मशहूर लोक गायक पप्पू कार्की की पुण्यतिथि

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मशहूर लोक गायक पप्पू कार्की की पुण्यतिथि

                    डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

पप्पू कार्की का मूल नाम प्रवेन्द्र कार्की था. उनका जन्म पिथौरागढ़ जनपद के सेलावन गांव में 30 जून 1984 को हुआ था. उनके पिता का नाम किशन सिंह कार्की और माताजी का नाम कमला देवी है. उनकी प्रारंभिक शिक्षा हीपा प्राइमरी विद्यालय में हुई. जूनियर हाईस्कूल प्रेमनगर तथा राजकीय हाईस्कूल भट्टी गांव से की. आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ दी और दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करने लगे. वर्ष 2003 से 2006 तक उन्होंने दिल्ली में बहुत संघर्ष किया. अपनी आजीविका के लिये पहले पेट्रोल पंप और फिर एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगे. फिर एक प्राइवेट बैक में चपरासी की नौकरी लगी. पप्पू कार्की की गीत संगीत में रुचि बचपन से ही थी.उन्होंने बहुत छोटी उम्र में पुराने लोकगीत गाने शुरू कर दिये थे. बताते हैं कि उन्होंने पांच साल की उम्र में हीन्यौलीगाना सीख लिया था. स्थानीय मेलेपर्वो, रामलीला और स्कूल के आयोजनों में भागीदारी करते रहे. उन्होंने अपना पहला गीत अपने गुरु कृष्ण सिंह कार्की की जुगलबंदी कर रामा कैसेट में ‘फौज की नौकरी मा’ 1998 में रिकार्ड किया.बाद में उनका संपर्क ‘हिमाल कैसेट’ के चंदन भैसोडा से हुआ. उन्होंने अपनी कंपनी की दो एलबम ‘हरियो रुमाल’ और ‘मेघा’ में गीत गवाये. फिर पप्पू कार्की हल्द्वानी आ गये. यहा ‘मां वैष्णो देवी प्रोडक्शन’ के संचालक विनोद जोशी ने इनके गीतों की दो एलबम ‘जून जस बान’, ‘य बालि उमर मां’ जारी की. इसी कंपनी की ‘प्यारी रंजना’ में तीन गाने गाये. बाद में वह रुद्रपुर आकर डाबर कंपनी में नौकरी करने लगे. यहां उनका संपर्क लोक गीत-संगीत को आमजन तक पहुंचाने में लगे ‘चांदनी इंटरप्राइजेज’ के नरेन्द्र टोलिया से हुआ. उन्होंने लोकगायक प्रह्लाद मेहरा के साथ मिलकर ‘झम्म लागछी’ एलबम के लिये उनका एक गीत ‘डीडीहाट की छमना छोरी’ रिकार्ड किया. इस गीत ने उन्हें नई पहचान दी. उन्होंने दिल्ली में आयोजित ‘उत्तराखंड आइडल प्रतियोगिता’ में भाग लिया और द्वितीय स्थान प्राप्त किया. बाद में 2015 में उनकी एलबम ‘मोहनी’ रिलीज हुई. हल्द्वानी में 2017 में उन्होंने ‘पीके इंटरप्राइजेज’ के नाम से अपना स्टूडियो खोला. इस स्टूडियो में वह नये गायकों का प्रशिक्षण भी दे रहे थे. ‘चेली बचाया, चेली पढ़ाया’ नाम से उन्होंने एक कुमाउनी गीत बनाया था. इसे उत्तराखंड सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान में शामिल किया. वह देश के विभिन्न शहरों के अलावा विदेशों में भी अपनी प्रस्तुति से नई पहचान बना चुके थे. पप्पू कार्की को 2009 में मसूरी में ‘सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार’ का पुरस्कार मिला. वर्ष 2017 में दिल्ली में ‘यूका’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मुबई में 2015 में ‘गोपालबाबू गोस्वामी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. पप्पू कार्की की 9 जून, 2018 को असमय मौत हो गई थी. पप्पू कार्की के परिवार में उनकी मां, पत्नी कविता कार्की और बेटा दक्ष हैं. दक्ष भी अपने पिता की तरह छोटी उम्र से ही गीत गा रहा है. देश ही नही बल्कि विदेशों में भी उत्तराखंड की लोक संस्कृति को एक नई पहचान दिलाने वाले लोक गायक स्वार्गीय पप्पू कार्की के बेटे दक्ष कार्की का गीत ‘सुन ले दगडिया’ यूट्यूब पर 3 मिलियन व्यूज का आंकड़ा पार कर चुका है। इसके साथ ही जब से दक्ष का गाना रिलीज हुआ करीब 1 लाख लोग ‘पप्पू कार्की’ चैनल को सब्सक्राइब कर चुके हैं। इतना ही नहीं अब तो पप्पू कार्की चैनल को यूट्यूब की और से सिल्वर बटन भी दिया गया है। जो कि एक बड़ी उपलब्दी मानी जाती है, यूट्यूब सिल्वर बटन एक यूट्यूब रिवार्ड है और एक ऐसा रिवार्ड है जिसको हर यूटूबर पाना चाहता है। यह बटन आपको तभी मिलेगा जब आपका चैनल यूट्यूब पर पॉपुलर हो जाता है और लोगो का विस्वास आपके साथ होता है।