर डरावना होता है?देश में जंगलों की आग को लेकर इस बार हालात बेकाबू हो सकते हैं. 15 फरवरी से शुरू हुए फायर सीजन का पीक समय 15 जून तक माना जाता है, ऐसे में अभी अगले 3 महीनों तक जंगल आग की लपटों से कितना प्रभावित होंगे. यह एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है. पिछले सीजन के मुकाबले इस बार साढ़े 4 गुना तेजी से जंगल जल रहे हैं. प्रदेश के जंगलों में लगी यह आग राज्य सरकार और वन विभाग की मुसीबत बढ़ाती दिखाई दे रही है