इस बटन को पाने के लिए चैनल पर एक लाख सब्सक्राइब होने जरूरी है, इसके साथ ही आपकी हर वीडियो ओरिजनल होनी चाहिए। गौरतलब है कि यह बटन हासिल करना पप्पू कार्की का सपना भी रहा होगा, इसलिए तो उन्होंने यूट्यूब का कोई भी नियम नहीं तोडा, माना जाता है कि ये बटन जिंदगी में सफलता की पहली सीढ़ी होती है। जब यूट्यूब आपको इस बटन से सम्मानित करता है तो ये एक Golden Moment होता है। दक्ष कार्की के इस गीत के बाद पप्पू कार्की चैनल पर सब्सक्राइब की बाढ़ आ गई थी। चैनल को पहले से भी काफी लोकप्रिय था। अगर आज पप्पू कार्की हमारे बीच होते तो वो भी इस बटन को हासिल कर सकते थे। लेकिन उनके बेटे ने पिता कि मौत के बाद जिस तरह से उनके सपने को पूरा किया, वो वाकई लाजवाब है।अब यूट्यूब चैनल पर इस बटन के मिलने के बाद पीके एंटरटेंटमेंट ग्रुप के सभी सदस्य खुश हैं। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई है। विशेषकर उनकी पत्नी इस सफलता से काफी खुश हैं। कई सालों पहले पप्पू कार्की के द्वारा गाया गया फ्वं बाघा रे गीत आज उत्तराखंड का सबसे प्रसिद्ध और सबसे ज्यादा बार देखा और सुना जाने वाला गीत है जो कि पिछले साल रिलीज हुआ था और यह काफी वायरल भी हुआ था।
पप्पू कार्की ने लगभग-लगभग जितने भी गीत गाए उनके गीतों की एक अलग शैली व अलग पहचान थी जो दर्शक के दिलों पर अपनी छाप जरूर छोड़ जाती थी इन गीतों में डीडीहाट कि छमुनाछोरी,सिलगड़ी का पाला चाला, पहाड़ो ठंडो पाणी, मधुली,छम छम बाजे ली हो,उत्तरायणी कौतिक लागि रो, हीरा समधणी, चैत वैशाखा मेरो मुंस्यारा, सुन ले दगड़िया, काजल को टिक लगा दे, लाली हो लाली होशिया,स्याळी मार्छाली,चकोटे की पार्वती,नीलू छोरी, तेरी माया सुवा रोली अमर, मेरी जेठी सासु विमला, हिट सारू पहाड़ मेरा घुमि आली, फ्वं बाघा रे के साथ-साथ न्यूली,पिछोड़ी और चांछडी जैसे कई सारे गीत शामिल है। लोक गायक स्व. पप्पू कार्की, कल्पना चौहान संदीप सोनू की आवाज में रिकॉर्ड गढ़वाली लोक गीतफ्वां बागा रेआजकल सोशल मीडिया में धूम मचाए हुए हैं। यूट्यूब पर दो माह में इस गीत को 12 मिलियन से अधिक व्यूअर मिले हैं।गढ़वाल के सुप्रसिद्ध लोक गायक स्व. चंद्र सिंह राही के गाए मूल गीत को पप्पू कार्की दूसरे गायकों ने नए अंदाज में लोगों तक पहुंचा। जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। गीत में आवाज देने वाले संदीप सोनू ने बताया कि पप्पू दा ने पिछले साल मई में गीत की कुछ पंक्तियों को गाया था। पूरे गीत की रिकॉर्डिंग के लिए पप्पू कार्की और वह दिल्ली नीलम स्टूडियो जाने वाले थे। दुर्भाग्यवस पिछले साल जून में एक सड़क हादसे में पप्पू कार्की की मौत हो गई। सोनू बताते हैं कि बाद में कल्पना चौहान और उन्होंने कुछ अंतरे गाकर गीत को पूरा किया। यू-ट्यूब पर 13 जुलाई को रिलीज गीत को 1.23 करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं। हल्द्वानी निवासी गायक संदीप सोनू का कहना है कि उत्तराखंड में किसी भी लोक गीत को दो माह में इतनी अधिक प्रसंशा नहीं मिली है। विभागीय अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा गांव के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले वर्ष प्रसिद्ध लोकगायक पप्पू कार्की के मौत के बाद इस गांव में सरकार के कैबिनेट मंत्री से लेकर सीएम के प्रतिनिधि तक गांव में पहुंचे थे। उन्होने पप्पू कार्की के सड़क बनाने की बात कही थी। लेकिन आज तक सड़क का निर्माण नही हो पाया।ग्रामीणों ने कहना है कि बार सड़क के नाम पर ग्रामीणों को ठगा जा रहा है उन्होने शीघ्र सड़क के निर्माण नही होने से पर बार फिर सड़क में उतरने की चेतावनी दी है। इधर विधायक ने बताया कि सड़क की स्वीकृति हो गयी है। कुछ वन विभाग की आपत्ति होने के कारण देरी हो रही है,  उसे ठीक करने के को विभाग को आदेशित कर दिया है। लेकिन अब देखना होगा कब तक इस गांव में सड़क का लाभ मिल पाता है। आज भले ही इन गीतों को गाने वाले पप्पू कार्की जी हमारे बीच में ना हो लेकिन उनकी आवाज सदा-सदा के लिए हमारे बीच रहेगी और दर्शकों के दिलों में अमर रहेगी उनकी इस पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन व भावपूर्ण श्रद्धांजलि।लेखक के निजी विचार हैं दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।